Prince Patel  
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Joined 17 June 2019


Joined 17 June 2019
25 AUG AT 16:10

दहेज : समाज का जहर

दहेज के नाम पर दरिंदगी का मंजर क्यों बनाते हो,
खुशियों के सौदे में इंसानियत क्यों जलाते हो।

जिम्मेदार वो भी हैं जो लेते हैं, और वो भी जो देते हैं,
कुछ सिक्कों के लालच में रिश्तों के मायने खो देते हैं।

समाज की इस गंदी परंपरा में सबके हाथ रंगे हैं,
खामोशी भी यहाँ गुनाह के संग गिने हैं।

जिस बेटी से समाज में शान का झंडा उठाते हो,
उसी को चंद पैसों के लिए बाजार में सजाते हो।

चंद नोटों से तुम क्या खरीद लोगे ?
इज्जत ? प्यार ? या जीती-जागती जिंदगी को दफ्न कर लोगे ?

बेटी का सम्मान ही असलली पहचान है,
दहेज शब्द ही सबसे बड़ा अपमान है
रिश्ता दिल से होता है, दहेज से नहीं,
और बदलाव एक से शुरू होता है, अनेक से नहीं।

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10 JUL AT 2:00

वो टूटी छत, जहां सपने पलते थे,
वो कच्ची दीवारें भी रिश्ते संभालते थे।
शहर के शोर में वो सुकून नहीं पाया,
जो गांव की खामोशी ने हर रोज सुनाया।
और मोहब्बत..? तो बस कुछ यूँ निभती थी,
न नजरों से कहा,
न लफ्जों में बसी थी,
मोहब्बत तो बस चुपचाप आंखों में सजी थी।

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9 JUL AT 17:24

जिसे सीने से लगाया था मोहब्बत समझकर — वो थीं किताबें,
हर पेज में छुपी थी उम्मीदें, हर lines में दुआएं।
पर वो books भी दिल के हर कोने को जख्मी बना गईं,
हर memory में अब syllabus ही बस गया है कहीं।
हम रहे वफा की तलाश में, selection की आस में,
और वो नौकरी— हमें भुलाकर, किसी और के साथ मुस्कुरा गईं।

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9 JUL AT 16:49

Adjustment किया किताबों से दोस्ती करके,
हर festival पर खुद को रोक के।
पर जब सालों बाद भी result ना आए,
तो compromise जैसा ही लगा ये wait भी।
हर ख्वाब को वक्त के नीचे दबाया मैंने,
हर रिश्ते को 'अभी नहीं' कहकर टाल आया मैंने।
कभी किताबें दोस्त बनीं, कभी रातें हमराज,
Adjustment के नाम पर छोड़े कितने अल्फाज।
अब ये तैयारी इबादत है या सजा — समझ नहीं आता,
कहीं selection ही ना बन जाए — आखिरी समझौता।

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7 JUL AT 19:12

मोहब्बत वो खामोशी है, जो दिल से शुरू होकर रूह तक उतर जाती है।

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7 JUL AT 17:01

जीवन में कुछ शर्तें पूरी होनी चाहिए,
वरना चाहतें भी बेवजह सी लगती है।
इंसान की कदर कामयाबी से होती है,
वरना कोशिशें भी अनसुनी सी लगती है।

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7 JUL AT 16:29

हर घर में हो एक सितारा,
जो बन सके उजियारा हर अंधियारा।
जो मुश्किलों में ढाल बने,
और प्रेम से हर जख्म सिले।

पसीने से जो इतिहास लिखे,
पर तारीफ़ों से कोसों दूर दिखे।
जिसकी मेहनत से नींव टिके,
और जिसकी चुप्पी में घर बसे।

न नाम चाहिए, न शोर कोई,
बस अपनों की सलामती हो हर पल वही।
ना मंच चाहिए, ना तालियाँ,
बस आँखों में हो गर्व की चमक सारे जहाँ की।

बनो वो दीप जो आँधी में भी जले,
बनो वो सपना जो घर को दिशा दे,
बनो वो इतिहास, जो पीढ़ियों को अभिलाषा दे।

बन जाओ वो गर्व…
जिसे हर पीढ़ी कहे — ये हमारे घर का है तारा ।


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15 JAN AT 23:07

शोर-शराबा वाली इस दुनिया के बीच
तुम सुनने की कोशिश करना
अपने माता-पिता का मौन
वो मौन जिसमें सिर्फ और सिर्फ उम्मीदें हैं ।

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29 APR 2024 AT 1:47

एक अजनबी से क्यो लगते हो आजकल तुम मुझे
जाने क्यो कुछ बदले-बदले से लगते हो आजकल तुम मुझे
हर बात मे नाराजगी जता देते हो
क्यो मेरे नही लगते हो आजकल तुम मुझे
न मेरी अनकही बातें तुम्हारे होठो को छु पाती है न मेरी मौजूदगी तुम्हारे दिल को सुकुन देती है
बस इतना ही बता दो क्यो देखते नही आजकल तुम मुझे .......

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28 APR 2024 AT 10:28

श्रृंगार की हुई स्त्रियों से ज्यादा सुंदर लगती है संघर्ष करती हुई स्त्रियां..फिर चाहे वो सूट सलवार में हो या हो किसी साधारण सी साड़ी में एकमात्र बिंदी के साथ..!

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