प्रभात कुमार   (ûßhá pråbhàt)
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Joined 25 March 2020


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Joined 25 March 2020

जब-जब लिखने के लिए क़लम उठाई है
तेरा नाम ही मुझको हर बार याद आई है

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फिर से भर दो
एक कप चाय
मिलाना फिर से तुम उसमें
बहुत सारा प्यार
अभी लिखनी है तुम्हारे लिए
प्यार भरे जज़्बात

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इंतज़ार मुझको तुम्हारा
और तुमको मेरा रहता है
तुम्हारा सिरहाना मुझको
बहुत पसंद आता है
तुम्हारे सिरहाने के बिना
मुझे नींद रातों को कहाँ आता है
तुमको तो है सब कुछ पता
फिर मुझे छोड़ तुम क्यों
कुछ समय के लिए
जाना चाहती हो

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( मुतग़य्यर का हिन्दी
अर्थ अस्त व्यस्त )

मुतग़य्यर दिनचर्या हो गई है
फिक्र अब मुझको
ख़ुद की होने लगी है
ज़िन्दगी अब नहीं
मेरी मुस्कुरा रही है

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तुम्हारे ही बारे में लिखता
रहता हूँ कुछ अल्फ़ाज़
कभी आना समय निकाल कर
पढ़ाऊँगा तुम्हें सारे अल्फ़ाज़

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तुम बैठो आराम से यहाँ मैं करता हूँ काम तुम्हारे सारे
उठा कर रख दूँगा तुम्हारे ये सारे अंगूर मैं इस टोकरी में

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जैसे पहले तुम मिलती थी
वैसे कहीं किसी रोज़ मिलो
पहली नज़र का जादू था
जो दिल पर छा गया था
ख़्वाबों ख़यालों की दुनिया में
बस तुम ही आ गए थे
मिली हो कितने दिनों के बाद
यादों का कारवां चल पड़ा है
साथ तुम्हारा फिर से मिले
दिल की यही तमन्ना है मेरी

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बिखर गया
हवा के झोंके से ये
अब कारवां

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जैसा चुनाव, वैसा भाग्य
ज़िन्दगी का है यही हिसाब
सत्य का करोगे चुनाव
रहेगा चेहरे पर मुस्कान
झूठ का दोगे अगर साथ
मुश्किलों से भरा रहेगा
ये ज़िन्दगी तुम्हारा
अच्छे विचारों का करना चुनाव
फिर बदल जाएगा भाग्य तुम्हारा

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भींगा भींगा सा मेरा बदन
तन्हा अकेला बैठा मिलूँगा तुम्हें
बहने लगेगी जब ठंडी हवाएँ
काँपने लगेगा मोरा बदन
फिर भी बारिश में
भींगने का आएगा बहुत मज़ा
तुम भी आ जाना साथ मेरे
भर देना चेहरे पर मुस्कान मेरे

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