Pravesh Kumar   (Pravesh)
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शायराना सी है ज़िन्दगी की फ़ज़ा। लिखना पसंद है, बल्कि चाहत है।
Joined 17 June 2018


शायराना सी है ज़िन्दगी की फ़ज़ा। लिखना पसंद है, बल्कि चाहत है।
Joined 17 June 2018
14 JUL AT 7:37

नयन से मिला के नयन को चुराना,
स्वयं रूठे रहना, औ' तुमको मनाना,
ये मायावी विद्या, नहीं सीख पाया,
नहीं आया हमको, मोहब्बत जताना,

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2 JUN AT 11:28

ऑपरेशन सिन्दूर

पूरी कविता कैप्शन में पढ़ें.

🇮🇳जय हिंद🇮🇳

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10 APR AT 7:39

"मम्मी"
नयनों में नीर, हृदय में केवल दुःख के बादल छाए हैं,
नन्हीं-नन्हीं अंजुरि में आशाओं के दिये जलाए हैं,
हम भी संतान तुम्हारे हैं, हम भी तो तेरे जाए हैं
अपना लो हमें हे जगदम्बे हम द्वार तुम्हारे आये हैं,
अपना लो हमें हे जगदम्बे हम द्वार तुम्हारे आये हैं,
(पूरी कविता कैप्शन में पढ़ें)

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15 FEB AT 20:00

अब किससे क्या छिपाए, हक़ीक़त बयां करे
सारी ख़ुदाई तुमसे, मोहब्बत बयां करे,

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7 JAN AT 6:44

सफलता एक सार्वजनिक उत्सव है, आप और कुछ लोग, जो आपका अच्छा चाहते हैं, वे प्रसन्न होते हैं और उत्सव मनाते हैं।
विफलता केवल आपके लिए एक व्यक्तिगत शोक है, इसमें आपकी सफलता पर प्रसन्न होने वाले लोगों के अतिरिक्त बचे लोग उत्सव मनाते हैं।

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5 JAN AT 13:02

मची है खलबली, अब हाकिमों-नवाबों में,
वो जी रहा है बन के बादशाह, अभावों में,

उसके तन पर के एक कपड़े से सर्दी बेअसर!
है तरक़्क़ी बहुत ही फ़ाइलों-किताबों में,

(पूरी ग़ज़ल कैप्शन में पढ़ें और
रचना अच्छी लगे तो फ़ॉलो करें)

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18 JUN 2024 AT 12:45

तेरी आँखों का नूर, आँखों से ही, पी कर के,
मैं भी हो जाऊं नामचीन, आशिक़ी कर के।
ये नज़ाक़त, ये नफ़ासत, ये हुस्ने-दो-आलम,
ऐ वक़्त थम जा ज़रा, देख लूँ मैं, जी भर के।
क्या बयान करूँ हाले-दिल, मगर सुन लो,
मैं जी रहा हूँ मोहब्बत में ख़ुदकुशी कर के।
तुम्हें है अख़्तियार, मानो या ना मानो मगर,
मैं खुश हूँ नाम तेरे, अपनी ज़िंदगी कर के।
कि बेहिसाब अमीरी में जिये जाता हूँ,
मयख़्वार बन के, तेरी मयकशी कर के।

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18 JUN 2024 AT 12:28

संवर जाए मेरा जीवन, तेरी तकदीर बन जाये,
हमारे प्रेम की प्रेमिल-सी एक तस्वीर बन जाये,
बस इतनी आरजू है तुमसे मेरी ऐ मेरे जाना
मैं बन जाऊं तेरा रांझा, तु मेरी हीर बन जाये,

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10 APR 2024 AT 19:39

कभी धरती न मिली तो कभी अम्बर न मिला,
मिली न धूप कभी साया ए शज़र न मिला,
बहुत से दोस्त मिले और अनेक दुश्मन भी,
मज़े की बात है कोई भी वक़्त पर न मिला,

पूरी ग़ज़ल कैप्शन में....

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10 APR 2024 AT 18:57

कभी धरती न मिली तो कभी अम्बर न मिला,
मिली न धूप कभी साया ए शज़र न मिला,
बहुत से दोस्त मिले और अनेक दुश्मन भी,
मज़े की बात है कोई भी वक़्त पर न मिला,

पूरी ग़ज़ल कैप्शन में...

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