Preeti Bhatiya  
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Joined 20 August 2021


Joined 20 August 2021
19 JUN 2023 AT 19:57

यूँ इख़्तियार ना करा करो दिल पर ऐ हुजूर
इबादतों से भी इश्क़ में खलल पड़ता है...

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5 JUN 2023 AT 12:26

तो चलो जी ही लेते है....
इस दर्द को मुस्कुरा कर
पी ही लेते है...

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5 JUN 2023 AT 12:24

ख़ुदको भुला आए है...
एक तुम्हें पाने को
सब कुछ हार आए है...

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6 DEC 2022 AT 23:47

सुनो ना...
जाते जाते ले जाना मेरी साँसे भी....

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3 AUG 2022 AT 23:17

लोग टूट जाते हैं, एक घर बनाने में
तुम तरस नहीं खाते, बस्तियाँ जलाने में

और जाम टूटेंगे, इस शराबख़ाने में
मौसमों के आने में, मौसमों के जाने में

हर धड़कते पत्थर को, लोग दिल समझते हैं
उम्र बीत जाती है, दिल को दिल बनाने में

फ़ाख़्ता की मजबूरी ,ये भी कह नहीं सकती
कौन साँप रखता है, उसके आशियाने में

दूसरी कोई लड़की, ज़िंदगी में आएगी
कितनी देर लगती है, उसको भूल जाने में

- बशीर बद्र

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2 AUG 2022 AT 16:23

दूसरों के जीवन में जहर घोलने
वालों को नागपंचमी मुबारक़ हो...

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2 AUG 2022 AT 16:21

ख़ुश तो आज़ बहुत होंगे तुम...
आज़ दिन जो तुम्हारा है..

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18 JUL 2022 AT 18:17

कभी कभी यूँही तुम याद आ जाते हो
बस यूँही तुम महका जाते हो
अपनी यादों से वो गुजरी मीठी बातों से
बहका जाते हो....
इठलाना, इतराना और नख़रे दिखाना...
बस नज़र भर दिखने को वो तुम्हारा भाव खाना...
उसपर मेरा रूठ जाना
और तुम्हारा फिर भी ना मनाना...
बहुत याद आता है....
वो रेशमी सी रातों में तुम्हारा गुनगुनाना...
मेरी फरमाइश पर प्यारे से गीत सुनाना
और मेरा सुनते चले जाना
एक दूजे को चिढ़ाना...
वो अजीबोगरीब से नाम रखकर....
मुँह बिगाड़ना बहुत याद आता है.....
....याद आते है वो मीठे से दर्द...
जो यादें बन है मेरे पास
सहेजे और संभाले हुए प्यारे अहसास...
मानों रबड़ी की मिठास.....
कभी कभी यूही तुम याद आ जाते हो...

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7 JUL 2022 AT 15:49

हां सच कहते हो तुम कि मुझे फर्क नहीं पड़ता.....
हां मुझे फर्क नहीं पड़ता...
बदल सी गयी हूं मैं, कुछ सिमट सी गयी हूं
अपने ही रंग में लिपट सी गयी हूं...
अब रूठती भी नहीं, ना हैरान होती हूं
ना तुझसे नाराज़ होती हूं, ना परेशान होती हूँ...
बस तेरी बातें सुन मुस्कुरा देती हूं...
तुझे शायद और ज़्यादा समझने की कोशिश करती हूं...
वो जो तुम कहते थे ना कि कितना बोलती हूँ मैं..
और हरदम पुरानी बातों को तराज़ू पर तोलती हूं में...
खीझती हूं, झगड़ती हूं, ताने उलाहने इतने देती हूं मैं...
तो मौन हूं... ख़ामोश हूं अब मैं....
बस सुनती हूं तुम्हें और तुम्हारी ही आग़ोश में हूँ मैं..
अब छोड़ दिया है तुम्हें सताना, ज़बरन तुमसे कुछ सुनना और सुनाना..
हां छोड़ दिया है तुम्हें देखना और मुस्कुराना...
छोड़ दिया तुम्हारे संग वो गीत और ग़ज़ल गुनगुना...
समझ चुकी हूं में दस्तूर - ए - मुहोबत को
और बिन थामे तेरा हाथ भी तेरे साथ चलती हूं...
हर सांस के साथ तुझे महसूस करती हूं...
हां तुझमे ही जीती, तुझमे ही पलती हूँ...
पर ख़ामोश हूं मैं... तुझे कुछ ना कहती हूं....
पर सच कहते हो तुम कि मुझे फर्क नहीं पड़ता.....

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22 JUN 2022 AT 19:05

' प्रतीक्षा ' प्रेम को जिन्दा ऱखती है...

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