प्रभात कुमार   (ûßhá pråbhàt)
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Joined 25 March 2020


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Joined 25 March 2020

गुमान में न था
मैं कभी भी
साथ तुम्हारा पाकर
मैं जानता था
मतलबी है दुनिया
मतलबी है लोग
मतलब के लिए
साथ आते हैं सभी और
बीच राह में छोड़ जाते हैं

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ये हसीन पल मैं कैसे ना रहूँ पास तुम्हारे
आ जाओ तुम भी पास मेरे ना शरमाओ

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तन्हा तन्हा जीने लगा हूँ
ख़्वाब तुम्हारे देख कर मैं
मुस्कुराऊँ आख़िर मैं क्यों
ख़्वाब तुम्हारे सच होते नहीं
बाहों में तुम होती नहीं
आँखों से बहते हैं आँसू
दर्द से दिल रोता है
होती नहीं तुमसे बातें

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झुकी झुकी सी नज़र तुम्हारी
कुछ करती है इशारे मुझको
कुछ बातें हैं शायद दिल में तुम्हारे
होठों पर वो बातें आती नहीं
मैं समझ रहा हूँ उन बातों को शायद
देख कर तुम्हारी झुकी सी नज़र को
मिलाओ कुछ पल के लिए ही सही
अपनी नज़रों को मेरी नज़रों से तुम
हर राज़ में पढ़ लूँगा तुम्हारी नज़रों के
बतला दूँगा फिर हर राज़ तुम्हें
मैं मुस्कुरा कर

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क्या लिखूँ कुछ समझ
आता नहीं है, तुम्हारी बातें
जब भी याद आता है, चेहरे
पर एक मुस्कान छा जाता है
तुम भी मुझे भूली ना होगी
हिचकियाँ जब मुझे आती है
मुझको यही समझ आती है

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( शोरिश का हिन्दी अर्थ विद्रोह )

क्यों तुम ऐसा काम करते हो
ख़ुद ही अपनी ज़िन्दगी को बर्बाद करते हो
जहाँ तक मुझे पता है तुम किसी से प्यार करते हो
उसकी तो सोचो जिससे तुम प्यार करते हो
प्यार के लिए घर वालों से शोरिश करते हो
सोचो क्या तुम ये अच्छा काम करते हो

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मंज़िल की ओर सिर्फ़ चलने से क्या होगा
ख़ुद पर विश्वास और हौसला बुलंद रखना भी होगा
हर आने वाले मुश्किलों से लड़ना भी होगा

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बदलते मौसम की तरह
तुम बदल रही हो
क्यों साथ मेरे
तुम ऐसा कर रही हो
उदासियाँ तुम
मेरी ज़िन्दगी में भर रही हो
मैं तो संभल जाऊँगा
मगर तुम संभल ना पाओगी
बदनामी मेरे साथ साथ
तुम्हारी भी होगी बहुत

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काहे और क्यों
भूल गई ख़ुद को
मेरे लिए वो

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तुझसे तेरे दुःखों को हम
थोड़ी सी खुशियाँ अपने
साझा कर लेते हैं तुमसे
हो रही है आज बरसात
चलो दोनों भींग लेते हैं
चेहरे पर साझा करके
मुस्कान बिखेर लेते हैं

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