पाया है इनकार तुमसे
बेवजह बातों में इकरार तुमसे
बैठे बिठाए शिकायतें तुमसे
खामोशी में इकरार तुमसे
और पाया है प्यार तुमसे।।-
जो मेरे मनसे कलम द्वारा कागज पर उतर जाती है।।
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कभी
कानों में सुनाई देगी
हल्की सी
सरसराहट
फिर जो मुड़कर देखोगे,
पाओगे अपने बीते
किरदार की
गुनगुनाहट,
खामोशी से मुड़कर देखना
कहीं खो ना जाए
तुम्हारी अपनी.....
मिली शख्सियत ।।-
मेरी मां जुड़ा बनती है
अपने बालों को कस कर बाधती है
पर वास्तविकता तो यह है
हमारे सारे सवालों के बोझ को ढोती है
वह मुझे भी जुड़ा बांधना सिखाती है
पर जाने कैसे पकड़ ढीली रह जाती है
और फिर कंघी में उलझ जाती है
फिर वह मुझसे कहती है
थोड़ा धैर्य रखना पड़ता है
जुड़े में क्या है?
समय आने पर खुद ही बन जाता है।।-
मेरी बेबसी भी क्या ख़ूब रंग लाई,
मांगा थोड़ा वक्त तो बहानों की झड़ी निकल आई।।-
हकीकत और प्रेम की गहराई बखूब मिलती है,
जब प्रेम में गहराई ना हो तो चतुराई भी कहाँ दम लेती हैं।।-
हां मैं निराश हूं,
प्रेम के अस्वीकार्यता से
लेकिन फिर निराशा क्यों
मैंने तो प्रेम
दिल की पूरी सुंदरता से किया।।-
वास्तविकता से
परे नहीं
अक्सर डर
समय के
साथ
क्रोध में
परिवर्तित
हो जाता
है।।-
खटकता है मेरे मन को
मेरे मन का रोना
उदासी में बैठे मन की
अभिलाषा खोना
खोकर के पाना
मन को सुकून देना
उस सुकून में
ठंडक मिल जाना।।-
इतना सब कुछ दुनिया में
और उतना ही वक्त लड़ने झगड़ने को,
पर जाने कहां से मिला छोटा सा दिल
थोड़े से प्यार के तरसने को।।-
कई दिनों बाद
आज मेरा दिल रो दिया,
क्या पाना था मुझे,
जो आज मैंने खो दिया।-