कोई भरोसा नहीं इस ज़िंदगी का
कब अलविदा कह जाए
आज मूंदी हैं पलकें
अगली सुबह की आस में
कौन जाने अगली सुबह आए न आए
गिले शिकवे मिटा दो सभी से; आज इसी क्षण
क्या पता जीवन का ये चक्का
कब हमेशा के लिए थम जाए
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मुझे यकीं है तुमपे
हाँ मै कभी तुम्हें...आज़माउंगी नहीं
चाहा है मैने बस इक तुम्हें
किसी और को कभी चाहूँगी नहीं
मना नादाँ हूँ
थोड़ी नासमझ भी
पर बुरे वक़्त में
तन्हा छोड़कर जाऊँगी नही
हाथ थाम लिया है अब तुम्हारा
तो ताउम्र रिश्ता निभाऊँगी यूँही
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वीरान सी लगती हैं
अब ये मोहल्ले की गालियाँ
जब से तुमने अपना शहर बदला है-
बीते हुए कल की किसको फ़िक्र है
हमें तो आने वाले कल को खूबसूरत बनाना है-
क्या कहें...
कुछ तो बात है उन नूरानी नज़रों में
जो हर लम्हा बस उनमें डूब जाने को दिल करता है-
कुछ तो रिश्ता है तुम्हारा
मेरी इस कलम के साथ
जब भी लिखने बैठती हूँ
ज़िक्र तुम्हारा
हो ही जाता है-
हर दुख: सुख में मेरे साथ रहा है वो
दूर होकर भी मेरे बेहद पास रहा है वो
कैसे करूँ उसकी पाक मोहब्बत पर मैं एक भी सवाल
मुझसे दूर रहकर भी ; मेरे लिए
हर लम्हा वफ़ादार रहा है वो
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कभी सोचा न था
एक वक़्त ऐसा भी आएगा
कोई हमें भी इतना टूट कर चाहेगा
अगर ख़ामोश हो जाऊँ कभी
मेरी खामोशी को भी ; वो पल में समझ जाएगा
कभी सोचा ना था
एक वक़्त ऐसा भी आएगा
जब मुस्कुराएंगे हम
और वजह उसे बताया जाएगा
कभी सोचा न था
एक वक़्त ऐसा भी आएगा
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