Praveen Kumar   (✍ प्रवीण कुमार "प्रगीत")
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Joined 17 January 2020


Joined 17 January 2020
28 APR AT 20:40

*```दोहे``*

मत कर मन अभिमान तू, जीवन के दिन चार।
दम्भी रोते रह गए, साधु हुए भव पार।।

भटक रहा था मैं जगत, ठगता रहा जहान।
दिखा सके गुरु बिन नहीं, कोई भी भगवान।।

शब्द-शब्द हैं तुच्छ से, बोली भाव समाय।
एक हृदय घायल करे, एक हर्ष दे जाय।।

संग करो मन साधु की, जीवन है अनमोल।
व्यर्थ नहीं बीते कहीं, पा जाए यह मोल।।

जल में भी प्यासी रही, मछली ढूँढे नीर।
गुरु ही सकता है लगा, जग को भव के तीर।।

मन मेरा वैरी हुआ, द्वंद चले दो छोर।
एक पकड़ माया रहा, एक राम की डोर।।

दुनिया अंधी दौड़ है, दौड़ रहा संसार।
चार कदम कोई चला, कोई उतरा पार।।

सतगुरु तारणहार है, तार रहा संसार।
भेद समझ जो भी गया, हुआ वही भव पार।।

दिखा रहे गुरु ब्रह्म को, देखो रे संसार।
जीते जी जा मुक्त हो, अपना जनम सँवार।।

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10 APR AT 21:03

बताओ मैं कहाँ जाऊँ

(प्रसंग - पति दफ्तर से घर आता है और मोबाईल में ही खोया रहता है पत्नी से नाम-मात्र की वार्तालाप होती है। जहाँ पति मोबाईल में व्यस्त रहता है, वहीं दिनभर घर में अकेली समय बिताने वाली उसकी पत्नी को, पति के घर आने के बाद भी अकेलेपन की तरह का जीवन परेशान करता है और उसका अंतर्मन अंतहीन तनाव से भर जाता है। कुछ इसी तरह के भावों को व्यक्त करती कविता अनुशीर्षक में प्रस्तुत है।🙏🏻)

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1 APR AT 23:16

सारे जगत के मीत हो तुम, सार हो संगीत हो।
हरपल बसे मन में सदा वह, तुम सुहाना गीत हो।।
तुम तो सदा संसार का ही, हर घड़ी करते भला।
तेरे दिखाए राह को तो, मानकर विरला चला।।

जो चल पड़ा उसने सदा ही, पा लिया सम्मान है।
हरि से लगाई प्रीत है वह, तज दिया अभिमान है।।
हरि के सभी जन मान कर जो, प्रेम ही करता रहा।
सारा जगत उसका हुआ उस, पर सदा मरता रहा।।

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31 MAR AT 19:11

बने सहायक ज्ञान, तीव्र कर यथा सिरोही।
भटक न जाए ध्यान, नहीं मन हो विद्रोही।।
अतुलित होता ज्ञान, सदा मानव उपकारी।
लेकर प्रभु का नाम, उच्च पद बन अधिकारी।।

मिलता मन सुख चैन, सदा सहयोगी बनकर।
कोई पाए नहीं, शांति गुस्से में तनकर।।
प्यारा सा संसार, बनाएं सब मिल-जुलकर।
ताना-बाना प्यार, का सदा ही सब बुनकर।।

जग संतों से सीख, सदा सतपथ पर चलना।
सत का कर ले संग, शरण सतगुरु के पलना।।
देते सतगुरु तार, करे जो सत की संगत।
हो जाए खुशहाल, ढले जीवन में रंगत।।

जीते सदैव सत्य, यही है जीवन-दर्शन।
असत्य जाता हार, करे कितना ही गर्जन।।
सच तो बस है एक, राम घट-घट के वासी।
है सारी ही सृष्टि, सदा से जिसकी दासी।।

नारायण जप नाम, तरे सारे संसारी।
मिट जाए संताप, नाम ऐसा उपकारी।।
सच की पकड़े राह, वही जीते सब दंगल।
जीवन हो सुखकार, सदा ही होवे मंगल।।

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30 MAR AT 22:54

अजब अनोखा खेल, जगत यह खेले भारी।
सिर्फ मुझे है ज्ञान, यही समझे नर-नारी।।
दूजे हैं सब हीन, मान करते सब निज पर।
कैसा है यह ज्ञान, मानता है जो कमतर।।

