कभी कभी आते हैं तूफान बेशक
तैयारी मगर ये सदियों की होती है-
कभी तुम साथ थे,
कभी तुम नहीं थे
समझ ही न आया,
कि जिंदगी के घाव थे,
या तुम मरहम थे
कभी खामोशी में बातें थी
कभी बातों में तुम थे
ऐ वक्त गुज़रे हुए
जब तुम थे, तो तुम में ही हम थे-
कई शब्द छिपे होते हैं खामोशी में
कई अर्थ छिपे होते हैं शब्दों में
इन शब्दों अर्थों की राजनीति से
कहीं ऊपर है सिर्फ एक मौन-
सच कहते हैं लोग
बेटियां बन जाती हैं बोझ
जब बाप के पास न हो
धन दौलत और दहेज़
जब ससुराल वालों को हो
सस्ती चीजों से परहेज़
तो अक्सर कमज़ोर हो जाया करते हैं
बाप के मज़बूत कंधे
जिनपर बैठकर मेला घूम आती थी
फूल सी नाज़ुक बिटिया
अब नहीं चल पाती एक कदम भी
बिना शगुन और नेग
न देख पाती है पिता की तंग मुट्ठी
न रोक पाती है ससुराल की
नाजायज़ मांग को
थक जाती है नज़र दौड़ाती
हर दिशा में कोई रास्ता खोज
इसलिए कभी कभी
सच कहते हैं लोग..।-
मैं याद रखूँगी...
मैं याद रखूँगी हर एक बात
याद रखूँगी तुम्हारा हर एक जज़्बात
याद रखूँगी हर एक वो शब्द
जो निकला होगा तुम्हारे लब से मेरे लिए
याद रखूँगी मैं तुम्हारा प्यार
दोहराउंगी उसे एक नहीं कई कई बार
याद रखूँगी तुम्हारा दिया हुआ सम्मान
और हां साथ में अपमान
याद रखूँगी मैं अपनेपन का भाव भी
या कभी तोड़ा हो तुमने विश्वास
याद रखूँगी मैं तुम्हारे मन की वो मिठास
और साथ ही याद रखूँगी तुम्हारी दी हुई कड़वाहट
आज भी, कल भी और सालों तक
मैं सहेजे रखूँगी मन गठरी में कहीं
याद रखना, मैं याद रखूँगी हर एक बात...
हर हिसाब, हर जज़्बात जो छूकर जाता है मुझे...
उन्हें याद रखना फ़र्ज़ जो है मेरा...-
जो मेरे सुख-दुख में कभी शामिल ही न थे
वो शायद मेरी दोस्ती के काबिल भी न थे-
बोलना सभी को आता है मगर
कब, किसे, कितना
और कैसे बोलना है
ये हर किसी के बस की बात नहीं
-
प्रेम का रंग बिखेरने की खातिर...
सूखते हैं, पिसते हैं, बिखर जाते हैं
रंगों में सिमट कर वो फूल
और एक हम हैं,
न कभी अहम त्यागते हैं
न खोखले उसूल...
काश कि एक रंग हो बस मानवता का,
न कोई बैर न स्वार्थ
उस दिन बिखरेगा आनंद,
उदित होगा होली का सत्यार्थ
होली मुबारक हो !-
aaj phir chhatpataya naritva,
aaj phir lag uthi aag ryday me...
aaj phir sharmsaar hui insaniyat..
aaj phir macha hai kohram shahar me...
... gali me khelta bachpan,
school se lout ti masoomiyat,
pati k sath ghoongat me ghoomti sharm.,
ya gharo me kam karne wala becharapan..
roti hui ma ki mamta.,
tut te rakhi k dhage,
tar tar hota har rishta,
pita ab khud ko samajhte abhage,
jayaz hai unka rona,cheekhna,
unki saanso ka atakna
har dam marte hue bhi,
jeena sikhna...
gang rape ka shikar
us nari ka astitv ab kitna hai..
ye vichar ban k chitkar..
har dam jhakjhor rahe hai...
sone n de rone n de.
aise marz ki ab dawa kuchh nahi...
jo insaan ko haivan bna jata hai.
"sharirik bhook" ko khud ki shant kar...
kuchh zindgiyaan.
sda k liye
"bas barbaad" kar jata hai-
सच है कि दरारें कभी मिटतीं नहीं
कोई छुपा भी दे तो दिमाग से हटती नहीं
रिश्तों को कांच सा न रखिये जनाब
गर टूट ही जाए तो चुभन का डर है
किरचें कभी हाथों में नहीं सिमटतीं-