हर शाम ढलकर थक गया होगा
सूरज निकलकर थक गया होगा
जरुरी नहीं साजिशन बुझा हो चराग
मुमकिन है जलकर थक गया होगा
अब वो अपना लिबास नहीं बदलता
शायद चेहरा बदलकर थक गया होगा
मेरी तरफ़ अब पत्थर आयेंगे देखना
हां, कीचड़ उछलकर थक गया होगा
आज बहुत बेकाबू क्यूं है वो शख़्स
रोज़ संभल-संभलकर थक गया होगा
उसे मिल गया कोई इसलिए रुक गया
मुझे लगा वो चलकर थक गया होगा-
लोग दिल लगाकर परेशान-से रहते हैं
हम अकेले हैं साहिब इत्मीनान से रहते हैं
जो जान हुआ करते थे महफिलों की कभी
तन्हाई में वही लोग अब बेजान-से रहते हैं
हाथ जोड़ते हैं आकर गाड़ी बंगले वाले
चुनावी मौसम में गरीब बड़े शान से रहते हैं
अजीब है न साहब ये शहरों का दस्तूर
दीवारें सटी हैं लोग अनजान से रहते है
अब न कहिए फकत बेटी को परायी
घरों में बेटे भी अब मेहमान से रहते हैं
नहीं मांगते इज्ज़त बाप का नाम बताकर
इस जहां में हम अपनी पहचान से रहते हैं
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कुछ खरीदने की चाहत में, खुद बिक जाओ...😅
खुद को इतना मत तराशो, कि मिट जाओ..💔-
खुशी खड़ी रही उम्र भर दहलीज पर मिरे
मैंने गम को अपने अंदर से जाने ना दिया-
अजीब कशमकश है देखें तो क्या देखें...😍
चांद को देखें या आपका चेहरा देखे...❤️❤️-
खुदा न करे हम इतने मुतमईन हो जाए
कि फिर किसी बेवफ़ा पर यकीन हो जाए-
रूक- रुककर उठती है, आह दिल से
चाहकर भी नहीं जाती है, चाह दिल से
आबाद है बेशक, मेरे चेहरे का शहर
मगर हो चुके है जर्जर, तबाह दिल से-
मौत का चेहरा मुझे साफ साफ याद है...
इतनी बार उसको इतने करीब से देखा है-
कोई बददुआ है या किसी की बुरी नज़र..
मेरी मोहब्बत बड़ी कमजोर हो गई है-