18 MAY 2019 AT 17:28

मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये।

तुम संगमरमर राजस्थानी हो, मैं बाथरूम की टाइल हूं,
तुम ब्रॉडबैंड हो जिओ का, मैं खिसकती सरकारी फाइल हूं,
तुम ग्रीन सिग्नल हो हाइवे का, मैं नो एंट्री का साइन हूं,
तुम ऑनलाइन किया ट्रांजैक्शन हो, मैं नोटबंदी की लाइन हूं,
तब भी ना देखू तुझको तो हो जाती है अझेल प्रिये,
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये।

तुम टैडी बियर हो बेडरूम का, मैं चिड़ियघर का भालू हूं,
तुम बटर चिकन हो पांच सितारा, मैं ढाबे का जीरा आलू हूं,
तुम सुकून हो गोवा का, मैं लद्दाख ना जा पाने की पीड़ा हूं,
तुम रेशम देने वाली कीड़ी हो, मैं दांत में लगा कीड़ा हूं,
तुझपे ये कविता लिखने पर ना करवा देना मुझे जेल प्रियेे,
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये।

- प्रवीन आग्री