लिखने को कलम उठा कर के
कुछ याद पुरानी ला कर के
कुछ ज़ख़्म हरे फ़िर करते है
आओ फ़िर से कुछ लिखते है
पर लिखे भला क्या सोच रहे
ऐसी कुछ तो ना याद रही
ना कोई ऐसी बात रही
उन बातों को तो भूल चुके
उन वादों को भी भूल चुके
भूल चुके वो चेहरा भी
वो आंखें भी तो भूल चुके
भूल चुके वो शर्माना
जुल्फो का चेहरे पर आना
होंठों के उस तिल को भी
अपने खोये उस दिल को भी
जब सब कुछ ही हम भूल चुके
कोई बस इतना बतला दे
तो नींद नही क्यू आँखों में!
2:47AM-
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तुझे मुझसे मुहब्बत है, निगाहें वार करती है
अक्सर ही ये मेरा काम कुछ आसान करती है
तेरे लब है दिखे ऐसे की जैसे फूल पे तितली
की हर तितली फूलों पे कुछ निशान करती है
मिलने को तुमसे जब भी गलियों में निकलूँ मैं
नज़र यूँ फेर कर मुझको फ़िर अन्जान करती है
बहुत कमियाँ है खुद में नज़र अक्सर जो आती है
जिसे अनदेखा करके फ़िर नज़र हैरान करती है
बहुत कुछ है हमारे बाद भी दुनिया में अद्यान्त
हमें अक्सर ये बातें क्यू मगर परेशान करती है I-
उलझी हुई है जिंदगी किताबों में इन दिनों
किताबों को देखू तो तेरी तस्वीर बनती है
शामिल है मुझमें तू इस कदर
मुझको तू जन्नत की हूर लगती है
तुझको पाने की ख्वाहिश है इस कदर
बच्चे को जैसे खिलौने की ज़िद लगती है
कटता नहीं अब ये सफ़र यूँ ही तनहा
तेरी ज़रूरत तो मुझे हर सफ़र लगती है
सुना है तनहा हो तुम भी हमारी तरह
तन्हा लोगो से ही अच्छी गजल बनती है!-
ये चेहरे की मुस्कान मेरी
तेरे अधरों में बस जाए
मैं कभी अकेला रहूँ कही
तू मेरे हिस्से आ जाए
तेरे इस हूस्न का सानी
दुजा किसको मैं अब लिखूँ
ये कलम यही रुक जाती है
कागज पर अब क्या लिखूँ
तेरे इस हूस्न पे इक पहरा
तेरी ही नज़र उतारे है
ये जो छोटा सा तिल है ना
जाने कितनों को मारे है
ये यौवन जो मदमस्त तेरा
बादल की एक घटा सा है
मन का ये भ्रमर तुझे देखें
फूलों की एक लता सा है
ये भ्रमर मचल जाता अक्सर
फूलों का ये रस पीने को
कुछ और नहीं ज़्यादा जीवन
जीवन के कुछ पल जीने को!-
ये चेहरे की मुस्कान मेरी
तेरे अधरों में बस जाए
मैं कभी अकेला रहूँ कही
तू मेरे हिस्से आ जाए
तेरे इस हूस्न का सानी
दुजा किसको मैं अब लिखूँ
ये कलम यही रुक जाती है
कागज पर अब क्या लिखूँ
तेरे इस हूस्न पे इक पहरा
तेरी ही नज़र उतारे है
ये जो छोटा सा तिल है ना
जाने कितनों को मारे है!-
लिखना मैंने छोड़ा था
एक तेरे ही तो कहने पर
खुद ही अब तुम कहती हो
मैं लिखूँ तुम्हारे चेहरे पर
क्या लिखना है बोलो भी अब
खुद ही चांद सी दिखती हो
मुझसे अच्छी कविता तो तुम
खुद की जुल्फ से लिखती हो
होंठ तुम्हारे कोमल है,
और बातें है प्यारी प्यारी
योवन है सुंदर अनुपम
और आंख तेरी न्यारी न्यारी
और भी क्या कुछ लिखना है
या इतना ही बस है काफ़ी
कुछ लिखना जो भूल गया
तो दे देना मुझको माफ़ी!-
तेरे जाते ही जब मैंने
अपना सब कुछ खोया था
साथ दिया था किसी ने मेरा
साथ में मेरे रोया था
कैसे उसको दूर करूँ अब
जब है मेरा हिस्सा वो
कैसे भूल उसे जाऊँ अब
जब है मेरा किस्सा वो
कैसे उसके वादों को मैं
अब झूठा हो जाने दू
कैसे उससे विरह करूँ अब
कैसे उसको खो जाने दू
तेरी यादें तेरी बातें
बहुत रूलाया करती थी
मेरे मन की करके फ़िर
वो मुझे हँसाया करती थी
तू आए या तू जाए
अब फर्क नहीं पड़ता इससे
फर्क उसी से पड़ता है
जो दोस्त मेरा है इस दिल से!-
सूरज की लाली जो उभरी कलम से
जहां में नया एक उजाला सा छाया
तेरी याद आती रही रात भर जब
उन यादों से मुझको रिहा फ़िर कराया
था घनघोर आलम एक अति तीव्र निद्रा
उस निद्रा से मुझको कुछ यूँ फ़िर उठाया
वो आया मेरे पास एक ख्वाब लेकर
टूटे ख्वाब उसने कुछ ऐसे उड़ाया!-
क्या पाया क्या खोया अब तो याद नही
यार बने कितने और दुश्मन कितने याद नही
कुछ यारों से ऐसी यारी रखी थी
आखिर कैसे यारी टूटी याद नहीं
कुछ पानें की खातीर जो था सफ़र किया
सफ़र पे ही कैसे सब छुटा याद नहीं
कुछ दिन और सफ़र है साथ चलो यारों
फ़िर आखिर क्या छूटे रहेगा याद नहीं
कुछ छूटे कुछ नए बनें कुछ और भी छूटेगे
कुछ ही कहेगे हैं हम साथ बाकी कुछ याद नहीं!-
कि तुम होती तो यूँ होता
कि कुछ गम भूल जाते हम
कि तुम होती तो यूँ होता
की कुछ रस्ते फिर बनाते हम
कि तुम होती तो यूँ होता
की गज़लें गुनगुनाते हम
कि तुम होती तो यूँ होता
सफर आसान बनाते हम
कि तुम होती तो यूँ होता
की सपने फिर सजाते हम
कि तुम होती तो क्या होता
कि तुम होती तो यूँ होता।-