Preeti Antil Dahiya  
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Joined 22 March 2020


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Joined 22 March 2020
9 MAR AT 23:23

अभी अभी आ अपने घर
मैंने माँ को मुस्काते पाया
दूर हुई दुविधा दुखदायी
सतत सदा जिसने था सताया
मन ही मन मंथन कर मन में
बात बड़ी य़ह समझ में आयी
माँ ममता में मर्म मधुर सब
माँ खुशियाँ की है परछाई

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17 JAN AT 10:34

कहीं दूर क्षितिज के अंतिम छोर तक,
जाने में सक्षम हूँ मैं,
इस सागर की भांति गहरी और
व्योम सम मृदुल हृदय हूँ मैं।

लेकिन यह सारी गहराई,
बिना तुम्हारे उथली है,
हृदय की यह सारी मृदुलता ,
तुम्हारे अधरों बिन धुंधली है।



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24 DEC 2024 AT 17:17

तुम्हें मैंने पाया ही कहाँ है,
जो खो दूँगी।
तुम्हें लेकर इतनी बेचैनिया ही कहाँ हैं,
जो मैं रो दूँगी।
अपने बीच कुछ ऐसा है ही नहीं कि
जिससे छटपटाहट हो ।
वादों और जिम्मेदारियों का कोई वजन नहीं
कि जिससे घबराहट हो।
मेरे लिए तो तुम एक पुष्प की भांति हो,
जिसे मैं दूर से ही निहारती हूँ,
केवल बाहरी आवरण नहीं,
तुम्हारे सरल हृदय को अब कुछ जानती हूँ,
तभी तो कभी कभी तुम्हारी बगिया में,
तुम्हारी खुशबु मुझे खिंच ही लाती है,
हालांकि तुम्हें मेरे होने, न होने से विशेष फ़र्क नहीं,
पर तुम्हारी झलक से, ज़िंदगी में रौनक आती है ।

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10 JUL 2024 AT 10:49

In a world of chocolate,
dreams are sweet,
Friendship blooms like,
flavors we eat.

With smiles that light up ,
a million miles,
We create moments,
hearts carry smiles.

By sharing laughter,
our souls shine,
Like a beautiful,
joy divine.

Together, we weave,
Silk of fun,
Hand in hand,
until the day is done.

Through thick and thin,
our bond holds strong,
Sweetness of our love,
a lifelong song.

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16 MAY 2023 AT 21:11

उनकी यादें ,उनसे ज़्यादा प्यार जताती हैं,
उनकी बातें उलझाती,लेकिन यादें सुलझाती हैं।
यादें समझती हैं मुझे, मेरे प्यार को,
मेरे हर एक ज़ज्बात को,
हाँ!बिल्कुल
यादों को पता हैं कि मैं जितनी मजबूत दिखती हूँ,
असल में इतनी हूँ नहीं,
हर बार शब्दों के वार से टूटती हूँ मैं,
लगता होगा कि साँसे घुटती नहीं?
खोखली और कमज़ोर मेरी इन रगों को,
केवल उनका प्रेम रूपी रक्त ही ज़िंदा रखे है,
फ़िर भी,अपने हिस्से का प्रेम,
मैं उन्हीं पर छिड़काती हूँ।
हर बार सोचती हूँ कि कह दूँ," अब और नहीं"
लेकिन उन बिन रह भी तो नहीं पाती हूँ।
अगर उनकी यादें न होती,
तो शायद हम कभी साथ भी न होते,
मेरा घर उनमें न बसता,वो मेरे अज़ीज़,
दिल के ख़ास न होते।
पर ठीक ही तो है,मुझसी
कमज़ोर दीवारें, कहाँ किसी का सहारा बन पाती हैं,
जो बनी हैं केवल,जर्जर होने को,
केवल सपनों में ही महल सजाती हैं।


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10 MAY 2023 AT 13:18

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8 MAY 2023 AT 23:36

बिना इज़ाज़त के आए थे वो दिल मे हमारे,
खुद की यादों में मसरूफ़ किया और चलते बने।
वो कहते हैं ज़िम्मेदारियाँ है बहुत,
कोई पूछे ज़रा!फ़िर हमारे दिल के दरवाज़े, कमज़ोर क्यों किए?

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8 MAY 2023 AT 23:28

इबादत की तरह उनसे करते हैं प्यार,
जबकि पता है कि हिस्से में, सिर्फ़ इंतज़ार ही आना है।
मसरूफ़ रखते हैं वो खुद को काम में,
जबकि हमारे सारे कामों का, उनकी यादों में ठिकाना है।

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13 MAR 2023 AT 19:23

माना जीवन की राह चुनी जो,
मंज़िल तक न जा पाई,
माना सपनों के हिस्से केवल,
मिली धूल भरी परछाई,
माना जीवन का ढाँचा,
एक सबल अनूठा पा न सका,
लेकिन यह सब क़िस्मत का करतब,
देखो तुम्हें हरा न सका।

माना आँखों ने थककर भी,
न सुकून भरे पल पाए हैं,
आँखों के काले घेरे ,काले बादल
बनकर छाए हैं,
लेकिन यह काले बादल भी,
वर्षा के संग छँट जायेगे,
एक इंद्रधनुष फिर चमकेगा,
नए रंग जीवन में छाएंगे,
तुम इसी तरह से हिम्मत कर,
आगे- आगे बढ़ते जाना,
कर सबकुछ समर्पित ईश्वर को,
अनुकम्पा,प्रेम से सब पाना।



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20 FEB 2023 AT 18:57

प्रेम को, कभी तर्क से नहीं तोला जा सकता।
यह तो अत्यंत ही सरल और सहज कर्म है।
प्रेम ही एकमात्र ऐसी व्यवस्था है ,
जिससे मनुष्य कभी नही थकता,
यह हर पीड़ा का मर्म है।
यदि किसी एक हृदय के तल तक भी हम पहुँच पाएं,
तो यह किसी तीर्थ से कम नहीं होता।
प्रेमलिप्त मन सदैव सदभाव भरे रहता है,
उस द्वारा किसी का अहित नही होता।

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