'मैं, मेरा और मद'
नहीं है ज़िंदगी
'दो-चार दिन' है ज़िंदगी-
हां हम 'डेढ़ इश्किया' टाइप के ही लेखक हैं,...
देखो भाई बात ऐसी है,... read more
हैल्पर से डींगे हांकता ड्राइवर...
डैशबोर्ड में लगा म्यूजिक प्लेयर, प्रत्यक्ष है...
रोमांच से भरपूर सफर भी एक वक्त बाद उबाऊ हो जाता है
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Lazim hai Hasrat mein hadse
Waqt ko ittihaam kr waqt zaya ni kia krte...
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रात जो जाग रही होती है
The last coach
सीट RAC थी, थकान के कारण थोड़ी देर तो आंख लगी मगर जब उठा तो हाथ पूरी तरह अकड़ चुका था, दर्द ऐसा मानो गहरी नींद में हाथ की नस खिंच गई हो। लंबे समय से करवट नहीं बदली लिहाज़ा गर्दन और कंधे में भी दर्द शुरू हो गया था। इन सबसे निजात के लिए सोचा कि अब दिल्ली दूर नहीं कुछ घंटों का सफर यूं ही बैठकर तय किया जा सकता है। खैर...
अनुशीर्षक से जारी रखें...
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खबरों में अक्सर सुसाइड नोट को शब्दश: लिखना मुश्किल होता है, सुसाइड कर्ता के आंसुओं से शब्द ब्लर हो जाते हैं...
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इल्तिज़ा में मशगूल इंसां, इंसां के लिए
जहां में मिल्कियत कोई किसी की नहीं...
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हम...
मुश्किलों का लबादा ओढ़ कर नहीं
उन्हें जज़्ब कर चैन की नींद सोते हैं...-
ज़िंदगी खामोश है एक शख़्स के लिए
गमों का उम्र भर तकाज़ा हमने जो कर लिया-
अरमां किए जा सकते हैं पूरे, संगम (त्रिवेणी) के बगैर
चाह में तुम्हारी ये कश्ती बोझ तले क्यों रहे!
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