Prem Dhiran   (Prem Dhiran)
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Instagram : prem_dhiran
Joined 29 May 2020


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26 JUN 2022 AT 22:10

हर बार तुमसे यह कहते हुए किं "मुझे तुमसे प्रेम है,
मेरी कभी यह जिद नहीं रही कि,
तुम भी मुझे प्रेम करो....
मैं जानता हूं
प्रेम जताने का नहीं
निःस्वार्थ भाव से बांटने का विषय है...
मैंने तुमसे प्रेम बाटा
तुम कहीं और बाटने के लिए स्वतंत्र हो...

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11 FEB 2022 AT 19:49

कितना वक़्त लगता है-एक भ्रम को बनाने में। वे सारे पल जिनमें भ्रम का एक-एक शब्द मैंने रिसते हुए देखा है। उन महीनों और सालों के अकेलेपन के बाद भ्रम अचानक लोगों के बीच में बँट जाता है। मैं बहुत सँभालते हुए उनके बीच में भ्रम के पात्र पहचानें की कोशिश करता हूँ। कई महीनों की तोड़-फोड़ के बाद वह दिन वह क्षण करीब आते दिखाई देता हैं जब किसी अपने से बहुत कुछ कह चुके होते हैं और कह चुकने के बाद भी लगता है कि क्या वह हमारे कहे के बीच भ्रम की खाली जगह देख पाया ? जहाँ हम चुप हो गए थे? ये वे चुप्पियाँ ही हैं जो कतरनों सी हमारे संबंधों के आस-पास बिखरी पड़ी रहती हैं। ये भ्रम ही हैं जो हमारी परछाइयों को भारी कर देता हैं......— % &

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2 MAY 2021 AT 11:09

मुंबई अपनी ही रफ़्तार पर चल रही थी, पर जब भी मुंबई की लोकल मैं बैठता तो थोड़ा परायापन लगता I लोग अपने मैं रहते है, तब आँखे बंद कर सोचने लगता बचपन की चोट ही सही थी जिसमें दर्द कम और भावना ज्यादा होती थी..... बगल में एक उम्र दराज़ आदमी बैठा हुआ था,उसके हाथ में एक डायरी थी और वह उसमें कुछ लिख रहा था I मैंने उनसे पूछा की क्या वह ब्लॉगर है, उन्होंने कहा फेमस ब्लॉगर हूँ I फिर उन्होंने पूछा जिंदगी का सफ़र कैसा लगता है...? मैंने उत्सुकता से हस्ते हुए कहा "good very good ".फिर वह खुश हो गए और उन्होंने कहा क्या मैंने ये बात मेहसूस की है ?
मैं कुछ देर चुप रहा और फिर मुँह से निकला, नहीं I
                  तभी उन्होंने अपनी डायरी बंद की औऱ बोले,जब भी मैंने खुद को जिया है तब जाकर मैंने खुद को लिखा है I जब भी अपनी डायरी पढ़ता हूँ तो लगता है कितना सुखद जीवन जिया है मैंने I इसलिए मैं तुमसे कहता हूँ की इस बात को मेहसूस करना कभी भूलना मत I मैं स्तब्ध था उनकी बातों से I तभी उन्होंने कहा मुझे अब चलना चाहिए,अगले स्टेशन पर उतरकर आगे बढ़ गए,मैंने उनसे पूछा आपका नाम क्या है? मैंने देखा कि वह मुस्करा रहे थे I शायद इसीलिये हमें accidental मुलाकातें अच्छी लगती हैं.....

   

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28 FEB 2021 AT 15:07

सुबह....

आज उदयपुर की सुबह देखी थी। एक टेबल लगाता हुआ वेटर , हैण्ड मेड की दुकान का खुलना, जगन्नाथ मंदिर में आरती की शुरुआत । जय जगदिश हरे की आरती अभी भी मुझे याद है। वह बिल्कुल गांव में देखी सुबह जैसी थी, पर फिर भी बहुत अलग। औरतों का गनगौर घाट पर निकलना, हाथी पोल मैं लोगो की आवाज़, पिछोला नदी मैं गोते खाती नाव के चप्पू की सरसराट... यह सब किसी कहानी को बुननें जैसा लगता है। हर शहर में, हर गाँव में, अपनी कहानी की शुरुआत बिल्कुल अलग तरीके से करते हैं। कहानी एक ही है, पात्र भी लगभग वही हैं, पर कहानी बिल्कुल अलग। शुरुआत मुझे हमेशा बहुत पसंद , एक स्फूर्ति बनी रहती है-आशाओ की.....

