भिन्न भिन्न प्रकार की खुशबुएँ आस पड़ोस में झूमा करती हैँ..
जब बीत गए वक़्त के पन्नों की रील एक चक्र में घुमा करती हैँ..
जाने कहाँ खो गयी भगतसिंह,राजगुरु, सुखदेव ज़ी की हस्तीयाँ..
अब अंदर से मरे पड़े हैँ लोग और डूबी हुई हैँ इनकी
कश्तियाँ..
नशे में मदहोश.. निर्दोषों का निकालते दोष.. ढूंढ़ रहे हैँ सहारे ये लोग..
दूसरों की आड़ में छिपकर जितना चाह रहे हैँ.. मन से हारे हुए ये लोग..
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Kabhi jyada se thhode ka Safar..
कौन है तेरा? क्या है तू? सिर्फ विचरण ही है तेरी सीमा भर्मित मन मेरे..
उसका बनाया एक खिलौना है और मिट्टी में मिल जाना है पापी तन मेरे..-
वो मेरे अपनों से काट देना चाहता था मुझको..
और ना ही खुद मुझे अपनाता था..
मुझ जैसों से बेहद नफरत करता था वो..
मगर मेरी तस्वीरें देखकर मन बहलाता था..
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चलो माना की तुम्हारे साथ की गुजारिश रखते थे..
मगर तुम्हारी गैर मौजूदगी हमेशा ही खले ऐसा नहीं होता..
कभी ना कभी तो मंजिल नजर आ ही जाएगी हमें भी..
जिस पर चले वो हर एक रास्ता असफल हो ऐसा नहीं होता..
मेरे अपनेपन ने तुम्हें हमेशा हर बात में ऊपर रखा था..
मगर उस हर बार में तुम्हीं ठीक ठहरे हो ऐसा नहीं होता..
कभी ना कभी तो मुझ जैसा भी मुझ तक आएगा कोई..
हर बार ही मेरे हिस्से में गलत आए ऐसा नहीं होता..
मुझे अपने नाम तले रखना चाहते हो तो मेरा वजूद जिंदा रखना पड़ेगा..
मैं हर दरिया में डूबती कश्ती सी नजर आउ ऐसा नहीं होता..
प्रभु की नियति है यहाँ न्याय हर किसी को मिलता आया है..
हमेशा एक ही इंसान गुनेहगार बन जाए ऐसा नहीं होता..
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माँ नअ दिया था जन्म मेरे ते.. पर तनअ हालाता तअ लड़ना सिखाया था..
ज़ब सब कुछ खत्म होता दिखअ था..उस टेम तनअ ए हाथ बढ़ाया था..
छो मअ दिखया करअ सारी हाण.. पर भीतर ते घणा ए नर्म स..
या दुनिया झूठे रुक्के मारअ.. के मेरे बाबू स्वभाव का घणा गर्म स..
के के बोलू बाबू तेरी खातिर.. तू इस जिंदगी की सबतअ बड़ी मिसाल स..
ज़ब तहीं तेरी सांस चालअ सँ .. पुरे परिवार की जिंदगी खुशहाल स..
नु कहा करदा के एक ए ध्येय राखो.. पढो लिखो कामयाब बण कअ दिखाइयो..
फेर क़र लियो ये शौंक पुरे.. ईबअ ये नहु पालिसा के रंगा मअ ना बड़ ज्याईओ..
ज मेरे माँ बाबू ना होंते इस दुनिया मअ..तो भला कुणसा वजूद मेरा था..
अनपढ़ माँ ने पाल पोश दी.. जिसनअ अ तअ ब का नी बेरा था..
लाख कमा लूँ लाख जोड़ लूँ.. माँ बाबू का स्यान तो कुकरे नी उतरा करदया..
जिसनअ दुनिया रोबदार कहा करदी.. ओ माणस आपणे बालका खातर मरया करदा..
बीमारियां का गात मेरी माँ का.. फेर भी कदे मनअ वा हार नी मानदी देखि ..
एक बअ नीली पड़ गी थी सारी.. मनअ उस बख्त जिंदगी दूर जांदी देखि..
परमात्मा लाख दुख दर्द दे दिए जिंदगी मअ..तेरा दिया सब किम मंजूर है..
बस मेरे परिवार ने सही सलामत राखिये.. जो हर वक़्त बैठे मेरे तअ दूर हैँ..
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एक वक़्त था जब हम भी होले होले से मुस्कुराया करते थे..
जिंदादिल बनकर सबको जीने के तरीके बताया करते थे..
वक़्त की मार देखो की उसी दिए ने हाथ जला डाले मेरे ..
जिस दिए को हम तेज हवा में बुझने से बचाया करते थे..-
मेरे दिल-ओ-दिमाग की तारतम्यता भंग करके..
मुझे इंसान से एक जानवर बनाया गया था..
भला कैसे भूल जाऊँ मैं वो खौफनाक मंजर..
जब मुझे मेरे ही अंदर दफनाया गया था..-
मात्र धागे से नहीं, विश्वास से बंधी एक डोर थी..
सुन! तेरे और मेरे मिलन की कहानी कुछ और थी..
प्रेम-पुजारन बनकर मैं तुझमें हो गयी विभोर थी..
सुन! तेरे इस पावन मन कि मैं ही तो चित-चोर थी..-
वो जो मुझसे बिछड़ गया था कभी..
लौटना चाह रहा है अब मेरा साथ निभाने को..
जो एक लफ्ज सुनने कि फ़ुरसत ना रखता था..
आज लालायित है वो मुझे हर बात बताने को..
मैं कहती रही के बिछड़ी तो फिर कभी ना मिलूंगी..
उसके पास पैसा तो मेरे पास अपनापन था कमाने को..
छोड़ दिया जिन रास्तों का सफ़र मैने तय करना ..
उन रास्तों पर फिर भी मेरा इंतजार क्यूँ है इस जमाने को..
मैं अब ज़ी रही हूँ एक खुली किताब बन क़र..
और उसके पास बहुत कुछ है मिट्टी तले दबाने को..
वो कहता है कि नादानगी में मेरी मासूमियत ना समझा..
सच कहूँ तो उसके पास विकल्प बहुत थे मन बहलाने को..
मैं खुद के सहारे खुद को उठाना बखूबी जानती हूँ..
कोई जरा ये समझा दे उस मतलबी परवाने को..-
दिमाग ने पूछ डाला दिल से कि..
तुम भी मेरी तरह कितना सोचते रहते हो..
एक आह तक नहीं आने देते हो..
अंदर ही अंदर तुम कितना दर्द सहते हो..
खुद से बने बैठे हो बेगाने तुम..
और बेगानी दुनिया को अपना कहते हो..
तोड़ डाला है अपनी मंजिल से नाता..
अँधेरी अनजानी गलियों में खोये रहते हो..
अपने अकेलेपन को जगाओ तो जरा..
तुम कौनसे झूठे से सपनो में खोये रहते हो..-