Praveen Bajpai   (प्रवीण बाजपेई ✍🏻✍🏻)
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Author of the book "नज़र भर की रोशनी"
Co-Author of the book "देवी माँ दुर्गा"
Joined 26 June 2021


Author of the book "नज़र भर की रोशनी"
Co-Author of the book "देवी माँ दुर्गा"
Joined 26 June 2021
YESTERDAY AT 16:28

तुम्हारा ज़िक्र करते-करते
स्याही और पक्की हो गई
ये कोरे काग़ज़ भरते-भरते
कैसे कह दें कोई नाराज़गी बाक़ी है तुमसे
धड़कन से चिढ़ की कोई वजह नहीं होती
सोने से पहले एक बार मेरा हाल पूछ लेना
सुना है कि हर रात के बाद सुबह नहीं होती

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27 APR AT 21:28

आया मन में फ़िर एक बार
उसका हाथ थामने के लिए
हमें करना है ख़ुदको तैयार
वादा है मेरा कि तुम्हें मुझपर नाज़ होगा
ख़ुश रहना आ गया जब तुमसे मिला हूँ
ख़ुशी के आँसू तुम्हारी आँखों में भी होंगे
एक ऐसे दिन का सपना मैं लेकर चला हूँ

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27 APR AT 0:57

रहे और आधी रात बीत गई
नींद का ख़्याल भी न आया
ये रात फ़िर मुझसे जीत गई
सो जाऊँ जब हर जिम्मेदारी पूरी करके
सुनो तुम फ़िरसे मुझे जगाने मत आना
चला जाऊं जब उस अंतहीन सफ़र पर
सुनो तुम फ़िरसे मुझे उठाने मत आना

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24 APR AT 21:31

तुम कुछ ज़रूरी से होने लगे हो
ख़ूबसूरती बेइंतहा मिली है तुम्हें
शायद कुछ नूरी से होने लगे हो
तुम न भी देखना चाहो मेरी तरफ़
मेरी नज़र तुमसे कभी नहीं हटेगी
सोचते ही परेशान हो जाता है मन
तुमसे दूर मेरी ज़िंदगी कैसे कटेगी

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24 APR AT 20:14

फिर भी ग़ुरूर-ए-इश्क़ तो है तुमसे
कितना भी छिपा लें चाहे हम मन में
फ़िर भी सुरूर-ए-इश्क़ तो है तुमसे
मेरी नज़र उसे देखती है ख़ूब-रू की तरह
कुछ नायाब ख़ासियत तो रही होगी उसमें
कुछ तो होगा जो उसका नाम छिपा रखा है
एक ख़्याली रूमानियत तो रही होगी उसमें

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23 APR AT 19:41

उसके नाम का हमें सहारा मिला है
छोड़ना तो चाहा उसे अकेला हमने
आज फ़िर वो हमें दोबारा मिला है
नहीं पसंद थी उनको ये शक्ल-ओ-सूरत हमारी
तो हमने भी महफ़िलों में दिखना बंद कर दिया
दिन-रात उनको ही याद करता रहता था दिल
उन्हें लगा कि दीवाने ने लिखना बंद कर दिया

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22 APR AT 22:31

इस्लामी आतंकवाद का चेहरा
देखने को मिला फिर एक बार
जब नाम पूछकर आतंकियों ने
किया निहत्थे पर्यटकों पर वार

हिन्दू और हिंदुत्व से चिढ़ने वाले
क्या अब नाम पूछ-पूछकर मारेंगे
समझ नहीं आता कि बुरा कौन है
आख़िर कब तक हम इनसे हारेंगे

एक शांत शाम को ये ख़बर आई थी
कश्मीर की घाटी ने वो खून देखा था
गुलज़ार रहे पहलगाम की वादियों ने
उन मासूम चेहरों को मज़नून देखा था

दो नापाक पाकिस्तानी मुसलमानों ने
फ़िरसे इंसानियत की इज़्ज़त उतार दी
सोचो अगर यही हम करें तो क्या होगा
नाम जाना धर्म पूछा और गोली मार दी

सरकारों का क्या पड़ना कोई फ़र्क नहीं
उनको बस हिंदू-मुस्लिम करना आता है
और इस तथाकथित कट्टरता के कारण
हर बार एक सनातनी बलि चढ़ जाता है

कहाँ गए वो बुद्धिजीवी ज़रा सामने बताएं अब
जो चले गए क्या उनको वापस लाना मुमकिन है
भारत की सरकार से एक अनुग्रह करता है दिल
अब पाकिस्तान को नक्शे से मिटाना मुमकिन है

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22 APR AT 16:04

कभी कभी मन में ख़्याल आता है
क्या तुमको निकाल पाएंगे दिल से
हर रोज़ ख़ुदपर ये सवाल आता है
न बिकी कोई दवा इस इश्क़ की यहाँ पर
वहीं फँसकर रह गए हम गिरे थे जहाँ पर
लाख न आता हो मेरे महबूब को ख़्याल मेरा
नाम रहता है उसका हर वक़्त मेरी ज़ुबाँ पर

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22 APR AT 13:26

कि मिजाज़ कुछ बदले से नज़र आते हैं
लगता है कोई दिल में बस गया है शायद
कि लम्हे उससे दूर अब गुज़र नहीं पाते हैं
मन की पसंद पर इतना ग़ुरूर है मत पूछो
कि हर शाम हम उसकी गली तक जाते हैं
और क्या हुआ ग़र हासिल नहीं भी है वो
उसके एहसास हमें इश्क़ करना सिखाते हैं

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21 APR AT 22:53

पर आज दर्द थोड़ा ज़्यादा था
पापा की कमी महसूस हुई थी
और दिल रोने पर आमादा था
पापा के अचानक जाने से महसूस हुआ
अकेले बैठकर हँसना और रोना क्या है
धूप की जलन और बारिश की चुभन से
ये समझ आ गया पिता का होना क्या है

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