Prem Patel   (Premanand Patel)
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Joined 12 November 2017


Joined 12 November 2017
4 JUL AT 6:21

कुछ भटक गए हो, कुछ भटकाए गए हो!
कुछ बहक गए हो या बहकाए गए हो!
चाय पीते हो क्या? इसका और उसका!
बातें सुनते हो? ख़ुद का या किसका!

किस्से और हिस्से? मेरे या तेरे!
ये बैठकी किसके साथ? ग़ैर या अकेले!
तुम्हारा...ये पूरा होकर के यूँ आधा हो जाना।
उनके बातों पर हाँ हाँ करते सिर हिलाना!

ये तुम्हारा, आधा पूरा समर्पण?
ये खोखलों के बीच में तन मन अर्पण!

जागो ज़रा प्यारे, उपकार करो ख़ुद पर।
कह दो उनसे...
जाओ कहीं और जाके अपना व्यापार बढ़ाओ।
हम सुलझे, जाके औरों को उलझाओ।।
हैं संपूर्ण तेरा अस्तित्व, बस थोड़ा इंतज़ार...
ना भटकों ना बहको, एतबार करो ख़ुद पर।।

विश्वास जताओ स्वयं में, ख़ुद को मार्ग दिखाओ।
किसी भटके बहके का मार्ग प्रशस्त कर जाओ।।
सारे दुविधाओं का हल है ख़ुद में ही।
कुछ पल साथ बैठकर...
भविष्य उज्ज्वल कर जाओ।।

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18 JUN AT 20:39

कलयुग...
कलम के सिपाही, हर ओर तबाही।
पीछे पड़े हुए लोग, ये आरोप प्रत्यारोप।।
झूठों की दुनिया, खोखले से किरदार।
ये अय्याशियों के अड्डे, दुनिया गुलजार।।
ये संवेदना और शब्दों का माया ज़ाल।
ये दिन, दोपहरी और रातों का विलाप।।
ये नशे में चूर, ये पिज्जा और मांस के मेले।
कुछ सोए से भरपूर, कुछ के झमेले।।
ये दीवारों के कान, अतीत के कुछ निशान।
ये कुछ शिकायतें, ये बनना अनजान।।
ये दिल दोस्ती और जिम्मेदारी का खेल।
ये नशे में गुम, खोखलो का मजबा और मेल।।

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5 MAR AT 0:13

ज़िंदगी में ज़िंदगी ज़रा सा...
ये टूटना हर दिन का अक्सर, टुकड़ों में।
जुड़ जाना... ज़िंदगी से ज़रा सा।।
ये किस्से रोज़ के, धूल और नगाड़े।
लड़ना...ज़िंदगी से ज़रा सा।।
ये रूठना ख़ुद से खामखां, मान जाना।
मुस्कान...ज़िंदगी में ज़रा सा।।
ये जीत के हार जाना कहीं,
जीत जाना किसी से मैदान में उसी जगह।
इम्तिहान...ज़िंदगी में ज़रा सा।।
कुछ मेरे कुछ तेरे, सपने और ख्वाहिशें।
ये काश और आश...ज़िंदगी में ज़रा सा।।

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2 MAR AT 22:38

मार्च का पहला हफ्ता...
बाज़ार में मटर और तरबूज़ दोनों साथ-साथ है।
ठंड की हो रही, गर्मी से अब मुलाकात है।।
आखरी मटर, ठंडी की विदाई का दे रहा संदेश।
गर्मी की अगुवाई में, तरबूज़ का बाज़ार में प्रवेश।।
400 रुपए किलों का आम, चुपके से झांक रहा।
खरीददार मिलने की राह, घंटों से ताक रहा।।
Icecream और कुल्फी का डिब्बा भी, खुलने को बेकरार है।
ठंड और गर्मी के संगम में, सूना अभी व्यापार है।।
गर्मी के आगमन में, बरसात की पड़ी फुहार है।
ज़ुकाम और बुखार से, कुछ का बुरा हाल है।।

मार्च के पहले हफ्ते में आप सभी का अभिनंदन...

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21 FEB AT 17:40

एक युद्व खत्म, दूसरा है शुरू।
ख़ुद के कल के चेले हम, ख़ुद के आज के गुरू।।

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24 JAN AT 18:30

कुछ गम भी कुछ ख़ुशी भी।
कुछ ख़त्म भी कुछ शुरू भी।।
कुछ ख्वाहिशें है अधूरी।
कुछ कहकशा आखरी भी।।

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23 JAN AT 0:12

ज़िंदगी है तो जीना पड़ेगा...
इकाई के सपनों के लिए दहाई के लोगों के संग।
हज़ारों की भीड़ में लोगों के सैंकड़ों ये रंग।।
ये लाख जतन करोड़ों की दौलत के लिए।
अनंत समझौते और जंग सच्चे झूठे शोहरत के लिए।।

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9 JAN AT 18:52

इस बात में ना जाने कितनी सच्चाई है!
किसी ने कहा...
आँख और कान जब बंद हुए तो सफलता आई है।

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9 JAN AT 9:44

इंसान की अच्छाई और बुराई भी।
सभी को अपने जैसे समझ लेना।।

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4 JAN AT 7:43

है सबको मंजिलों के पैगाम का इंतज़ार।
यहाँ रास्तों में अड़चनों की पूछ कहाँ!
क्या चल रहा, इसकी ज़िक्र फ़िक्र कहाँ?
क्या मिला ना मिला, उसी की पूछ यहाँ।

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