That house of thoughts sulking in the corner,
yet mesmerizing like a fluffy cloud to a distant observer,
And, as he neared the spectacle he was smitten with,
he stood perplexed as to where have those aesthetics vanished;
As he caught his breath and stared deeper,
his thoughts went still, and the house seemed like never before!-
Mind of thinker
Heart of dweller
Speaks my mind
Candid thoughts with a hint of de... read more
That day the flower didn't bloom.
That day, his little heart was in gloom.
That day, he gazed long at his pencil.
Only if he could infuse life into a stencil.
So, his little fingers traced flowers and vines.
And, his heart rejoiced when the scenery turned alive !-
कोई शमा की तरह जलता रहा
कोई परवाने की तरह उड़ता रहा
कोई खुद से बेख़बर,
कोई सब से बेपरवाह,
कहीं शीशे के महल में,
तो कहीं मिट्टी के घर में,
बेतकल्लुफ सा दीदार के लिए
बस खयाली ख्वाब बुनता रहा,
सिमट जाता था वो
उन खयालों के दामन में
सोचता था वो की
कि आएगा वो उसके बुलाने पर,
साजिशों की आहट को सब्र से सुनता रहा
फ़िर भी कुछ अश्कों से, कुछ मुस्कराहटों से,
वो हज़ारों ख्वाहिशें बुनता रहा!
अनजान नहीं था वो अंजाम से,
हैरान नहीं था वो अलगाव से,
पर मोहब्बत से उसका रिश्ता था कुछ ऐसे,
जैसे फूलोँ का खुशबू से।
उसे चाहत नहीं थी मंजिल की,
बस जुनून था सफर का,
क्यूंकि भँवरे और दिलजले से परे,
उसे एहसास का सुरूर था,
वो खोना चाहता था चाहतों के दरिया में,
वो डूबना चाहता था अंगारों के सागर में,
मिटाकर खुद को, गावाकर सब कुछ,
वो समाना चाहता था इश्क के ढाई पन्नों मेँ.-
कुछ साजिशों की कसक में
कुछ उम्मीदों की दस्तक में,
सुकून की एक मुंडेर ढूँढ़ रहा हूं,
जहाँ ठहराव का घरौंदा बना सकूं
वो अलक्ष्य मंजर ढूंढ रहा हूं,
यूँ तो साहिल बहुत है मेरी खाना बदोशी के,
पर इस महकमे से कहीं दूर
अपनी पतंग की वो डोर ढूंढ रहा हूं!
कहीं मिल जाए वो तो होगी रात में सेहर
कहीं दीदार हो उसके, तो आराम करूँ दो पहर,
वैसे तो मुमकिन नहीं उसे बांधना,
पर होकर उससे मुखातिब दिल कहता है कि अब लौट आऊँ अपने घर.
क्या मुमकिन है वो मुलाकात,
क्या वक्त देगा मेरा साथ,
ऐसे सवालों की उलझन में समझो
बस अपनी खोयी हुई धुन ढूंढ रहा हूं ।
ढूँढ रहा हूँ बेसब्र इस जिंदगी के बिंदु को
इन बेहिसाब फंसानो में ,
कि कहीं किसी रोज मिल ही जाऊँगा
उससे कुछ अनजान बहानों से!-
कभी फुर्सत में मैं भी सपने सुलझा लेता हूं,
कुछ आम, कुछ खास ख्वाहिशों की महफिल सजा लेता हूँ,
यूँ तो हजारों ख़्यालों की कतारों में कैद सा रहता हूँ,
पर कभी बेतकल्लुफ सा किश्तों में एक संसार बसा लेता हूं,
सोचता नहीं , समझता नहीं, बेपरवाह, सिरफिरा सा
एक काग़ज़ की मशाल बना लेता हूं,
कि जब मेरी खामोश गहराईयों की चिंगारी
इन बेपरवाह ख्वाबों के रेशों से मिल जाएगी,
तो रोशनी की वो शर्मीली लौ,
खुद ही अपना रास्ता बनाएगी।
और जब वो रोशनी खुद ही जगमगायेगी
तो मेरे अलगाव भरे ख्वाबों में यूँही रस भर जायेगी।
पर यह अक्खड़ मन फिर से दीवार खींच देता है,
मेरे और मेरी उड़ान के बीच खौफ और शक भर देता है,
पूछता है मुझसे क्यूँ पंख दे रहा है अपनी गुमनाम चाहतों को,
जब अंजाम उनका लिखा है मायूसी के किनारों में!
बेबस मैं फिर से उसे सुनता हूं बिन सवालों के,
कि क्या कभी नहीं जी सकता मैं बिन इन बेबुनियाद हवालों के,
और फिर एक फुसफुसाहट ज़हन मेँ गूंजती है
कि क्यूँ है तू अपने ख़यालों के सहारे,
जब तू खुद खुदी से परे वो खुशनुमा एहसास है,
जिसे ना सिफारिश चाहिए और ना ही नसीहत के पहाड़े!-
चलो फिर से हौले से मुस्कराते हैं,
इस उलझन भरी रात में एक दीया जलाते है!-
कभी मिलना हमें इस देहलीज़ के पार,
तो फुर्सत में खोलेंगे अपने दिल का हाल,
वहाँ ना रुसवाई होगी ना तन्हाई,
बस होगा कुछ तो मेरे इश्क की गवाही,
ना आंसूं होंगे ना पलभर के मेले,
बस तुम और मैं होंगे ख़ामोशी में अकेले,
ना मांगे होंगी और ना ही शिकायतें,
बस तेरे मेरे बीच खत्म होंगे फ़ासले,
जैसे सवालों को मिल जाये जवाब का साथ,
और बगीचे में फूल और कांटे करें साठगांठ,
शायद ऐसे ही होगी हमारे आशियाने की शुरूवात,
जब बीत जाएगी जीवन की रैना और बिछेगी मौत की सौगात,
क्यूंकि
तब मिलना होगा कुछ ऐसे आसान,
जैसे नदिया का सागर से अनूठा मिलान!-
चार शब्दों की कहानी में, लोग अपनी दुनिया ढूँढ रहें है,
कौन समझाये उन्हें कि, शब्दों मेँ बस दिलासा मिलता है सुकून नहीं,
क्यूंकि जो खुद में कहीँ खोया है,
उसे भला कोई और कैसे ढूँढ पाएगा.-
वो भगाते रहे, हम भागते रहे
और भागते-भागते एक अर्सा बीत गया,
सोचा था हमजोली हैं एक बस्ते के,
पर वो खिलोना समझते रहें सस्ता सा.-