किसी भी स्थिति- परिस्थिति में लड़ाई- झगड़े का कारण
लोगों की मानसिक स्थिति में परिपक्वता की कमी है।
परिपक्वता की कमी का कारण आपका लोभ,
क्रोध, ईर्ष्या, बुराई करना इत्यादि दोष है।
वर्तमान में चल रही समस्या के हल को दरकिनार कर
व्यक्ति की पिछली गलतियों की बुराई करना।
किसी व्यक्ति द्वारा पिछली गलतियों को ना भूलकर,
वर्तमान में उन बातों पर बहस करना।
परिपक्वता की कमी के लक्षण है।
वर्तमान में इस समस्या से अधिकांश लोग
ग्रसित है।
फिर चाहे मैं भी क्यों ना हूं?-
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"बहुत दुखद है यह कि, हमारे रहने के लिए जरूरी घर बनाने के लिए, हम हमारे जीवित रहने के लिए जरूरी पेड़ों को काट रहे हैं।"
मनुष्य अपना सर्वनाश स्वयं करना चाहता है, मानव स्वयं समस्याओं को निमंत्रण देता है, व्यक्ति स्वयं प्रलय लाना चाहता है।-
हमारे लिए सब कुछ है। हमारी धरा, हमारी मिट्टी, हमारी मातृभूमि, मां भारती। जो हमें राष्ट्रवादी से लेकर अंतर्राष्ट्रीयवादी की विचारधारा के सिद्धांत की ओर ले जाती है।
🇮🇳गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं।
-Just IAS Foundation-
नरकासुर को प्राप्त हो जाने के कारण उसका वध करने के लिए भगवान श्री वासुदेव कृष्ण को सत्यभामा जी का सहारा लेना पड़ा।
व्यक्ति को भी अपनी बुराइयों का वध करने के लिए सज्जन पुरुष का साथ चाहिए। व्यक्ति स्वयं अपनी बुराइयों का वध नहीं कर सकता।
नरक चतुर्दशी की हार्दिक शुभकामनाएं।🙏😊-
जीवन का उद्देश्य मात्र यह है। कि, भारतवर्ष में परिवर्तन की एक ऐसी चिंगारी लगाई जाए। जो सूर्य बनकर संपूर्ण संसार को अलौकिक कर दे। नई आशाएं उत्पन्न कर दे।
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किसी कार्य को करने, कुछ प्राप्त करने का हठ अर्थात ज़िद आपके अहंकार को दर्शाती है।
किसी कार्य को करने, कुछ प्राप्त करने का संकल्प आपके विश्वास को दर्शाता है।
जैसा चल रहा है, चलने देना। आपका हठ होगा। समाज में परिवर्तन लाना ।आपका संकल्प होगा।
हठ या तो शीघ्र ही टूट जाएगा या आपको पागल बना देगा। जैसे कि हिटलर। किंतु संकल्प आपके संपूर्ण जीवन में बना रहेगा।
जीवन में हठ को नहीं, संकल्प को महत्व देना चाहिए।-
जीवन की यात्रा निरंतर है।
जिसका कोई अंत नहीं।
स्थितियों को नियंत्रण करने में,
हम वर्तमान समय को नष्ट कर देते हैं।
जबकि समय के साथ स्थितियां नियंत्रण में आ ही जाती है।
यही सत्य है अर्थात जीवन के यथार्थ को समझें।-
एक रचना, जो पारिवारिक अस्थिरता के चलते आपके अस्थिर मस्तिष्क को, आशा है। स्थिरता प्रदान करेगी।
"जब समय हमारे अनुरूप ना चल रहा हो, सब कुछ अच्छा करके गलत ही हो रहा हो, सही सोच कर भी बुराई मिले। तब स्वयं को पूरी तरह व्यस्त कर देना चाहिए। रिश्तो की डोर मजबूत करने में जीवन कम पड़ जाएगा। रिश्ते कभी टूटने नहीं, किंतु उनकी फिक्र करते-करते हम जरूर टूट जाते हैं। जिन्हें रिश्ते की फिक्र है। वे हमेशा सकारात्मक वातावरण निर्मित करने की ही कोशिश करेंगे। सकारात्मकता ही अस्थिरता को स्थिरता में परिवर्तित कर सकती है। सुगम और सुलभ वातावरण निर्मित करने के लिए, मस्तिष्क द्वारा बुराइयों को अनदेखा करना सीखना चाहिए। नकारात्मक विचार को स्वयं पर हावी ना होने दें। 'श्रीमद्भागवत गीता' के अनुसार,"हमें अपने कर्म पर विचार करना चाहिए, परिणाम पर नहीं। परिणाम को कोई बदल नहीं सकता। परिणाम कर्म पर निर्भर होते हैं, आसक्ति पर नहीं।" कटु सत्य है, पारिवारिक सहयोग की कमी आपको अपने लक्ष्य से वंचित कर सकता है। वही यह सहयोग आपके लक्ष्य को शीघ्र ही संभव बना देता है।
यथासंभव प्रयास करना चाहिए कि, आप सकारात्मक रहे। अपने यथार्थ व्यक्तित्व के साथ न्याय करे। बुराइयों को स्वयं पर हावी ना होने दें। किसी भी बात पर शीघ्र प्रतिक्रिया देने से बचें एवं धैर्य को धारण करें। प्रसन्ना मुखी रहे। घृणा की जगह प्रशंसा करने को स्थान दें।"-
"कांच दिखता साफ, स्वच्छ और बढ़िया है।
किंतु एक चटकने से टूट सकता है।
बुजुर्ग व्यक्तियों की हड्डियां कांच के समान होती है।
देखभाल ठीक तरीके से की जानी चाहिए।"-
''कलयुग में, जीवन जीने के लिए धर्म के साथ किंतु कलयुगी रूपी नदी की धारा के साथ बहना सर्वोत्तम मार्ग है।''
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