यह दिन भी गुजर जाएगा,बिना कहे बिना कुछ सुने
ना वो कानों में गूंज है ,ना वो लोग नोक छोंक वाली किलकारी
कितनी खुदगर्ज हो गई है ना ये जिंदगी हमारी
ना अपना होने देती है,ना अपनों को खोने देती है
मैं भी जिंदगी के उसी दौर से गुजर रही हूं।
असमंजस में हूं....
मगर नहीं जानती इस खामोशी का राज
मेरे उन तमाम से बेफिजूल ख्वाबों की आवाज
मैं बस जीना चाहती हूं अपने ढंग से
बदलना चाहती हूं खुद को, अपने खुद के रंग से
मगर यह दिन भी गुजर जाएगा ,बिना कहे बिना कुछ सुने।
वो आवाजें चीखती है मेरे अंदर
अभी भी याद है वो अश्कों का समंदर
उनमें शायद! हिम्मत नहीं,मेरी तरह सामना करने की
बेहतर है खामोशी से सह लिया जाए
हर वो आलम जिसे जिसमें आप जीना नहीं चाहते
साहिल पर बैठी मेरी एक कहानी
अपना दम घोटने जा रही थी
वाकयों की वो हर कतार ,उसे अपनी सी नजर आ रही थी
मगर थम गया वो आलम, बिना कहे बिना कुछ सुने
क्योंकि वह दिन भी गुजर गया।।
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