प्रदुमन कुमार   (✒️ प्रदुमन कुमार)
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Joined 24 July 2018


Joined 24 July 2018

ये ज़ुल्फ तुम्हारी गालो पर
डेरा डाले बैठा है
झुकती नज़रों ने तुम्हारे
कर बैठी इसे दीवाना है
सुरज की लाली होंठ तेरे
सागर के जैस नैन तेरे
कोयल सी है सदा तेरी
इन्हीं पे हैं फिदा सभी
निकहत-ए-ज़ुल्फ-ए-परीशाॅं
हमे मदहोश कर बैठी है

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तुम्हें देखती ही भूल जाता हूँ सब
रहता हूँ होश में पर रहता नहीं !

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अगर मिल जाए वो
तो याद किसको करूंगा
नज़र से ओझल रहे
तो शायद जिंदा रहूंगा

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आँखों से आंसू आने दो
ग़म को जरा घटाने दो
सवालों से मत छेड़ो उन्हें
आसमान से तो निचे आने दो

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ऊ चिरंइयां कहाँ उड़ गईल
पेड़वा के अकेला छोड़ गईल

अब टहनी टहनी रोवता
पत्तवों भी सूख झड़ गईल

ना हावा ना छाया अब
घोसला सब ऊजड़ गईल

खाटी डालल नीचे अब
देखत देखत सड़ गईल

रहत रहीसन पशु सब
खंटवो अब उखड़ गईल

आइल लोहरा आरी लेके
पेड़वे पे उमड़ गईल

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तिश्रा को पानी नहीं
चलो दीप जलाऐं

शिकम के लिए अनाज नहीं
चलो दीप जलाऐं

फा़का़ आसमान छू रही
चलो दीप जलाऐं

सब दहकाँ शोरिदा हैं
चलो दीप जलाऐं

दहकाँ मर रहा है
चलो दीप जलाऐं

कासा लेकर घूमते सवाली
चलो दीप जलाऐं

गुर्ब़त बढ़ती जा रही
चलो दीप जलाऐं

बे - कशी में खल्द पहुचे
चलो दीप जलाऐं

चलो इन पर पर्दा डाले
चलो दीप जलाऐं

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पूरी रचना Caption में पढ़े 🙏🌷

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पतझड़ आने को है

पेड़ों से यूँ पीले-पीले पत्तों का गिरना
पैरों के नीचे सुखे पत्तों का चरमराना
जमीन पे पड़े सुखे पत्तों का सरसराना
लगता है पतझड़ आने को है

पेड़ों पर नए पत्तों का निकलना
बच्चों का यूँ गिल्ली डंडा खेलना
नहरें और तालाबों का सुखना
लगता है पतझड़ आने को है

सरसों के पीले फूलों पर, सुर्य के किरणें पडना
खेतों में एक अनोखा सौंदर्य बिखेरना
पीले फूलों पे लाही का लिपटना
लगता है पतझड़ आने को है

खेत खलिहानों का लहलहा उठना
किसानों के चेहरे खिल उठना
हवाओं में गरमाहट आना
लगता है पतझड़ आने को है

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महताब भी वही,
आफ़ताब भी वही,
समा भी वही,
चमन भी वही,
सहर की शबनम भी वही,
सबा भी वही ,
सुकूनत भी वही,
मकतब भी वही,
मशरिका, मग़रिब, शुमाल और जुनूब भी वही,
फिर मुज़्दा किस चीज का?
एक कैलेंडर बदलने का?

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अगर इश्क़ ही करना है तो
दर्द से क्यों नहीं कर लेते
दर्द भी तो इश्क़ का भूखा है

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