समझ सकोगे हाल मेरा, क्या तुमने कभी ये सोचा है,
हज़ारों मर्तबा रोया हूँ, बताओ कौनसा आँसू सच्चा है।
चमचमाती दुनिया का, अंधेरा खूब देखा है मैने,
जाकर पूछो उजियारे से, कभी परछाई को पलट कर देखा है।-
अपने से ज्यादा अब अपनों का सोचते हैं,
अक्सर कुछ बेटे पिता की चादर ओढ़ते है|-
अपने से ज्यादा अब अपनों का सोचते हैं,
अक्सर कुछ लोग पिता की चादर ओढ़ते हैं| ज़िम्मेदारियों से हाथ मिला,
सपनों से मुँह मोड लेते हैं,
तोड़ कर शरीर खुद का,
परिवार को जोड़ देते हैं,
अक्सर कुछ लोग पिता की चादर ओढ़ लेते हैं|-
चोट बनकर उभरी कुछ यादें पुरानी,
आँसुओं का मेरे कुछ कसूर ना था|-
कुछ दर्द सुनाते रहे जिंदगी के, वो ज़ख़्मों को सहता गया,
वो ताउम्र ज़ख़्म हरे करते रहे, वो जिंदगी का मरहम बन गया|
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हासिल करनी पड़ती है कुछ मंज़िले खुद से ही,
हर मर्तबा यहां सिफारिशों का ज़ोर नही चलता|-
चापलूसी के बाज़ार मे ईमानदारी कहाँ बिकती है,
के हर ज़ुबाँ आजकल तलवे तलाशा फिरती है|-
जो मर्ज़ी के मालिक थे कभी,
आज ज़िम्मेदारियों के गुलाम है,
उभर रहे है कुछ अनकहे ज़ख्मों से,
और खुश रहने का उन पर इलज़ाम है.-
शीशे सरीखे है ज़िन्दगी मेरी,
हर टुकड़ा एक नया किस्सा बयां करता है.-