शिकायतें बहुतों की बहुत है ,
अगर सबकी सुनूंगा ..
तो खुद थोड़ा बचा हूं ,
फिर मैं कहा बचूंगा ।
रहने दो मुझे मेरी ठिठोली में
हूं मैं उससे ही खुश, है जो पड़ा मेरी झोली में।
ना अम्बर के नखत चाहिए
ना मुझे पूरा जगत चाहिए ।
कर कीर्तन जगदीश का मैं
खूब खुश हो लेता हूं...।
इससे से ना मन भरे तो
मां की आंचल में सो लेता हूं।
ले दो चार करवट वहां
मानो दिव्यधाम का दर्शन कर आया।
मैं स्वार्थी मानव जीवन
हेतु स्वार्थ यह जीवन पाया।
मुक्त स्वार्थभाव से अगर सेवार्थभाव
का जो नर अवसर पाया
सो नर, नररूप में है नाथ की साया।
.... प्रीतम 💕-
Love of a brother 💕
What I write is your feel, your words
शिकायतें बहुतों की बहुत है ,
अगर सबकी सुनूंगा ..
तो खुद थोड़ा बचा हूं ,
फिर मैं कहा बचूंगा ।
रहने दो मुझे मेरी ठिठोली में
हूं मैं उससे ही खुश, है जो पड़ा मेरी झोली में।
ना अम्बर के नखत चाहिए
ना मुझे पूरा जगत चाहिए ।
कर कीर्तन जगदीश का मैं
खूब खुश हो लेता हूं...।
इससे से ना मन भरे तो
मां की आंचल में सो लेता हूं।
ले दो-चार करवट वहां
मानो दिव्यधाम का दर्शन कर आया।
मैं स्वार्थी मानव जीवन
हेतु स्वार्थ यह जीवन पाया।
मुक्त स्वार्थभाव से अगर सेवार्थभाव
का जो नर अवसर पाया
सो नर, नररूप में ही है नाथ की साया।
.... प्रीतम 💕
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जब हर रोज सूर्योदय की लाली को धोखा दे जाऊंगा,
उसके आने से पहले ही अपना स्वेद खूब बहाऊंगा।
कर, कर की रेखा को मजबूत,
किस्मत की वक्ष पटल से होकर गुजर जाऊंगा।
ये विकट है कार्य या फिर वो दुर्गम है लक्ष्य
यह कह कर ना किंचित कपकपाऊंगा।
कर अर्पण तर्पण और भी करसकूं तो सर्वस्व समर्पण,
जिस धरा पर जन्म लिया उसका धर्म निभाऊंगा।
...प्रीतम 💕-
ना हुंकार भरूंगा, ना चीत्कार करूंगा,
हूं कर्तव्यपथ पर गतिशील,
बस गमन हीं स्वीकार करूंगा।
भले ना जिसका अंत हो,
खड़ी विपदाएं अनंत हो ,
विकट ऐसी स्थिति जो आन् आए,
तब भी मैं दंभ भरूंगा।
कहकहा दुविधाओं का जो आसपास हो,
वेदनाओं से भी रुक रही जो मेरी सांस हो,
कर भ्रमित उन्हें, मैं मलंग मरूंगा ।
उठाए जो कोई भी मेरी लाश को,
देखे वो मेरी आंखों में और फिर उसे विश्वास हो,
मरा जो यह बस नर नहीं ,
पुतलियां हो बता रही...
जैसे प्रकृति से विलगित पादप खास हो ।
ना हुंकार भरूंगा, ना चीत्कार करूंगा,
हूं कर्तव्यपथ पर गतिशील,
बस गमन हीं स्वीकार करूंगा।
.... प्रीतम 💕
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तुमसे वो बिछड़ गए है
तो क्या हुआ ?
तुम बस बिखर मत जाना।
वक्त लेना थोड़ा
लेकिन शिखर तक जाना।
प्रतिद्वंदी गए होंगे जहां तलक
तुम उसके इतर जाना।
हैं जो बैठे घरवाले भरोसे तुम्हारे
तो तुम उनके फिकर तक जाना।
हो क्या इंसान तुम...
फिर होगा नहीं तुम्हे समझाना।
इसलिए तो कहता हूं यारों
तुमसे वो बिछड़ गए है
तो क्या हुआ ?
तुम बस बिखर मत जाना।
तुम बस बिखर मत जाना।
.... प्रीतम 💕
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मुझे अपनी प्रतिभा को लेकर अब प्रतिस्पर्धा नहीं।
जोग जो जग गया भीतर का ,कहो चाहे तुम कुछ भी
अब उसमें मेरी श्रद्धा नहीं ।
... प्रीतम 💕-
आपकी आंखों में फंसा हुआ हूं
आपके प्यार का असर है या फिर
जाम- ए- इश्क का कहर है ...।
कहना सब कुछ मुनासिब नहीं है
थोड़ा और नशा होने देता हूं...
उनकी गुलाबी आंखों का ।
सुना है, उनकी आंखों में उतर कर
आजतक कोई बाहर नहीं आया ।
अब लग रहा सच सुना था
रस्ता तो दिखा जाने का
लेकिन निकल नहीं पा रहा ।
शायद उनकी आंखों में रहने की आदत हो गई है
या फिर साफ दिल से कहूं तो उनसे मोहब्बत हो गई है।
.... प्रीतम 💕-
आपकी आंखों में फंसा हुआ हूं
आपके प्यार का असर है या फिर
जाम- ए- इश्क का कहर है ...।
कहना सब कुछ मुनासिब नहीं है
थोड़ा और नशा होने देता हूं...
उनकी गुलाबी आंखों का ।
सुना है, उनकी आंखों में उतर कर
आजतक कोई बाहर नहीं आया ।
अब लग रहा सच सुना था
रस्ता तो दिखा जाने का
लेकिन निकल नहीं पा रहा ।
शायद उनकी आंखों में रहने की आदत हो गई है
या फिर साफ दिल से कहूं तो उनसे मोहब्बत हो गई है।
.... प्रीतम 💕
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सुना है शायर बन गए हैं वो...
सुना है शायर बन गए हैं वो...
या तो वो शब्दों से खेलना जानते हैं,
या फिर किसी ने दिल तोड़ा है उनका।
... प्रीतम 💕
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किसी के उकसाने पर,
मन उसके जैसा हो गया ।
मतलब साफ है...
मैं, मैं ना रहा
सहसा उसके जैसा हो गया ।
क्षणिक ही सही....
मगर राज उसका, मुझपर हो गया ।
चलो मन को तैयार करो
तुनक तुनक जो करे कोई
सहर्ष उसे स्वीकार करो
हो शर्तिया या बेशर्तिया
अविचल मन का श्रृंगार करो ।
जो मन का उपवन खिल गया,
मानो मन का मित भी मिल गया।
फिर क्या अनबुझ पहेली जीवन की,
टूटा मन का जो एक तार....
छोड़ो उसको अब ...
छेड़ो जो सावन है सामने तैयार !
..प्रीतम 💕
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