सियासत मालिन हैं,
यहां देश को कौन पूछे??
आपस में लड़ते हैं रोज़,
गाथा वीरों की कौन पूछे??-
हर शब्द आज, कुछ कम से लगते हैं,
पिता के तप के आगे, ये दौलत खाक से लगते हैं ।।-
कोशिश करनी हैं तो चांद सी करना, जो
रोज़ बढ़ता हैं खुद को पूरा करने के लिए।-
ईद के चांद से, करवाचौथ का चांद हो जाते हो,
वाकई धर्म निरपेक्ष हो, या सिर्फ ढोंग रचाते हो।-
श्याम! रास अब कई रचा लिए,
कहो किस संग होली खेलोगे??
मन बसी राधा,रंग रंगी मीरा
या अबीर प्रेम का,
भार्या को भी लगाओगे।।
धानी प्रीत की ओढ़े अब तक,
आस तुम्हारी करती प्रिये,
संपूर्ण तुम्हे किस विधि पाऊं,
साथ रह कर भी तुम दूर प्रिये।।
मोहन खड़े मुस्काए उस पल,
ये नादान प्रश्न कैसे सुलझाऊ।
आधा अंश हो मेरे अस्तित्व का,
प्रीत के रंग उसे कैसे न लगाऊं।।-
असंख्य कृतियां बिखेरते हुए
सृजन से समाप्ति समेटे हुए
मिलना इस अनसुलझी कहानी से कभी
प्रकृति से आंख मिजोली खेलते हुए।।-
न गण ने मान रखा,
न तंत्र का सम्मान हुआ।
लहरता रहा तिरंगा शान से,
पर मलिन सारा हिन्दुस्तान हुआ।।-
खुशियों की दीवाली,
कुछ ख्वाहिशों वाली।।
पुराने रिश्तों में,
फिर मिठास घोलने वाली।।
नए रिश्तों के साथ
पुराने नाते संग रखने वाली
अपने संस्कृति के साथ,
नई परम्परा अपनाने वाली
हां ये दीवाली हैं,
अधियारे से रोशनी तक लाने वाली।।-
ओ चांद हमारे, तेरा रस्ता निहारे
मिलन को व्याकुल, ये नैना बेचारे
देना वरदान आज इतना ही मुझको
की पिया का साथ, रहे सदा हमारे-