Preeti Tiwari   (सचीति)
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Joined 13 June 2018


Joined 13 June 2018
22 JAN 2024 AT 1:39

तुम जब भी मुझसे मिलने आना
तो हवा-सा बन कर आना
जो मेरी चारदीवारी में लगे
बंद खिड़की-दरवाज़ों से भी
भीतर आ सके
और मेरे बालों को
मेरे चेहरे पर बिखेर कर
उन्हें मुझे हथेली से
कान के पीछे ले जाता हुआ
देखने का इंतिज़ार करे।

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26 MAY 2023 AT 22:13

जेठ की दुपहरी में छिप-छिपाकर मिलते प्रेमी,
जैसे बसंत से छिप-छिपाकर खिलता अमलतास।

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30 MAY 2022 AT 11:58

लाल रंग में मैंने
तीन ही चीज़ें
सबसे ख़ूबसूरत देखी हैं-
बगीचे में खिले 'गुलाब'
मेरे माथे पर सजा 'सिंदूर'
और
तुम्हारे तन पर फबती 'शर्ट'

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17 MAR 2022 AT 14:53

घर में कौन सा सामान कहाँ रखा है,
मुझे याद रहता है।
महीने की किस तारीख़ को किसका जन्मदिन है,
मुझे याद रहता है।
किस पहर तुमसे जुड़ा क्या किस्सा हुआ है,
मुझे याद रहता है।
पर जब मैं तुमसे मुद्दत बाद इस शहर में मिलती हूँ तो
मैं अक्सर भूल जाती हूँ कि
मैं यहाँ फिर जल्दी नहीं आने वाली।
मैं अक्सर भूल जाती हूँ कि
हम फिर अपने-अपने शहरों में व्यस्त होंगे।
मैं अक्सर भूल जाती हूँ कि
तुमसे मिलने के लिए मुझे फिर अरसे भर का इंतिज़ार करना पड़ेगा।
कितनी भुलक्कड़ हूँ मैं!

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31 DEC 2021 AT 12:56

मुझे जनवरी से ज़्यादा
दिसंबर पसन्द है
जनवरी तुमसे-मुझसे
अभी अनजान है
पर दिसंबर जानता है
हमने अब तक
एक-दूसरे से
कितनी मोहब्बत की है

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23 OCT 2021 AT 2:27

मुझसे एक भूल हुई,
उसने मुझे चूमा और गले से लगा लिया।
मुझसे फिर एक भूल हुई,
उसने मुझे फिर चूमा और गले से लगा लिया।
मुझसे फिर एक भूल हुई,
उसने मुझे फिर चूमा और चला गया।
मुझसे फिर कभी कोई भूल न हुई,
मेरी भूल को चूम कर सुधारने वाला जा चुका था।

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25 SEP 2021 AT 18:18

आवश्यक है कि
निकलना हो शब्दों का
भीतर से बाहर
ताकि पहुँच सके वो
अपने गंतव्य तक।

शब्दों का भीतर संचय होना
बढ़ा देता है उनकी भीड़
जिससे
प्रथम बाहर निकलने की होड़ में
वे लगते हैं दबने-कुचलने अंदर ही अंदर।

एक-एक कर होती उनकी मृत्यु का दुःख
छलक रहा है मेरी आँखों से
उनकी मौत तोड़ रही है दम मेरा भी
मेरे अधर स्थिर हो रहे हैं
मैं मौन हो रही हूँ।

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19 AUG 2021 AT 18:17

अक्कासी से उतार दिया
तुमने यादों को सफ़्हे पर,
ज़हन कहाँ यह सब
इतनी ख़ूबसूरती से याद रख पाता।

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12 AUG 2021 AT 9:38

समेट ले गए
इस शहर से
तुम
तुम्हारा सामान
तुम्हारी डिग्री
और
हमारी यादें।

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8 AUG 2021 AT 22:36

जब किसी पूरे हो चुके कैनवस पर
गिरा दे कोई बच्चा काली स्याही,
जब किसी शाखा पर फूल खिलने से पहले
आ जाए पतझड़ का मौसम,
जब किसी के जान सकने से पहले
आकाशगंगा में टकरा कर नष्ट हो जाएँ दो सितारे,
जब किसी सूखी पड़ी भूमि पर बरसने लगे पानी
इतना कि वो परिवर्तित हो जाए बाढ़ में,
तब ये सभी घटनाएँ हो जाती हैं
दुःख, पीड़ा और अवसाद से भरी,
तब ये सभी घटनाएँ हैं
तुम्हारी और मेरी आख़िरी मुलाक़ात-सी।

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