लिखोगे असंख्य कहानियां एक दिन
तुम भी अपने उन किरदारों की
कभी संघर्ष से जुड़े घावों की तो
तो कभी सफल हुए उन प्रयासों की।
झलकेंगे तुम्हारे भी अश्रु खुशी के
एक दिन संकल्पित तो हो जाओ यारों
स्याही से किताबों को रंगने की
तो कभी ओझल होते उन सपनों की
लिखोगे असंख्य कहानियां एक दिन
तुम भी अपने उन किरदारों की ।
-
मन की कल्पना को लिखावट में उतारना
ये रात के गहरे अंधेरे बहुत परेशान करते है ,
देखते ही देखते तुम इस सन्नाटे में कहीं गुम से हो जाते हो
ये ना जाने कितने दिलों के कत्लेआम करते हैं
कोई डूबा हैं किसी तन्हाई में
तो कोई अपने आशियां की तलाश में
बड़े गुपचुप से हैं ये सन्नाटे तुम्हे शायद बड़े परेशान करते हैं।
ये रात के अंधेरे बहुत परेशान करते हैं।-
आज़ादी का जश्न मना हम यूं ही ख़ुश होने लगे
फिर सुना कहीं गली मोहल्ले में कुछ जुर्म होने लगे
मांगी थी आज़ादी उन फिरंगियों से यहाँ तो अपनों से ही क़ैद होने लगे
आज़ादी का जश्न मना हम यूं ही ख़ुश होने लगे
नहीं चाहिए ऐसी आज़ादी जिसमे महिला-बच्चे रोने लगे
कुछ दुष्कर्म से तो कुछ भूख से पीड़ित होने लगे
आज़ादी का जश्न मना हम यूं ही ख़ुश होने लगे
नहीं की कोशिश स्वयं को बदलने की बस सरकार और सियासत को कोसने लगे
तलाशने लगे नेहरु गाँधी बोस को दूसरों में
स्वयं उस पथ से विचलित होने लगे
आज़ादी का जश्न मना हम यूं ही ख़ुश होने लगे.....
चाहिए ऐसी आज़ादी जिसमें गरीब, मजदूर, महिला, बच्चों के सपनों में पँख लगने लगे
चंद अमीरों में सैकड़ो गरीब की संख्या घटने लगे
फिर 'एक भारत श्रेष्ठ भारत ' बनने लगे
और हम सब आज़ादी का जश्न मनाने लगे....
- प्रेरणा ✍️-
इस जीवन-ए-सफ़र के
मुसाफ़िर तुम भी हो और वो भी
फ़र्क बस इतना है वो मुसाफ़िर-ए-कारवां है
और तुम कारवां की तलाश में मुसाफ़िर बने हो
- Prerna ✍️
-
ये ऊल जलूल दुनिया की कहानियां बहुत रोचक हैं
कभी इसे लिखने का मन करता तो कभी मिटाने का-
ये ऊल जलूल दुनिया की कहानियां बहुत रोचक हैं
कभी इसे लिखने का मन करता तो कभी मिटाने का-
तुम कभी लौट आना फिर इस बारिश में
जहां चाय और मूंग के पकोड़े तुम्हारा इंतज़ार कर रहे होंगे-
घर के कोने में रखी वो कक्षा आठ की किताब
कुछ धुंधली यादों का तस्सवुर ज़रूर करा जाती हैं।-
संविधान इक आईन है ,
इस देश में रहने वाली उस राधा को जो रोज सुबह झाडू लेकर निकल पड़ती है सफाई करने ,
उस जनजाति का जो जंगलों के किसी कोने में जीवन बिता रही होगी ,
उस श्याम का जो कभी सुना करता है किस्से की उसके पिताजी को कक्षा में सभी बच्चों से अलग बिठाया था ,
उस मोहन का जिसने अपने दोनो पैर बचपन में ही खो दिए ,
उस सीमा का जो पढ़ने में अव्वल है किन्तु आर्थिक तंगी अवरोध उत्पन्न करती है ,
संविधान इक आईन है हम सब भारतवासी का
जिसने हमें गर्व से जीने का अधिकार दिया ।
-
जीवन के हर पड़ाव में फैले हुए अलाव से शीतलता की तलाश में बारिशों की आस से ,
निकलती घर से वो भी कुछ सखियों संग उठा बोझ जीवन का वो झुलसती हर आग से ॥
कभी कोमल हाथ लकड़ी का गट्ठर कांधे में थामे दिनभर बेच उसे फिर रात का खाना साधे ।
बस्ता थामे फिर वो चली बनूंगी अफ़सर उडुंगी आकाश में मिलेगी फिर आज़ादी मुझे ॥
फिर दिखी सूरत सुंदर प्यारी क्यों ना तू बन जा घर की बहू हमारी चूल्हा - चौंका, घर- - आंगन की जिम्मेदारी अब से सारी तुम्हारी।।
तपता बदन बच्चों का पोछे तूने खाना खाया रोज वो पूछे मां बनकर सबका कल्याण सोचे
निभाऊंगी सब किरदार मेरे बेटी, बहू, पत्नी, मां, बहन, सांस सब नाम हैं मेरे
कहती वो भी ये सब मन में अपने..
बस चाहती वो सम्मान
जीवन में बना सकूं मेरा अस्तित्व इस युग में....
तपती वो भी बस शीतलता की तलाश में.. मिले सके सुकून, प्यार, सम्मान हर J राह में...
जीवन के हर पड़ाव में फैले हुए अलाव से.. शीतलता की तलाश में बारिशों की आस से...-