उस रात तुमने देखा मुझे
मेरे दाग़-धब्बों के साथ
मेरे गड्ढों के साथ
मुझमें पड़ी दरारों के साथ
मेरी कमियों के साथ
और चूमा मुझे
हर उन जगहों पर
जहाँ मेरे बदन में
नुक्स थे
तुम्हारे चुम्बन मुझ पर
सूरज की रोशनी-से पड़े
और मैं चमक उठी
तुम्हारे होने से उस रात मैं
पूर्णिमा का चाॅंद थी।-
तुम जब भी मुझसे मिलने आना
तो हवा-सा बन कर आना
जो मेरी चारदीवारी में लगे
बंद खिड़की-दरवाज़ों से भी
भीतर आ सके
और मेरे बालों को
मेरे चेहरे पर बिखेर कर
उन्हें मुझे हथेली से
कान के पीछे ले जाता हुआ
देखने का इंतिज़ार करे।-
जेठ की दुपहरी में छिप-छिपाकर मिलते प्रेमी,
जैसे बसंत से छिप-छिपाकर खिलता अमलतास।-
लाल रंग में मैंने
तीन ही चीज़ें
सबसे ख़ूबसूरत देखी हैं-
बगीचे में खिले 'गुलाब'
मेरे माथे पर सजा 'सिंदूर'
और
तुम्हारे तन पर फबती 'शर्ट'-
रात भर तुम्हारी गर्म साँसों ने जो
मेरे बदन का स्पर्श किया
सुबह वो सारी मेरे बदन पर
ओस की बूँदें बन जम आयीं-
घर में कौन सा सामान कहाँ रखा है,
मुझे याद रहता है।
महीने की किस तारीख़ को किसका जन्मदिन है,
मुझे याद रहता है।
किस पहर तुमसे जुड़ा क्या किस्सा हुआ है,
मुझे याद रहता है।
पर जब मैं तुमसे मुद्दत बाद इस शहर में मिलती हूँ तो
मैं अक्सर भूल जाती हूँ कि
मैं यहाँ फिर जल्दी नहीं आने वाली।
मैं अक्सर भूल जाती हूँ कि
हम फिर अपने-अपने शहरों में व्यस्त होंगे।
मैं अक्सर भूल जाती हूँ कि
तुमसे मिलने के लिए मुझे फिर अरसे भर का इंतिज़ार करना पड़ेगा।
कितनी भुलक्कड़ हूँ मैं!-
मुझे जनवरी से ज़्यादा
दिसंबर पसन्द है
जनवरी तुमसे-मुझसे
अभी अनजान है
पर दिसंबर जानता है
हमने अब तक
एक-दूसरे से
कितनी मोहब्बत की है-
"माँ! मेरे लिए सूट सिल दीजिए ना.."
माँ जानती हैं कि सूट सिलना है..
पर सिर्फ़ तुम जानते हो कि सूट क्यों सिलना है..-
मुझसे एक भूल हुई,
उसने मुझे चूमा और गले से लगा लिया।
मुझसे फिर एक भूल हुई,
उसने मुझे फिर चूमा और गले से लगा लिया।
मुझसे फिर एक भूल हुई,
उसने मुझे फिर चूमा और चला गया।
मुझसे फिर कभी कोई भूल न हुई,
मेरी भूल को चूम कर सुधारने वाला जा चुका था।-
आवश्यक है कि
निकलना हो शब्दों का
भीतर से बाहर
ताकि पहुँच सके वो
अपने गंतव्य तक।
शब्दों का भीतर संचय होना
बढ़ा देता है उनकी भीड़
जिससे
प्रथम बाहर निकलने की होड़ में
वे लगते हैं दबने-कुचलने अंदर ही अंदर।
एक-एक कर होती उनकी मृत्यु का दुःख
छलक रहा है मेरी आँखों से
उनकी मौत तोड़ रही है दम मेरा भी
मेरे अधर स्थिर हो रहे हैं
मैं मौन हो रही हूँ।-