Prem Nirala  
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मैं कवि हूँ श्रृंगार रस का..,,
Joined 23 December 2018


मैं कवि हूँ श्रृंगार रस का..,,
Joined 23 December 2018
5 JAN 2020 AT 17:53

आँखें, चेहरे, लब, जुल्फ़ सब ख़ामोश रह गए,
अब तू आ भी गया तो तुझे खुदा बनाने नहीं आएंगे

माना, कि छत पे धूप इंतज़ार करता होगा तेरा
हम अब बार बार सीढ़ियाँ उतरने नहीं आएंगे

केह दो अपने शहर के हवाओं से कि ज़रा तहज़ीब में रहे
कि, हम अब छत पे गिले कपड़े सूखाने नहीं आएंगे

तराज़ू में तोलता होगा, वो मेरा ज़ख्म भर-भर के,
केह दो उनसे, हम अब बटखारे बनाने नहीं आएंगे!

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2 JAN 2020 AT 20:01

किसी को लिखना एक अत्यंत अदभुत अनुभूति हैं,
उसी तरह जैसे खून से लथपथ अपने बच्चे को माँ का चुमना!

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2 JAN 2020 AT 1:01

आ तेरी ख़ामोशी की कीमत लगा दूँ, मैं बाज़ार में,
यूँ कब तक बैठे रहोगे शहर के एक किराये मकान में!

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2 JAN 2020 AT 0:56

ख़ामोशी लबों की कईं दर्द बयां करेंगे,
तुम ठहरकर मेरी आँखों की मोहब्बत पढ़ लेना!

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16 MAY 2019 AT 17:04

मेरी आँखों को मक़ाम पाने का सुकूं अभी बाकी हैं
रुक जाऊँ ये कहाँ लिखा हैं, अभी तो पूरा आसमां बाकी हैं
ग़र में बिखर जाऊँ कभी तो खुद को समेट आऊँगा
ज़िंदगी दांव पर लगायी हैं मैंने, अभी तो पूरा खेल ही बाकी हैं!

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15 MAY 2019 AT 21:37

ज़रूरी नहीं की खुद को इठलाती इतराती हुई
तुम्हारी मेहबूब के हाथों की कंगन ही खनके
रोटियाँ बेलते वक्त मेरी माँ की चूड़ियाँ भी खनका करती हैं!

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11 MAY 2019 AT 9:08

तुफां जो उठी थी समंदर से, उसे सबसे पहले परिंदो ने देखा था

दम तोड़ती कराहती मछलियों को मैनें किनारों पर देखा था

मासूम परिंदो को क्या पता, की आँधियों ने पहले ही उसका घर देखा था

उजड़ती पेड़ों की जड़े, जैसे मानो कोई माँ के गर्भ से उसका बच्चा छिन लिया हो

और कहाँ हैं तेरा खुदा, मन्दिर में, मस्जिद में, चर्च में, कहाँ हैं??
हैं पता तो बता

कल तक तो उस खुदा को बचाते हुए मैनें खुद इंसान को देखा था

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10 MAY 2019 AT 12:29

मानव प्रेम, प्रेम का एक मात्र लालायित रूप हैं, और कुछ नहीं

प्रेम की परिभाषा अगर कोई सच में बता सकता हैं, तो वो कृष्ण के प्रेम में लीन कृष्ण की गोपियाँ बता सकती हैं

जो कृष्ण के पास रहकर भी कृष्ण के प्रेम और स्नेह से वंचित रही, फिर भी कृष्ण के प्रेम में ही लीन रही, और गोकुल जाते वक्त कृष्ण अपने साथ सारी गोपियों का मन ले गये थे

वो इस्लिये क्यूँ की प्रेम की परिभाषा का वर्णन प्रेम में रहकर उसके मन से हैं ना की उसके तन से

लेकिन आज के प्रेम में मन का तो पता नहीं लेकिन तन जरुर ले जाते हैं!
अगर आज का प्रेम कृष्ण के प्रेम के प्रेम जैसा ही हो जाये तो यकीन मानो प्रेम में लालायित तुम जैसों को प्रेम में प्रेम मिलेगा जिस्म नहीं!!

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2 MAY 2019 AT 21:50

ये जो उसूल हैं तुम्हारें मोहब्ब़त के
इसे तुम ताख़ो पर रख़ आओ
मैनें बदनामियों से डरना अब छोड़ दिया हैं

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1 MAY 2019 AT 15:18

अंगीठी पर कोयले की धिमी आँच में दो वक्त का सुकून जल रहा हैं

ढो कर लाये उसके सारे अरमानों पर हमने अपने हाथ जो सेक लिए

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