सफ़ाई करते हुए उसने
अपनी जिंदगी से सभी बेफिजूल चीजों को बाहर किया
और यक़ीन मानिए उसके फेंके गए गंदगी में
सबसे पहला कचरा मैं था ....-
थोडा वक़्त 🕒 चाहिये खुद👱 से रुबरु होने को ।।☹?
If yo... read more
जब आयेगा कोई भीतर भी
ताक कर मुझको पढ़ने को
तब सूरत देख यूं बाहर से
अंदाजे ना लगाएगा ....-
मेरा दिल घबराता बहुत है अब दिन के चढ़ते – उतरते
आज कल मेरा वक्त बिगड़ता बहुत है तेरा इंतजार करते
तुम्हें क्या हीं ख़बर है मेरे ये ख़ाली लम्हें कैसे गुजरते हैं
तुम्हारी तस्वीरें देखते तब जा कहीं हम आहें भरते
हमें यक़ी है तुम्हें हमारे एहसास से सच कुछ फर्क नहीं पड़ता
जो पड़ता फ़र्क ज़रा भी तो देखते तुमसे तुम्हारे लिए हम कितना लड़ते
ख्याली ख़ाविश बस इतनी अपने गुजारते लम्हें का थोड़ा हमे भी हिस्सेदार करो
यूं भागा ना करो बेवजह दूर हमसे इनकार करते
हां ये सही है तुमसे बातें – मुलाकातें हो जाए ये तलब रहती है
लेकिन तुम बस ज़रा ख़ास हो मेरे ऐसा नहीं के हम तुमसे हम प्यार करते
इतना सब कहते समझाते करता हूं मैं बस तुमसे इतनी मिन्नत
लौट आओ हम थक चुके हैं दिल में उम्मीदों का सब्र भरते...
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हवाओं के आगोश में काफ़ी दूर जा चुका पतंग
ढलते शाम को देखो
समेटने से बेहतर धागे तोड़
उसे उसके हाल पर आज़ाद करदो...-
एक – एक दिन थे रंग – बिरंगे, हंसते – रोते जो काटे थे
हम दोनों अपनी ग़म और ख़ुशी, साथ जो मिलकर बांटे थे
लम्हा - लम्हा जोड़ - जोड़ कर, सींचा यूं रिश्ता अपना था
एक पल में सब तुम तोड़ चले, बताओ तो क्या ये सपना था
जो मैने ख़्वाब बुना तेरे संग, पूरा किसके संग करना है
मेरी घुटती है सांसे अब, मुझे जीना है या मरना है
सब फैसला तुमने कर डाला, जब जैसा तुम समझ पाए
एक खयाल तो रखना था दिल में, कोई जीते जी न मर जाए
चलते – चलते बीच डगर क्यों, रस्ता अपना मोड़ दिया
आख़िर क्या थी गलती मेरी, क्यों बीच सफ़र में छोड़ दिया
क्यों भूल गए सब याद नहीं, कैसे बेचैन हो जाते थे
आधी रात हो या सुबह अंधेरी, तेरी ख़ातिर हम जागे थे
याद कर वो दिन रंग – बिरंगे, जो हंसते रोते हम काटे थे
हम दोनों अपनी ग़म और ख़ुशी साथ में मिलकर बांटे थे ...
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इकतरफा मोहब्बत
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कोई अचानक हीं हमें मिलता हैं
और हम उसे अपने दिल में दाख़िल कर लेते हैं
उससे मशवरे नहीं करते
अपनी मर्जी से उसे अपनी मंजिल कर लेते हैं
जैसे बस वही है जो अब रह गया हो जिंदगी में करना हासिल
बेवजह बेफिज़ूली ख़्वाब दिलों दिमाग़ में कामिल कर लेते हैं
गुज़रते दिन जो बेहतरीन ना सही लेकिन ठीक – ठाक हैं
उसे यूं बेवजह हीं अपनी ज़िद से मुश्किल कर लेते हैं
फ़िर करते हैं कोशिशें कितनी भी इन सबसे बाहर आने की
आ नहीं पाते ऐसी जकड़न में ख़ुद को शामिल कर लेते हैं
ख़ुद हीं बन जाते हैं फ़िर ख़ुद के गुनेहगार
ख़ुद को हीं ख़ुद का क़ातिल कर लेते हैं ...
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कितना हीं बदलते लोगों के साथ life spend करें
अब चाहिए कोई जो हमें भी understand करे
उलझ कर बैठे हैं तन्हा यूं अपनी कश्मकश में
कोई तो हो जो हमारी तरफ़ भी अपना hand करे
किसी के साथ रहे simple चले straight जो ना हमें और bend करे
वो होती है ना अचानक से insta YouTube per जैसे
ख्वाइश है ऐसा हीं कुछ किसी के साथ अपना भी reletionship trend करे
जिससे अपनी हर छोटी – बड़ी बातें हो
जिसके नाम अपने भी दिन ओर रातें हो
कोई ऐसा हो जिसे हम अपने हर लम्हें की दास्तां send kare
कोई ख़ास बेहद ख़ास बने किसी के साथ दिल से एक एहसास बने
जिसके साथ जिए हर लम्हें बेहतरीन
और फ़िर उसी के साथ बढ़ते – बढ़ते life का the end करें ...-
मेरे हवाले से तूने अपने लबों पर इनकार रख रक्खा है
ये जानते हुए भी तेरे लिए मेरे दिल में मैने प्यार रख रक्खा है
सारी नाराज़गी ना समझी तेरी एक रोज़ ख़त्म होगी
एक वक़्त बदलेगा ये इनकार भी मैने एतबार रख रक्खा है
तू कभी आयेगा मेरी मोहब्बत को क़र्ज़ समझ हीं वफ़ा करने
यूं समझकर के तुझपर किसी ने मोहब्बत उधार रख रक्खा है
और तेरे आने पर ना बंद मेरे घर का तुझे दरवाज़ा मिले
इसलिए तेरे ख़ातिर मेरा हर दिन समझ इतवार रख रक्खा है
सच है नहीं चुना अब तक अपने सफ़र में नया हमसफर कोई
तेरे लौट आने का मैने कुछ इस क़दर इंतेज़ार रख रक्खा है
जानते हुए भी सभी एहसास मेरे बेफिजूल साबित हैं
फ़िर भी ना जाने क्यों मैने सिर ये आशिक़ी बुखार रख रक्खा है ..-
ये सुलझी सी उलझी लड़की
जाने क्या दिल में रखती है
मैं भी थोड़ा हैरां हूं अभी
क्या असल में है - क्या लगती है-
अक्सर हीं
ये सुकूँ की चादर
चढ़ती है बस रातों को
मैं उलझ - सुलझ के उलझ रहा हूँ
कैसे रोकूं जज़्बातों को ...
Full Peice In The Caption-