ज़िंदगी में ज़िंदगी ज़रा सा...
ये टूटना हर दिन का अक्सर, टुकड़ों में।
जुड़ जाना... ज़िंदगी से ज़रा सा।।
ये किस्से रोज़ के, धूल और नगाड़े।
लड़ना...ज़िंदगी से ज़रा सा।।
ये रूठना ख़ुद से खामखां, मान जाना।
मुस्कान...ज़िंदगी में ज़रा सा।।
ये जीत के हार जाना कहीं,
जीत जाना किसी से मैदान में उसी जगह।
इम्तिहान...ज़िंदगी में ज़रा सा।।
कुछ मेरे कुछ तेरे, सपने और ख्वाहिशें।
ये काश और आश...ज़िंदगी में ज़रा सा।।-
मार्च का पहला हफ्ता...
बाज़ार में मटर और तरबूज़ दोनों साथ-साथ है।
ठंड की हो रही, गर्मी से अब मुलाकात है।।
आखरी मटर, ठंडी की विदाई का दे रहा संदेश।
गर्मी की अगुवाई में, तरबूज़ का बाज़ार में प्रवेश।।
400 रुपए किलों का आम, चुपके से झांक रहा।
खरीददार मिलने की राह, घंटों से ताक रहा।।
Icecream और कुल्फी का डिब्बा भी, खुलने को बेकरार है।
ठंड और गर्मी के संगम में, सूना अभी व्यापार है।।
गर्मी के आगमन में, बरसात की पड़ी फुहार है।
ज़ुकाम और बुखार से, कुछ का बुरा हाल है।।
मार्च के पहले हफ्ते में आप सभी का अभिनंदन...
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एक युद्व खत्म, दूसरा है शुरू।
ख़ुद के कल के चेले हम, ख़ुद के आज के गुरू।।-
कुछ गम भी कुछ ख़ुशी भी।
कुछ ख़त्म भी कुछ शुरू भी।।
कुछ ख्वाहिशें है अधूरी।
कुछ कहकशा आखरी भी।।-
ज़िंदगी है तो जीना पड़ेगा...
इकाई के सपनों के लिए दहाई के लोगों के संग।
हज़ारों की भीड़ में लोगों के सैंकड़ों ये रंग।।
ये लाख जतन करोड़ों की दौलत के लिए।
अनंत समझौते और जंग सच्चे झूठे शोहरत के लिए।।-
इस बात में ना जाने कितनी सच्चाई है!
किसी ने कहा...
आँख और कान जब बंद हुए तो सफलता आई है।
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है सबको मंजिलों के पैगाम का इंतज़ार।
यहाँ रास्तों में अड़चनों की पूछ कहाँ!
क्या चल रहा, इसकी ज़िक्र फ़िक्र कहाँ?
क्या मिला ना मिला, उसी की पूछ यहाँ।-
सुप्रभात...
सूरज की लाल किरणे...
जीवन की एक आशा लिए।
जग को देता उजियारा...
खुशियों की अभिलाषा लिए।।
दिन की नए शुरूआत...
चाय की चुस्कियां, इरादा लिए।
खोज अपनी प्रयास का...
उम्मीदें कुछ पूरा, कुछ आधा लिए।।
करें हम भी रोशन किसी को...
परोपकार का संपूर्ण दावा लिए।
चमक उठे व्यक्तित्व हमारा...
ऐसा सुसंगत कर्मों की आशा लिए।।-
सुकून के लिए चाहिए...
साथ आपका कुछ देर के लिए।
दे दूं कुछ समय आपको,
कुछ पूरे तो कुछ आधे अधूरे।।
सुकून के लिए चाहिए...
चार नए पैसे अकाउंट में।
कर लूं कुछ ख़्वाब पूरे अपनों के,
कुछ पूरे तो कुछ आधे अधूरे।।
सुकून के लिए चाहिए...
कुछ घंटे की नींद गहरी।
कर लूं कुछ कर्म ऐसे,
कुछ पूरे तो कुछ आधे अधूरे।।
सुकून के लिए चाहिए
कुछ चमक किरदार में।
जला लूं ख़ुद को मैं भी,
कुछ पूरे तो कुछ आधे अधूरे।।-