Praveen Bhardwaj   ("Unkahi_Kahaniya")
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लिखना सीखा दिया कम्बक्त तेरी आंखों ने।
वरना पढ़ने का शौक तो हमे भी बहुत था ।
Joined 13 January 2018


लिखना सीखा दिया कम्बक्त तेरी आंखों ने।
वरना पढ़ने का शौक तो हमे भी बहुत था ।
Joined 13 January 2018
22 MAR AT 18:27

उसकी सादगी में कुछ बात है
हाथों में हाथ कुछ तो बात है
वो उसका आंखे चुराना
कुछ तो बात है
उसका बातें करते चुप हो जाना
कुछ तो बात है

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8 MAR AT 11:24

हर बात कर तुम पर लिखता था
हर पन्ने में, अपने जज्बात लिखता था
वक्त लिखा, जज्बात लिखा, दर्द लिखा, तो कभी प्यार लिखा
हर बात तुम पर लिखता था
हर पन्ने में अपने जज्बात लिखता था
एतबार लिखा, जां -निसार लिखा, तो कभी हमदर्द लिखा
हर बात तुम पर लिखता था
हर पन्ने में अपने जज्बात लिखता था
बहुत वाकिफ था तुम्हारे अंदाज से, रवैया से, बात से, हालात से, तो कभी तुम्हारे छुपे जज्बात से
हर बात तुम पर लिखता था
हर पन्ने में अपने जज्बात लिखता था

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5 MAR AT 14:03

उसे बदलाव पसंद था
मुझे ठहराव
उसे सबका होना था
मुझे उसका
उसे सब पसंद थे
मुझे सिर्फ वो
उसे जाना पसंद था
मुझे रुकना
खैर उसने वो चुना
जो उसे पसंद था
ओर मैने वो जो मुझे पसंद न था

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21 FEB AT 17:24

जिस्म की नुमाइश आज कल आम हो गई
जिसे हमने समझा था अपना अब वो किसी के खास हो गए
देर रात तक जागना अब किसी के साथ
हम हुआ करते थे खास अब आम हो गए

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18 FEB AT 21:37

आयेंगे इक दिन याद तुम्हे बहुत
दूर जा चुका होऊंगा मैं
चाहोगे के बात हो जाए
लेकिन बहुत दूर जा चुका होऊंगा मैं
रोओगे मुझे सोच कर तुम
लेकिन गले नहीं लगा पाओगे इक दिन
लेकिन बहुत दूर जा चुका होऊंगा मैं
पछताओगे मेरी बातों को सोच कर
लेकिन कुछ कर नहीं पाओगे सोच कर
क्योंकि

बहुत दूर कर दिया था तुमने
बहुत दूर चला जाऊंगा इक दिन

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18 FEB AT 15:52

इश्क इश्क कह कर
खुद को बेचा
कई हाथों में
भरोसे से खेल गए
वो सबके
न रहे वो जज्बातों में
इश्क इश्क कह कर
खुद को बेचा
न जाने कितने हाथों में

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18 FEB AT 9:12

तुझे मैने बदलते देखा है
किसी ओर की बाहों में जाते देखा है
हंसी खुशी मुझसे थी
ओर किसी ओर का होते देखा है
जाने क्या था तेरे दिल में
वो सारे जज़्बात बदलते देखा है
छुप छुप कर तुम्हे गेरो से मिलते देखा है
हां मैने तुम्हे किसी ओर का होते देखा है
झूठ कहते थे तुम मुझसे
तुम्हारे हर रंग को वक्त के साथ बदलते देखा है

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15 FEB AT 21:25

वो कहते थे हमसे तुमसा कोई न मिला
जो कर सके इश्क तुमसा
हमें क्या पता था वो दिलों से अक्सर
ऐसे ही खेलते हैं

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15 FEB AT 21:22

तुम क्या वफा करते हमसे
तुम तो हद्द बेवफा निकले

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11 FEB AT 11:48

क्या तुम मुझसे खेल रही थी?
या फिर मेरे मन को टटोल रही थी?
जब हो ही किसी साथ तुम
तो ये दिखावा क्यों कर रही थी?
क्या तुम मुझसे खेल रहे थे?
हर बार जलील करते हो
खुद ब खुद खुद को अमीर कहते हो
फैला कर बुराइयां मेरी
किसी के साथ सुकून ढूंढती रही थी
अरे जब आना नहीं था पास मेरे
ओर क्यों मेरे अरमानों से खेलती हो?
क्या तुम मुझसे खेल रही हो ?

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