ପୁନରାବୃତ୍ତି; ଲୌହ ଦାନବର ରକ୍ତଭୋଜି
ବାସ୍ କିଛିଦିନ ପରେ ନିରବୀ ଯିବ ବାହାନଗାଁର ସେ ବୁକୁ ଫଟା ଅର୍ତ ଚିତ୍କାର।
ଲୋକେ ସବୁ ଭୁଲିଯିବେ ଆଜିର ଏ ଦୃଶ୍ୟ ବିକଟାଳ।
ପୁଣି ଛୁକ ଛୁକ୍ ହୋଇ ଚାଲିବ ସେଇ ଲୁହା ଧାରଣାରେ କରମଣ୍ଡଳ।
ହେଲେ ଫେରିକି ଆସିବ ଆଉ ଉଜୁଡ଼ି ଯାଇଥିବା କେତୋଟି ହସ ଖେଳର ସଂସାର!
କିଏ କହେ ବଞ୍ଚି ଯାଇଥାନ୍ତେ ନ ଯାଇଥିଲେ ଗ୍ରୀଷ୍ମ ଅବକାଶେ।
କିଏ କହେ ହଜିଗଲା ଜହ୍ନ ମୋର ତାରା ଭରା ଆକାଶେ।
କିଏ କହେ କି ଦୋଷର ଭୋଗିଲୁ ଏ ଦାରୁଣ କଷଣ!
କିଏ କହେ ଠାକୁର ହେ ମୋ ପାଇଁ କି ହୋଇଲ ପାଷାଣ।
ରକ୍ତ ବର୍ଷାରେ ଭିଯିଛନ୍ତି କେତେ କେତେ ଜୀବନ୍ତ ଓ ମୃତ ଶରୀର
ଆଉ କିଛି ମୃତ୍ୟୁକୁ ଅତି ନିକଟରୁ ଦେଖି ହୋଇଯାଇଛନ୍ତି ନିସ୍ତେଜ ନୀର୍ବାକ।
କେଉଁଠି ପୁଅ ବାପାର କଟା ମୁଣ୍ଡକୁ କୋଳରେ ଧରି ଗୁମୁରି କାନ୍ଦେ ତ,
କେଉଁଠି ବାପା କୁଢ଼ କୁଢ଼ ଅଚିହ୍ନା ଶବ ମୁହଁରୁ ରକ୍ତଭିଜା କପଡ଼ା ଟେକି ପୁଅକୁ ଚିହ୍ନିବାର କରେ ଅଦମ୍ୟ ପ୍ରୟାସ।
କେଉଁଠି ଝିଅ ନାହିଁ, କେଉଁଠି ପୁଅ ନାହିଁ, କେଉଁଠି ବାପା ନାହିଁ, କେଉଁଠି ନିଶ୍ଚିହ୍ନ ସମ୍ପୂର୍ଣ୍ଣ ପରିବାର,
ଆଉ କେଉଁଠି ରହିଯାଇଛି ବୟସର ଅପରାହ୍ନରେ ମୃତ୍ୟୁର ଅପେକ୍ଷାରେ ଏକାକିନୀ ମାଆ।
ସତରେ ଏହାଠାରୁ ବଳି ଦାରୁଣ କଷ୍ଟ କଣ କିଛି ହୋଇପାରେ, ବୋଧ ହୁଏ ନା।
ବୋଧ ହୁଏ ପୁଣି ପୁନରାବୃତ୍ତି ହେଲା ଲୌହ ଦାନବର ରକ୍ତର ଏ ମହାଭୋଜି।-
☮️Omnivert⚛️
जो लिखना था वह लिख दिया
झूठे रूठे टूटे-फूटे तमाम बंधनों के
जंजीरों से जो मुक्त हुआ
जो लिखना था वह लिख दिया।
अपने हाथों से इतिहास और भविष्य भी लिख दिया
अंजान-ए-राह पर जीवन जो संदिग्ध हुआ
जो लिखना था वह लिख दिया।-
जो न लिखना था वो लिख दिया
जो पथ न चलना था वो चल दिया
न सोचा न समझा न जिंदा ना मुरझा
नग्न पांव और न समझ हाथ
वेपथ पथ पर चल दिया वो आख़िर पन्ना भी भर दिया।
जो न लिखना था वो लिख दिया।-
चलो आज कुछ लिख जाऊं मैं
नाकाम बंधन से छूट जाऊं मैं
झूठे रूठे यत्न प्रयत्न बहुत किया
चलो आज अंदर से जी भर कर टूट जाऊं मैं।
विस्तार गगन अस्थिर समंदर
नादान पंछी और अकाल बवंडर
आंख दिखाकर रोकना नहीं
उंगली दिखा कर टोकना नहीं
गिर के और अब उठना नहीं
जगाओ मत आज चिर नींद में सोऊं मैं
चलो आज कुछ लिख जाऊं मैं।-
हाल ऐ दिल न पूछो प्राण से!
प्राण प्राण है क्यों कि तुम प्राण में हो।
कोशिश ये प्राण की कभी न छोड़े तुम्हें
मगर दुनियां ऐ मौत का प्राण से कहां डरें!-
हर लम्हा को समय कैसे कहा जाए
जब गुजरता समय से लम्हे दिल में जम जाए
तब हर समय को लम्हा कैसे कहा जाए!!
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Sometimes the pink eraser is unable to
erase the hunger of dark charcoal.-