किसी शाम को फुरसत से मिलने आना,
आते आते थोड़ा वक़्त भी साथ लाना...
बैठेंगे किसी समुंदर के किनारे पर,
जहा सिर्फ लहरों की धून सुनाई दे,
वहा डूबते सूरज का रंगीन नज़ारा
हमें हमारी आँखो में दिखाई दे..
जहा हम कुछ भी ना बोले ,
फिर भी इक दूसरे से हमारी बात हो,
वो मेरी खामोशी की
तुम्हारी खामोशी से पहली मुलाक़ात हो...
उस पल में ना कोई लडाई हो, ना कोई शिकायत हो
ना कोई झूटा वादा हो....
ना कुछ सोचने मे राहत हो, ना दूर जाने की चाहत हो ,
ना पास आने का इरादा हो...
कुछ इस तरह बैठे रहे हम खुद खो कर,
एहसास भी ना हो की कब शाम से रात हो........
जब जाने लगोगे तुम उठकर,
बस इतना सा कह दूँ,
कल कि शाम भी, क्या तुम मेरे साथ हो?!
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