Priti Yadav   (प्रीति यादव)
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Joined 9 May 2021


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30 JAN 2022 AT 21:29

ऊँचा इतना उठो की आसमां भी नजरे
उठाकर देखे छोटे काम ही सही मगर
ईमानदारी के साथ करो और चमको
ताकि आसमां के सितारे भी फीके पर
जाए....— % &

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28 JAN 2022 AT 18:45

कैद मेरी सारी जिंदगानी है
कायदे कानून सब बने है उड़ना
मुझे पिंजरे में ही हैं खौफ देते है
मुझे मेरे अपने,डरती हूँ इसीलिये
खुद के लिए लड़ना नहीं जानती
न जाने क्यों फिर भी ये जिंदगी
मर- मर के जी रही हूँ....

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21 JAN 2022 AT 17:28

किन सपनो को लेकर मैं बैठी हूँ,
अंधेरे में रह उजाले की आश में बैठी हूँ,
कैद रह उड़ने की आश में बैठी हूँ मैं
तकदीर में मेरे कुछ नहीं मगर मैं खुद
की तकदीर लिखने बैठी हूँ...

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19 JAN 2022 AT 17:26

कभी-कभी मैं सचमुच टूट-सी जाती हूँ,
दूसरों से गिला नहीं अब खुद से ही रूठ जाती हूँ,
थक गयी हूँ अब बस तन्हाई में दो पल जी लेना
चाहती हूँ, हताश हूँ या निराश हूँ यह बात अपने
तक ही सीमित रख लेना चाहती हूँ, यातना सहने
की आदी हूँ, कलंक की गठरी मेरी साथी हैं आंसूओ
का सैलब मेरे अंदर हैं....

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12 JAN 2022 AT 16:47

मौत खड़ी मुझे बुला रही है
मुझसे मेरे जीने की वजह
पूछ रही है जैसे मैंने सपनो
और ख्वाबो को अपने अंदर
समा लिया उसी तरह यह भी
मुझे खुद में समा लेना चाहती है...

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11 JAN 2022 AT 14:58

तन्हाईयों से लिपटी मैं न जाने क्यों
एक दर्द के पीछे पड़ी हूँ सुकून की
तलाश में इस बंजर सी जिंदगी की
मोड़ पर क्यों मैं निकल पड़ी हूँ समंदर
की तलाश में जिंदगी अब और न सता
वरना खबर ऐ मौत मिलेगी कफ़न ओढे
जिंदा तरपती लाश मिलेगी....

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6 JAN 2022 AT 20:47

हर रोज मौत करीब आ रही है
और ये चुलबुली जिंदगी जीने के
हर रोज नये-नये बहाने बता रही है
आने वाले कल के लिए नये ख्वाब
और सपने दिखा रही है ये चकाचौध
और आनंद से भरे संसार को देखकर
सचमुच मैं भूल जाती हूँ की मुझे एक
दिन मरना है....

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4 JAN 2022 AT 15:46

हर रोज के ताने और परेशानियों में मैंने
अपने सपनों के पिटारे को कही खो दिया
डर से मैंने अपने सारे शौक को समेट लिया
खुद को सीमाओं में कैद कर खुद को मरते
ही छोड़ दिया.....

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24 DEC 2021 AT 16:06

मजबूरियों में सिमटी हूँ मैं
कुछ हालातों से जकड़ी हूँ मैं
अपने बीते हुए कल को और
आने वाले कल को जोड़कर
मैं क्यों खुद में ही सहमी हूँ

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14 DEC 2021 AT 16:48

कौन कहता है की आजाद है वे
हर कोई जिम्मेदारियो मे बंधा परेशान है
न जाने फिर भी वे कैसे मुस्करा देते है यह
जान कर हैरान हूँ मैं आज कल तो मैं अपना
हाल भी नहीं पूछती बोझ तले मैं कहाँ गुम
हो गयी यह खुद से सवाल भी नहीं पूछती
हँसी मेरी कहाँ खो गयी शायद मैं अब उसे
ढूंढना भी भूलती जा रही हूँ....

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