मत्त सवैया/ राधेश्यामी छंद
(32 मात्रा; यति 16,16; पदांत एक गुरु अनिवार्य)
प्यारा है संसार जगत यह, जग में सबको तुम प्यार करो।
नफरत में छोड़ो जीना अब, कटुता तजकर सत्कार करो।।
(पूर्ण छंद अनुशीर्षक में पढ़ें)
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आल्हा/वीर छंद (16,15 पदांत 21 आवश्यक)
याद दिला दे हर दुश्मन को, किसकी कितनी है औकात।
नया-नवेला है यह भारत, झुके नहीं करता प्राघात।।
(पूर्ण छंद अनुशीर्षक में पढ़ें)-
प्रेयसी छंद (12,11,8 पदांत-122 आवश्यक)
उर शीतलता पाए, कर दो यह उपकार, हृदय लुभाते।
नयन झरोखे प्रियतम, आते मन के द्वार, गीत सुनाते।।
(🙏🏻पूर्ण छंद-गीत अनुशीर्षक में पढ़ें🙏🏻)
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कुकुभ छंद (16,14 पदांत दो गुरु आवश्यक)
कष्ट मिले चाहे जितना भी, तनिक नहीं कुछ कहते हैं।
अंतस पीड़ा क्या होती है, पूछ उसे जो सहते हैं।।
(🙏🏻पूर्ण छंद अनुशीर्षक में पढ़ें🙏🏻)-
श्रीमद्भागवत महापुराण: एकादश स्कन्ध: द्वादश अध्याय श्लोक 1-13 (भगवान श्रीकृष्णजी उद्धवजी को सत्संग की महिमा का वर्णन करते हुए कहते हैं)
कहें नारायण, सुनिये उद्धव! सत्संग की महिमा कहता हूँ।
सत्संग बिन मुझे पा न सके कोई, सन्त हृदय में रहता हूँ।।
(🙏🏻पूरी कविता अनुशीर्षक में पढ़ें🙏🏻)-
(लावणी छंद 16,14 पदांत-1 गुरु आवश्यक)
देख लुभाती सबको कैसे, माया है दहकी दहकी।
मैं करता हूँ कर सकता हूँ, बातें हैं बहकी बहकी।।
(🙏🏻पूर्ण छंद अनुशीर्षक में पढ़ें🙏🏻)-
ताटंक छंद (16,14 पदांत-222)
संग चलो जीवन पथ पर तुम, भाव सजा कर लाये हैं।
वरण तुम्हारा करने को प्रिय, बड़ी दूर से आये हैं।।
(🙏🏻पूरा छंद अनुशीर्षक में पढ़ें🙏🏻)-
प्रदीप छंद (16,13 पदांत 212)
गुरु की उंगली पकड़ चले जो, तनिक नहीं अभिमान हो।गुरु-मर्यादा में जो रहते, हर मुश्किल आसान हो।।
(🙏🏻पूरा गीत अनुशीर्षक में पढ़ें🙏🏻)-
सार छंद (16,12; पदांत-22)
पलकों से झड़ते हैं मोती, साँसों की है माला।
अंतर्मन प्रभु सुमिरन करता, राम नाम रखवाला।।
(🙏🏻पूरा गीत अनुशीर्षक में पढ़ें🙏🏻)-
प्रदीप छंद (16,13)
सृजन शीर्षक- मुझको कब इनकार है
प्रिय मैं तेरे बिना अधूरा, तुमसे घर-संसार है।
जब मन हो पीहर हो आओ, मुझको कब इनकार है।।
(🙏🏻शेष गीत अनुशीर्षक में पढ़ें🙏🏻)-