फिर से वहीं गलियां, रास्ते और वही राह ली
फिर से मैंने मुहब्बत की पनाह ली हैं
पहले भी देखा हैं मैंने अपने नसीब का तांडव
किसी दिल टूटे की मैंने फिर से हाय-आह ली हैं
ये उम्र हैं कि मेरे आंगन में फूल महकते
और देखो मैंने महबूब की यादें व्याह ली हैं
सुकून मिलता खुदकुशी या मौत के बाद तो
गम पीने को मैंने जिंदगी जीने की चाह ली हैं
चलो हम ही लेते हैं बेवफाई का ताज अपने सिर
तेरे बाद, तेरे जैसे ने ही, तेरी जगह ली हैं-
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sangrur ❤️