Praveen Pandey   (Parbinva)
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Also a Psychiatrist.
Joined 25 September 2016


Also a Psychiatrist.
Joined 25 September 2016
27 AUG 2023 AT 6:10

सूर्य सा है तेज, सदा ही प्रकाशमय भारत मेरा
अभी परसों ही चाँद पर फहरा तिरंगा, बजा चहुं ओर ढिंढोरा

बसा लेकिन हमेशा से, दीये तले काहे अंधेरा
बड़ा मज़हब का फ़ासला, करेगा चंद्रयान, इसको भी पूरा?

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21 AUG 2023 AT 13:41

Kuchh mashvire behad zaroori,
kuchh umra ko wajib falsafe

Guftagu mein chal nikle,
hum aap se jo hain mile

Dil-e-nadan nahin layak abhi,
par chahta hai ki dil lage.

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14 AUG 2023 AT 13:25

मन अभिमान न छोड़े
मिट्टी की देह निहारे
क्षणभंगुर की इहलीला में
बंधा मोह के धागे ।

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14 AUG 2023 AT 5:17

फिर लफ़्ज़ों का मुंतज़िर कर
आप ने जाने क्या इशारा किया


खामोशी ने आप की,
जाने का इशारा किया ?

-परबिनवा

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3 APR 2017 AT 0:10

एक तरफा प्रेम वह ऋण है,
जिसे जिससे लिया जाता है,
उसके ही चुकाने से हिसाब बराबर होता है।

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2 APR 2017 AT 11:16

किस बात से घबराते हो
सजनवा

कि जो स्वीकारी प्रीत मेरी
तो कहीं
पूर्णता पा न लो

खो न दो ये रिक्त स्थान हृदय का
जो देता है जीवन
तुम्हारी प्रथम प्रेयसी
कविता को

जानबूझ कर, लगता है जैसे
कभी-कभी, कि तुमने ओढ़ रखा है
विरक्ति का मुखौटा।

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31 MAR 2017 AT 1:46

प्रेम कान्हा
मैं भी मीरा
तू भी मीरा

चिर प्रतीक्षा
अटूट निष्ठा

दरस की
आस ही
जीवन सुधा।

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15 MAR 2017 AT 7:34

सुलभ है, सरल है
है तू थोड़ी सी बिगड़ी
मुझको भाती है सादगी तेरी

जब छप्पन भोग जग के न भाये
और जीवन के अतिरेक से, है मन भर जाए
तो कभी तोड़ने को
रोज़ाना की नीरस कड़ी
तुझको मैं चख लेता जान
जैसे, खिचड़ी

ढेरों ढेर बहानों के बीच
तुझको मैं लेता पहचान
प्रेम, ईश्वर
निराकार, मूलभूत
जैसे खिचड़ी।

हाँ, मशगूल रखती है मुझें
वो सारी बातें बड़ी बड़ी
जो मैं कहता हूँ न,
कि घर नहीं आ सकता हूँ अभी
उन सबके दरम्यान
मैं कभी नहीं भूलता
तेरा हंसी का ख़ुफ़िया, नुस्खा-ए-ज़िन्दगी
तेरी खिचड़ी सी सादगी।

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7 FEB 2017 AT 12:15

आदतन हार बैठे हैं, हम फिर से दिल अपना
मोहब्बत हो न जाए अब, इसी इक बात का डर है

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23 NOV 2016 AT 0:05

One of these days, we will grow apart and all my poems will turn into lies.

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