Premprakash Pandey   (Premprakash pandey)
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SRF&JRF&Ph.D Research Scholar Banaras Hindu university varanasi
Joined 17 February 2021


SRF&JRF&Ph.D Research Scholar Banaras Hindu university varanasi
Joined 17 February 2021
19 APR AT 14:07

यूँ गमों को किसी से जताया न कर,
राज दिल का सभी को बताया न कर,
रेह लेकर खड़े हैं सभी हाथ में,
जख्म यूँ ही सभी को दिखाया न कर।।

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11 MAR AT 11:22


हर खुशी छीन लाऊं तुम्हारे लिए।
बेवजह मुस्कुराऊँ तुम्हारे लिए।।
प्रेम में,जीतना जीत होती नही।
हारकर जीत जाऊं तुम्हारे लिए।।

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7 MAR AT 20:23

राग में सन्यासी के तट
चलो बैठें यहीं पर
गूंजते हैं रागिनी के तट
चलो बैठें यहीं पर
अब कहो जो भीड़
में न कह सके थे
सो गए मन्दाकिनी के तट
चलो बैठे यहीं पर।

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7 MAR AT 7:06


दीप आँगन जलाऊँ तुम्हारे लिये।
सप्त सरगम सुनाऊँ तुम्हारे लिये।।
प्रेम के मोतियों को पिरोकर प्रिये।
प्रेम मन्दिर सजाऊँ तुम्हारे लिये।।

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7 MAR AT 7:00


शाम-सवेरे मन की गंगा,में तुम ही तुम बहते हो।।
नैनों से अपने मन की,परिभाषाओं को कहते हो।
तुम आते दुनिया भर की,हमको खुशियाँ मिल जाती है;
साँसों की इस माला में तुम,मोती बनकर रहते हो।।

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6 MAR AT 10:15

आज मौसम सुहाना चलें आइये,
दिल हुआ है दीवाना चले आइये,
कब तलक मैं जिऊंगा भला आस में
करके कोई बहाना चले आइये,,

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6 SEP 2023 AT 20:13

मैं चातक हूँ तू बादल है,
मैं लोचन हूँ तू काजल है,
मैं आँसू हूँ तू आँचल है,
मैं प्यासा तू गंगाजल है।
तू चाहे दीवाना कह ले,
या अल्हड़ मस्ताना कह ले,
जिसने मेरा परिचय पूछा, 
मैं तेरा नाम बता बैठा,
मैं तुझसे प्रीत लगा बैठा।।

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6 SEP 2023 AT 20:06

मैं उर की पीड़ा सह न सकूँ,
कुछ कहना चाहूँ, कह न सकूँ,
ज्वाला बनकर भी रह न सकूँ,
आँसू बनकर भी बह न सकूँ।
तू चाहे तो रोगी कह ले,
या मतवाला जोगी कह ले,
मैं तुझे याद करते-करते,
 अपना भी होश भुला बैठा।
मैं तुझसे प्रीत लगा बैठा।।

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19 AUG 2023 AT 9:29

कहाँ इतना प्यार और
कहाँ इतना जुनून मिलता है ।
तेरी बांहों में सिमट कर सोने से
यारा एक अलग ही सुकून मिलता है।।

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24 JUL 2023 AT 13:31

बेटी! तू ही जल जायेगी, आग छिपी गलियारों में।
प्रेम नहीं बस कामुकता है, इन झूठे बाजारों में।।

जिसके पीछे पागल तू वह,
प्यासा है तेरे तन का।
किया समर्पित क्यों सब उसपर,
मेल नहीं था जो मन का।।

जिस दिन मन भर जाना उसका, गिन लेगा बेकारों में।
प्रेम नहीं बस कामुकता है, इन झूठे बाजारों में।।

कृष्ण नहीं वह दुःशासन है,
बैठा चीरहरण करने।
बनकर श्याम नहीं आयेगा,
तेरा नेह वरण करने।।

दिखे तुझे मीठी नदिया वह, शामिल सागर खारों में।
प्रेम नहीं बस कामुकता है, इन झूठे बाजारों में।।

पढ़ -लिखकर बेटी तू अपनी,
एक नई पहचान बना।
सूरज बनकर अँधियारों में,
मातु- पिता का मान बना।।

लुटा न देना स्वाभिमान तू, झूठे प्रेम करारों में।
प्रेम नहीं बस कामुकता है, इन झूठे बाजारों में।।

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