Praveen Srivastava   (श्रीवास्तव)
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Joined 1 November 2018


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Joined 1 November 2018
29 MAY 2021 AT 20:34

समझ सकोगे हाल मेरा, क्या तुमने कभी ये सोचा है,
हज़ारों मर्तबा रोया हूँ, बताओ कौनसा आँसू सच्चा है।
चमचमाती दुनिया का, अंधेरा खूब देखा है मैने,
जाकर पूछो उजियारे से, कभी परछाई को पलट कर देखा है।

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27 NOV 2020 AT 22:50

अपने से ज्यादा अब अपनों का सोचते हैं,
अक्सर कुछ बेटे पिता की चादर ओढ़ते है|

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25 NOV 2020 AT 22:17

अपने से ज्यादा अब अपनों का सोचते हैं,
अक्सर कुछ लोग पिता की चादर ओढ़ते हैं| ज़िम्मेदारियों से हाथ मिला,
सपनों से मुँह मोड लेते हैं,
तोड़ कर शरीर खुद का,
परिवार को जोड़ देते हैं,
अक्सर कुछ लोग पिता की चादर ओढ़ लेते हैं|

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16 OCT 2020 AT 21:54

चोट बनकर उभरी कुछ यादें पुरानी,
आँसुओं का मेरे कुछ कसूर ना था|

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11 OCT 2020 AT 19:43

कुछ दर्द सुनाते रहे जिंदगी के, वो ज़ख़्मों को सहता गया,
वो ताउम्र ज़ख़्म हरे करते रहे, वो जिंदगी का मरहम बन गया|

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12 AUG 2020 AT 21:58

हासिल करनी पड़ती है कुछ मंज़िले खुद से ही,
हर मर्तबा यहां सिफारिशों का ज़ोर नही चलता|

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10 AUG 2020 AT 8:56

कुछ पल उधार लेने है मुझे,
कुछ लम्हे जिंदगी के जीने के लिए|

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8 JUL 2020 AT 21:04

चापलूसी के बाज़ार मे ईमानदारी कहाँ बिकती है,
के हर ज़ुबाँ आजकल तलवे तलाशा फिरती है|

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26 SEP 2019 AT 12:50

जो मर्ज़ी के मालिक थे कभी,
आज ज़िम्मेदारियों के गुलाम है,
उभर रहे है कुछ अनकहे ज़ख्मों से,
और खुश रहने का उन पर इलज़ाम है.

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26 SEP 2019 AT 12:19

शीशे सरीखे है ज़िन्दगी मेरी,
हर टुकड़ा एक नया किस्सा बयां करता है.

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