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1 SEP 2020 AT 8:37

एक द्रोपदी ऐसी भी:- दाग

खिल उठती हूं अपने घर से,
आंगन को करती हूं रोशन अपने हुनर से
लाड़ली हूं माँ की,बाबा की गुड़ियां
ग़ुरूर हूं भाई का समान हूं परिवार का....
सुनकर दास्ताँ निर्भया की,
भेड़ियों की बस्ती मैं उस गली मैं चली थी
उस रोज शहर मैं एक रूह चीखी थी
खुब देखा उन्होंने ,हर हत्यकांड अपनाया था
सबने नोच खाया अपना मतलब निकलवाया
मौत को अपनाकर फिर भी न डरी थी
मुठी खोलकर हात जोड़कर फिर भी खड़ी थी
छीटे लहू के यूं दामन पर गिरे थे
जैसे ढेर मैं अपने सपने खोये थे
शकल से तो इंसान थे भेड़िये झुंड मैं खड़े थे
कुछ सुकून के पल अब जीने दो,
इस हैवानियत के शैतान को अब बस जलने दो...
और एक पल,और एक पहेर थोडी जिंदगी जी लेने दो.....
जो जुल्म हुवा था उसे भुलना भी था आगे बढना भी था,
पर हर रोज जो किसीं और निर्भया पे ये जुल्म दौहराता है ये घना अंधेरा फिर से जिंदगी की रोशनी छिन लेता है,
अब बस हो गया सहेना
अब इस द्रोपदी को वस्त्रहरण रोकने वाला अपना सखा धुंडने भी दो...
और एक पल,और एक पहेर थोडी जिंदगी जी लेने दो.....

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2 SEP 2021 AT 17:32

हर चीज इतनी उलझी हुई क्यों है? सोचा सबसे पहले रिस्तों को बिल्कुल रिस्तों जैसा किया जाए। हमेशा से लगता था कि अगर पीछे छूट रही यादों को एक बार  फ़िर से जीना सुरु कर दूं तो शायद वापिस रिश्ता पहिले जैसा हो। यादों को जीने गया तो भरोसा टूटता दिखने लगा। रिस्तों मैं भरोसे की दरारें कैसे भरी जा सकती है? सोचा कि इन सारी यादों को लिखूँगा, इतनी ईमानदारी से लिखूँगा कि सारी की सारी रिश्तों मैं की दरारें भर जाएँगी। रिश्ता वापिस नया हो जाएगा-बिल्कुल हमारे बचपन-सा। जब लिखने गया तो यादों के ढेरों अँधेरे कोने उभर आए। बहुत-सी असहज कर देने वाली कहानियाँ निकलीं। मैंने देखा, लिखने की वजह से रिस्तों में कुछ नई दरारें बढ़ गई थीं। यादें छलनी- छलनी हो चली थी। अब जब भी लिखने जाता तो यादों के बीच सूरज की रोशनी आर-पार हो जाती। रिश्ते में कुछ भी रिश्ते जैसा टिकता नहीं था......
                          -दिल की बात (लाला)

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6 JUL 2021 AT 14:46

मैं झीलों को देखता हूँ तो बार-बार सिर झुक जाता है। शर्म आती है खुद पर, हमारे भीतर कितनी ज्यादा अशांति है! कितना कमजोर है हमारा 'ख़ुद'! हर बार लगता है क्यों ना इस झील के प्रवाह के साथ हमारा 'ख़ुद' भी ओझल हो जाता।झील- ख़ामोश और सरलता से अपनी पूरी खूबसूरती और अपने सारे प्रसन्नता के साथ हमारे सामने खडी रहती हैं, पर हमारी नजर 'ख़ुद' के आगे देख ही नहीं पाती। उसे नहीं देख पाती जिसके होनें से हमने अपना 'ख़ुद' पाया है। उसकी बूंदे हर बहती हवा के साथ हँसती होंगी हम पर । हम जैसे सदियों से सदियों तक उनके पास आते रहेंगे, पर उन्हें कभी देख ही नहीं पाएँगे-चुप, शांत, प्रसन्न.....
   

