मेरी कुछ रातें उसके किस्सों के सहारे से बसर हो गई,
उस दरमियाँ,
कभी खुद की कभी उस की, खुद ही से बातें हो गई।
मैंने कलम अपने इश्क़ को बयां करने के लिए उठाई थी,
कम्बख्त,
फिर उसकी यादों में उसकी बात हो गई,
बस इसी गुफ़्तगू में बिना लिखे ख़राब एक और रात हो गई।।
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