अमन की ख़ातिर दंगो में घर को जलता देखा,
आज सूरज को लहू-लुहान ढलता देखा।
एक हाथ में तलवार, दूसरे में किसी का सर,
आज उपरवाले के नामपर बेगुनाहों को मरता देखा।
ख़ुद के बच्चे को भविष्य की सलाह दी उसने,
आज दूसरों के बच्चों को धर्म के नाम पर उकसाता देखा।
भीड़ का साथ है मेरे पास, ऐसा कहता था,
आज उसके पीछे शवों को लटकता देखा।
तिरंगे में रंग तो कई है शामिल,
आज रंगो को आपस में लड़ता देखा।
तख़्त के किरायदार बदल गए अख़बार में ये ख़बर आइ हैं,
तख़्त-नशी थे जो कल आज उन्हे तख़्त को कोसता देखा।
इंसानियत की बातें कर रहे थे प्रभु,
आज धर्म के ख़ातिर भक्तो के हातो प्रभु को पिटता देखा।
जवाबदेयी की डिंगे हाँकता था,
आज सवाल पूछने वालों को बेड़ियों में झूँजता देखा।
-प्रितम खपले
(25/6/2021)
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