प्रेम प्रकाश   (प्रेम प्रकाश)
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Joined 8 October 2020


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तुम ही कहो तुम ही सुनो
सब तुम्हारी है हम तुम्हारे हैं
लब भी तुम्हारा है
रब भी तुम्हारा है
महफिल तुम्हारी है

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शायद तुम में सब्र की कमी थी
सब कुछ ही तो दिया मैने तुमको
वक्त से लेकर उम्मीद तक
सिंगल से लेकर मंगल तक
अजनबी से अधिकार तक
शायद तुम में वफा की कमी थी
तुम्हे भी है मालूम ये
मेरी चाहत में क्या कमी थी ??

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कुछ चुलबुली बातें हो
थोड़े से पटाखें हों
हवाओं में ठहाके हों
सर्द ठंडी रातें हों
और आलू के पराठे हों
पेड़ के नीचे बेंच पर
हम यूं जमाने से दूर
आपस में खोए बैठे हों
मेरी यादों जहां बस
हम और तुम वोही चैन हों।।

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त्याग बलिदान
प्रदान दान ।।

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शुद्धता, विश्वास,
ईमानदारी, वफादारी

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मिलो जो फिर कभी तुम
तो दुनिया जहां को भुला के मिलना तुम
जब भी तनहाई में कोई साथ ना दे
चली आना वहीं तुम ।।

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कभी कभी जान भरते रहिए
कभी हंसते कभी गुनगुनाते रहिए
सुख दुःख तो आते जाते रहेंगे
बिना गिला शिकवा किए
एक दूजे से मिलते रहिए ।।

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करो तुम आज खुद से यही वादा
बनोगे नही कभी किसी के प्यादा

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थोड़ी सी वो मनमौजी है
मन चंचल उसका पर निर्मल है
तन कोमल उसका पर चंदन है
बोले तो मिश्री कानों में घोले
चिल्लाए तो रोम रोम कांप जाए
यूं तो है प्यार की मूरत वो
हर कोई जिसे चाहे ऐसी सिरत वो
है सीधी साधी सी पर लड़ाकन वो
है दुलारी प्यारी पर समझदार वो
एक पल को तो मुस्काए
अगले पल गुस्सा हो जाए
रूठे जो कभी मान भी जाए
आंखे उसकी गजल है जैसे
नजरों को सुकून दे जाए
बन जाती हैं कभी समुंद्र भी
ना जाने किसको डूबो जाए
लबों पे उसके लालिमा
और रहे कभी कभी गली भी
जैसे को तैसा ही समझे
अपने का उसको पता नही
जैसी भी है बिलकुल पहेली सी
बूझो(समझो) तो सब है अपनी सी!!

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