Preeti Tiwari   (सचीति)
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Joined 13 June 2018


Joined 13 June 2018
29 APR 2024 AT 22:41

उस रात तुमने देखा मुझे
मेरे दाग़-धब्बों के साथ
मेरे गड्ढों के साथ
मुझमें पड़ी दरारों के साथ
मेरी कमियों के साथ
और चूमा मुझे
हर उन जगहों पर
जहाँ मेरे बदन में
नुक्स थे
तुम्हारे चुम्बन मुझ पर
सूरज की रोशनी-से पड़े
और मैं चमक उठी
तुम्हारे होने से उस रात मैं
पूर्णिमा का चाॅंद थी।

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22 JAN 2024 AT 1:39

तुम जब भी मुझसे मिलने आना
तो हवा-सा बन कर आना
जो मेरी चारदीवारी में लगे
बंद खिड़की-दरवाज़ों से भी
भीतर आ सके
और मेरे बालों को
मेरे चेहरे पर बिखेर कर
उन्हें मुझे हथेली से
कान के पीछे ले जाता हुआ
देखने का इंतिज़ार करे।

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26 MAY 2023 AT 22:13

जेठ की दुपहरी में छिप-छिपाकर मिलते प्रेमी,
जैसे बसंत से छिप-छिपाकर खिलता अमलतास।

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30 MAY 2022 AT 11:58

लाल रंग में मैंने
तीन ही चीज़ें
सबसे ख़ूबसूरत देखी हैं-
बगीचे में खिले 'गुलाब'
मेरे माथे पर सजा 'सिंदूर'
और
तुम्हारे तन पर फबती 'शर्ट'

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6 MAY 2022 AT 13:51

रात भर तुम्हारी गर्म साँसों ने जो
मेरे बदन का स्पर्श किया
सुबह वो सारी मेरे बदन पर
ओस की बूँदें बन जम आयीं

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17 MAR 2022 AT 14:53

घर में कौन सा सामान कहाँ रखा है,
मुझे याद रहता है।
महीने की किस तारीख़ को किसका जन्मदिन है,
मुझे याद रहता है।
किस पहर तुमसे जुड़ा क्या किस्सा हुआ है,
मुझे याद रहता है।
पर जब मैं तुमसे मुद्दत बाद इस शहर में मिलती हूँ तो
मैं अक्सर भूल जाती हूँ कि
मैं यहाँ फिर जल्दी नहीं आने वाली।
मैं अक्सर भूल जाती हूँ कि
हम फिर अपने-अपने शहरों में व्यस्त होंगे।
मैं अक्सर भूल जाती हूँ कि
तुमसे मिलने के लिए मुझे फिर अरसे भर का इंतिज़ार करना पड़ेगा।
कितनी भुलक्कड़ हूँ मैं!

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31 DEC 2021 AT 12:56

मुझे जनवरी से ज़्यादा
दिसंबर पसन्द है
जनवरी तुमसे-मुझसे
अभी अनजान है
पर दिसंबर जानता है
हमने अब तक
एक-दूसरे से
कितनी मोहब्बत की है

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16 DEC 2021 AT 21:51

"माँ! मेरे लिए सूट सिल दीजिए ना.."

माँ जानती हैं कि सूट सिलना है..
पर सिर्फ़ तुम जानते हो कि सूट क्यों सिलना है..

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23 OCT 2021 AT 2:27

मुझसे एक भूल हुई,
उसने मुझे चूमा और गले से लगा लिया।
मुझसे फिर एक भूल हुई,
उसने मुझे फिर चूमा और गले से लगा लिया।
मुझसे फिर एक भूल हुई,
उसने मुझे फिर चूमा और चला गया।
मुझसे फिर कभी कोई भूल न हुई,
मेरी भूल को चूम कर सुधारने वाला जा चुका था।

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25 SEP 2021 AT 18:18

आवश्यक है कि
निकलना हो शब्दों का
भीतर से बाहर
ताकि पहुँच सके वो
अपने गंतव्य तक।

शब्दों का भीतर संचय होना
बढ़ा देता है उनकी भीड़
जिससे
प्रथम बाहर निकलने की होड़ में
वे लगते हैं दबने-कुचलने अंदर ही अंदर।

एक-एक कर होती उनकी मृत्यु का दुःख
छलक रहा है मेरी आँखों से
उनकी मौत तोड़ रही है दम मेरा भी
मेरे अधर स्थिर हो रहे हैं
मैं मौन हो रही हूँ।

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