तुम जब भी मुझसे मिलने आना
तो हवा-सा बन कर आना
जो मेरी चारदीवारी में लगे
बंद खिड़की-दरवाज़ों से भी
भीतर आ सके
और मेरे बालों को
मेरे चेहरे पर बिखेर कर
उन्हें मुझे हथेली से
कान के पीछे ले जाता हुआ
देखने का इंतिज़ार करे।-
जेठ की दुपहरी में छिप-छिपाकर मिलते प्रेमी,
जैसे बसंत से छिप-छिपाकर खिलता अमलतास।-
लाल रंग में मैंने
तीन ही चीज़ें
सबसे ख़ूबसूरत देखी हैं-
बगीचे में खिले 'गुलाब'
मेरे माथे पर सजा 'सिंदूर'
और
तुम्हारे तन पर फबती 'शर्ट'-
घर में कौन सा सामान कहाँ रखा है,
मुझे याद रहता है।
महीने की किस तारीख़ को किसका जन्मदिन है,
मुझे याद रहता है।
किस पहर तुमसे जुड़ा क्या किस्सा हुआ है,
मुझे याद रहता है।
पर जब मैं तुमसे मुद्दत बाद इस शहर में मिलती हूँ तो
मैं अक्सर भूल जाती हूँ कि
मैं यहाँ फिर जल्दी नहीं आने वाली।
मैं अक्सर भूल जाती हूँ कि
हम फिर अपने-अपने शहरों में व्यस्त होंगे।
मैं अक्सर भूल जाती हूँ कि
तुमसे मिलने के लिए मुझे फिर अरसे भर का इंतिज़ार करना पड़ेगा।
कितनी भुलक्कड़ हूँ मैं!-
मुझे जनवरी से ज़्यादा
दिसंबर पसन्द है
जनवरी तुमसे-मुझसे
अभी अनजान है
पर दिसंबर जानता है
हमने अब तक
एक-दूसरे से
कितनी मोहब्बत की है-
मुझसे एक भूल हुई,
उसने मुझे चूमा और गले से लगा लिया।
मुझसे फिर एक भूल हुई,
उसने मुझे फिर चूमा और गले से लगा लिया।
मुझसे फिर एक भूल हुई,
उसने मुझे फिर चूमा और चला गया।
मुझसे फिर कभी कोई भूल न हुई,
मेरी भूल को चूम कर सुधारने वाला जा चुका था।-
आवश्यक है कि
निकलना हो शब्दों का
भीतर से बाहर
ताकि पहुँच सके वो
अपने गंतव्य तक।
शब्दों का भीतर संचय होना
बढ़ा देता है उनकी भीड़
जिससे
प्रथम बाहर निकलने की होड़ में
वे लगते हैं दबने-कुचलने अंदर ही अंदर।
एक-एक कर होती उनकी मृत्यु का दुःख
छलक रहा है मेरी आँखों से
उनकी मौत तोड़ रही है दम मेरा भी
मेरे अधर स्थिर हो रहे हैं
मैं मौन हो रही हूँ।-
अक्कासी से उतार दिया
तुमने यादों को सफ़्हे पर,
ज़हन कहाँ यह सब
इतनी ख़ूबसूरती से याद रख पाता।-
समेट ले गए
इस शहर से
तुम
तुम्हारा सामान
तुम्हारी डिग्री
और
हमारी यादें।-
जब किसी पूरे हो चुके कैनवस पर
गिरा दे कोई बच्चा काली स्याही,
जब किसी शाखा पर फूल खिलने से पहले
आ जाए पतझड़ का मौसम,
जब किसी के जान सकने से पहले
आकाशगंगा में टकरा कर नष्ट हो जाएँ दो सितारे,
जब किसी सूखी पड़ी भूमि पर बरसने लगे पानी
इतना कि वो परिवर्तित हो जाए बाढ़ में,
तब ये सभी घटनाएँ हो जाती हैं
दुःख, पीड़ा और अवसाद से भरी,
तब ये सभी घटनाएँ हैं
तुम्हारी और मेरी आख़िरी मुलाक़ात-सी।-