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20 JUN 2021 AT 21:37

मैं बहुत पहले एक लड़के को जानता था जो एक घर बनाने का ख़्वाब देखा करता था। उस में वह खुद को दरवाज़े की तरह बनाना चाहता था पर हमेशा उससे ताला बन जाता। वह ताला बनाकर रुक जाता। फिर वह धीरे-धीरे उस ताले की चाबी ड्रॉ करता। अंत में वह चाबी किसके हाथ में होगी इस बात पर उसका ब्रश रुक जाता। वह उस तस्वीर को फाड़ता और फिर दूसरी तस्वीर बनाना शुरू करता। पर हर बार इस बात के जवाब पर चित्र रुक जाता कि उसके ताले कि चाबी कीसके हाथ में है ? क्यों वह चाबी नहीं हो पाया ? ताला होना क्या मुक्त उड़ने से समझौता है? उसने वह आदमी कभी नहीं बनाया जिसके हाथ में उसकी ताले की चाबी हो सकती है। वह लगातार कैनवास पर कैनवास फाड़ता रहा। समझौता, यह शब्द उसकी चौखट कभी लाँघ नहीं पाया। फिर बहुत वक़्त के बाद, एक प्रयास में ताले की चाबी टूट गई और पहली बार उसने समझौता यह शब्द से अपनी तस्वीर पूरी की.....

                                   - दिल की बात (लाला)

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19 APR 2021 AT 14:43

जैसे सुबह का होना एक कहानी की शुरुआत-सा लगता है।हर सुबह मिठी चाय नाटकीय जीवन को संभावनाओं से भर देती है। दिन ख़त्म होते तक हमारे हाथों में कभी तो एक ग़ज़ब का scene होता है, तो कभी बस एक शब्द। लेकिन असल कहानी कभी हाथ नहीं आती।
असल कहानी क्या है? असल कहानी वह धागा है जो हाथों से धीरे-धीरे छूटते चला जाता है। असल कहानी वह इंसान हैं जो दरवाजा खटखटाते हैं, पर उस वक़्त हम घर पर नहीं होते। असल कहानी वह शांति है जिसे कोई दूसरा पूरा करता है,और उस दूसरे का नाम वक़्त है जो पलटकर कभी वापस नहीं आता.....
  
                                     - दिल की बात (लाला)

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8 APR 2021 AT 14:54

किसी नए यात्रा की शुरुआत करना कितना कठिन है ये तब पता चला जब अपनी कहानी शुरू होती हुए दिख रही थी !मैं अपनी यात्रा को उस चौखट से शुरू करना चाहता हूं जहां हार जीत से पहले आती हो !
यात्रान्त को कितनी ही बार लिखने की कोशिश की है, पर ठीक यात्रान्त लिखने से हमेशा रह जाता हूँ। कई बार पूरी यात्रान्त लिख लेता हूँ और आख़िरी वाक्य पर अटक जाता हूँ-हर बार! हर बार लगता है कि वह एक वाक्य रह गया है कहीं, किसी यात्री की खोज में, किसी राही के वापसी  प्रतीक्षा में ! वह एक वाक्य आता नहीं है कभी, उसके बदले आते हैं बहुत-से यात्रा सरीखे दिखने वाले वाक्य।असल में मैंने सारा कुछ जो लिखा है, वह यात्रा सरीखा लिखा है-ठीक यात्रान्त नहीं, क्योंकि ठीक यात्रान्त तो अभी भी कहीं-किसी चौखट पर खड़ी है,  शायद किसी के इंतजार में......


                      - दिल की बात (लाला)

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