हमारे जानने वालो में हम में से लगभग हर कोई इंसान के तौर पर एक दूसरे को बहुत प्यार करता हैं लेकिन कहीं न कहीं हम अपने धर्म को लेकर इतने ज्यादा भावनात्मक तौर पर जुड़े है कि हम कब एक दूसरे से छोटी-छोटी बातों पर खींचकर अपने मन में बैर पाल लेते हैं और पता भी नहीं चलता। एक दूसरे के त्योहारों पर हम अचानक सें जो लिबरल और मार्क्सवादी बन के जड़ें खोदने लग जाते हैं, होली पर पानी बचाने की, दिवाली पर पटाखे न जलाने की ,ईद पर मजारों की जगह लोगों को चद्दर बाँटने की, बकरीद पर अचानक से PETA का employee बन जानवर बचाने की,क्रिसमस पर पेड़ बचाने की "Go Green" होने की। असल में हम बहुत ज्यादा जुड़े हैं एक दूसरे से, हजारों या करोड़ों साल पहले हमें बनाने वाले ने बहुत smartly हम सभी को एक दूसरे से जोड़ रखा है ।
वरना एक दूसरे को पूरब पश्चिम कहने वालो के त्योहार साथ में ही क्यूं होते हैं ? ?
ईद के साथ अक्षय तृतीया,बकरीद के साथ एकादशी ,गुड फ्राइडे के आस-पास हनुमान जयंती कैसे मनाई जाती हैं ? यह देश ऐसा ही है मान जाइए एक दूसरे की presence को accept करिए और जैसे है वैसे रहिए, नस्ल मिटाने का सपना झूठा है, आप एक छोटा हिस्सा है बस !
कहानी बहुत बड़ी हैं। अपने ईश्वर की प्रार्थना करे, अपनी परंपरा रीतियों को पीढी दर पीढी आगे बढाए और किसी की भी आस्था पर सवाल मत उठाइए और दिखावे से दूर रहिए खुश रहिए ।
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