सब हैं सम सादृश्य , क्यों न ये माने सारे।
सबको सबसे प्यार, भेद को हरे उबारे।।
प्रभु की सब संतान , यही है सत्य सनातन।
सदा रहे हैं बोल, संत हरि जगत पुरातन।।

सारा जगत कुटुम्ब, बात यह जिसने मानी।
भेदभाव को त्याग, प्रेम के हैं रसखानी।।
सबमें देखे राम, जान लो उसको ज्ञानी।।
परमेश्वर का भेद, कहे कोय ब्रह्मज्ञानी।।

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16 MAR AT 19:54

करे याचना ये जगत, विनय प्रार्थना ये सतत।
शीश झुके तेरे चरण, रहूँ सदा तेरी शरण।।
कृतज्ञता से भर नयन, जीवन सुंदर कर वयन।
फूल खिलें सबके चमन, हे सतगुरु सादर नमन।।

पास हो नहीं फेल हो, चाहे कोई खेल हो।
छुक छुक चलती रेल हो, अपराधी को जेल हो।।
सारे जग को मान हो, तुझपर ही अभिमान हो।
विचारों में भी जान हो, कर्म सदैव महान हो।।

हठ करता ये बालपन, खुशियों का तू कर जतन।
सब खुशियाँ मिलती रहे, बगिया भी खिलती रहे।।
मन तुमको ही मानता, और नहीं कुछ जानता।
करूँ सदा यह कामना, हरपल तू ही थामना।।

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26 FEB AT 19:26

शिवरात्रि शिव आराधना, शिव पार्वती की साधना।
शिवशक्ति ही आधार हैं, कुल सृष्टि के यह सार हैं।।
चंदा सुशोभित शीश हैं, सर्वोच्च प्रभु शिव ईश हैं।
करता जगत है प्रार्थना, सुंदर सुलक्षण भावना।।

हे शिव तुम्हीं प्रभु शक्ति हो, माया तुम्हीं अविरक्ति हो।
हे शिव शिवा तू शक्ति दे, निष्पाप निश्छल भक्ति दे।।
आरम्भ तुम हो अंत भी, पूजें असुर अरु संत भी।
जिसकी रही जस कामना, देते सुफल शुभकामना।।

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17 FEB AT 23:14

तीनों लोक जो रोशन करे जग, उसको ज्योति दिखाय रहा है
भक्ति-भाव से होके समर्पित, आरती-मंगल गाय रहा है
नाना रूप में ईश भजे जग, चरणों में शीश नवाय रहा है
कृपा करो हे परमपिता! करबद्ध हो अलख जगाय रहा है

🙏पूर्ण भजन अनुशीर्षक में पढ़ें🙏

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9 FEB AT 17:23

हृदय में तुम मेरे बसकर करो निर्मल हृदय मेरा।
तेरे अहसास में रहकर सुकूँ पाता है मन मेरा।।

जगत अपने लपेटे में न ले ले मुझको हे भगवन।
छवि अपनी मेरे मन में बसा तुम डाल दो डेरा।

मैं मेरा और तू तेरा में कभी भी ना पडूँ हे नाथ।
नयन मेरे करें दर्शन सबमें ही बस प्रभु तेरा।।

हृदय जो वेध दे कोई न वाणी ऐसी मेरी हो।
जिह्वा पर तुम सदा रहकर मृदुल करना वचन मेरा।।

क्षमा अपराधों को कर दो, दयानिधे मुझको ये वर दो।
करम मुझपर करो ऐसा, सँवर जाए जनम मेरा।।

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8 FEB AT 18:29

प्रीति पावन, मास सावन।
प्रेम बन्धन, शीश चन्दन।।
कांच का मन, टूटता छन।
ध्यान तू रख, प्रेम रस चख।।

मन मनोहर, गीत सोहर।
गा रहा मन, खिल रहा तन।।
पास आ कह, दूर मत रह।
चाहता मन, पुष्प सा बन।।

कुंज में खिल, प्यार से मिल।
जोड़ता चल, प्रीत के पल।।
है न दुष्कर, सोचने पर।
मन सुहावन, प्रीत पावन।।

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