मैं खारिज़ करता हूं तुम्हारी कही हर एक बात को,
मुझे, मेरे अनुभव को आगे रखने दो,
तुम ज़रा अकेला छोड़ दो आसमां में हमें,
इन ऊंचाइयों का स्वाद ज़रा मुझे भी चखने दो,
थक के, टूट के, हार के, बिखर जाने दो,
तुम मुझे एक बार मेरी लिखी कहानी भी कहने दो,
मुझे फिक्र है मेरी, और थोड़ी सी तुम्हारी भी
कुछ वक्त के लिए ही सही मुझे,
बस झील के किनारे किनारे ही बहने दो ।
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