राज!वो मिले इंसाफ़ इसी सोच में रहता है
बिछड़ा बच्चा रो-रो घर का पता कहता है
ज़माने में छपी सब खबरें बिकी हर खबरें
ना पता ना हाल मिला यही जीवन कहता है
बरस बीते आँखें सूझी घाव निशान बने
दर्द भरी जेहन में,ख़ैरीयत कौन पूछता है
ना कोई भेद ना अंतर है,बिछी बस ख़ामोसी
सच अंधेरा है सबसे पूछा सच कौन कहता है
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बढ़ते कदम,पतझड़ सड़क और ज़िंदा दिल
खोई आँखें,बिछड़ते सपन और आकर मिल
सज़ा मकान, मिलता मुकाम और ज़िंदा दिल
जगमगाते बाज़ार,सूना शहर और आकर मिल
लंबा सफ़र,ढूँढता मंज़िल और ज़िंदा दिल
पूरा चाँद,ममता का आँचल और आकर मिल
बनता मिराज,रेत भरी मुट्ठी और ज़िंदा दिल
नम आँखें, बीतता सहर और आकर मिल
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राम लिखूँ या श्याम लिखूँ मैं
त्याग लिखूँ या फिर बंधन मैं
प्यार बड़ा या फिर त्याग लिखूँ मैं
संशय बड़ा या संसार लिखूँ मैं
मोह- परीक्षा देखो और क्या लिखूँ मैं
क्षीण पड़ी सरकार तो क्या विश्वास लिखूँ मैं
कण कण देखा तो राम लिखा मैं
बजी बंसी तो श्याम लिखा मैं
श्याम लिखा संशय मिटा
राम लिखा संसार लिखा मैं
जब गिरा पलकों से आँसू
तो सिर्फ़ विश्वास लिखा मैं!
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कि तकते-फिरते हम मिले प्यार की बागों में
दिख रही हैं कई कहानी मुझे इन आँखों में
आओ ना तुम मिलने कभी इन बाहों में
बीत जाएगी ये शाम भी बस इक प्याली में
बीत गई है रात आधी प्रेम विरह में
चाँद भी है खूब रोया इस चाँदनी में
कि फिर मिलेंगें इक सुबह हम
किसी महफूज जमाने की कहानी में
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लाल गुलाल लेके
मस्ती माहौल लेके
निकले गली से कान्हा
देखो!दौड़ पड़ी है राधा
गोकुल की कलियाँ हैं पीछे
रंगीं पड़ी हैं गालियाँ नीचे
रंग डाले-लगे तो अँखियाँ मीचे!कान्हा
देखो! फ़ागुन में दौड़े कृष्ण और राधा
मथुरा चले बंसी छोड़े
काज निभाने कान्हा
बिलख रहा है बृज गल सारा
और देखो!मौन पड़ी है राधा
उंगली पर सुदर्शन नाचे
हाथ धरे तो बंसी बाजे
दो युग मे दो प्रेम पीड़ा
द्वापर में राधा रानी कलयुग में हुई मीरा
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कड़ाके की ठंड को
मैंने सूखी लकड़ियाँ सज़ाईं
अंगारों ने हाथ जलायें
इस शाम, मेरा क्या कसूर?-
कड़ाके की ठंड को
मैंने सूखी लकड़ियाँ सज़ाईं
अंगारों ने हाथ जलायें
इस शाम, मेरा क्या कसूर?-
कि तख्त पर रखी स्याही यादों में अब नहीं चलती
बस दरिया यूँ ही बहता है अब नौका नहीं चलती
तेरे चेहरे का नूर सबने और आईने ने देखा है
मेरा दिल धड़कता है बस धड़कन नहीं चलती
कि आरसी नफ़े-नुक्स से चाँद का दाग़ लिखा है
सब बातें जेहन में हैं बस सच्ची कहानियाँ नहीं चलती
बिखर गए हैं जौहर सभी और ये नक़ाब लगा रखा है
खिलाफत-मुबारक फ़िरते हैं बस बधाईयाँ नहीं चलती
-©प्रिंस राज
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