धरिणी की हर स्पंदन में कल्याणकारी नाद है,
पेड़, नदियाँ, खग, झरने — मधुमय इनका संवाद है।
पर आज धरा कुछ रोती है,
चुपके-चुपके कुछ कहती है।
संभालो मुझे, अब थक चली हूँ,
साँसों में धुँआ मैं रख चली हूँ।
मुझमें बसी है जीवन की क्यारी,
क्यूं रौंद रहे बन तुम अत्याचारी?
कहाँ गया वो नीला गगन?
पिघल रहे अब हिम के भी धरण।
सुनो! ये संकेत हैं सारे,
मानव गर अब भी संभलें ना तुम ।
फिर बच सकोगे नहीं,
डंसेगा जब नियति का विषधर फन।-
दूरी में रहे अचल प्रीत बंधन, हर स्पंदन में तुझे पाऊँ..
ठह... read more
मन को जो शीतल कर जाए,
वह छाँव तेरा घेरा है।
जो हर क्षण मुझमें बस जाए,
प्रभु वह सुरम्य तेरा दिया सबेरा है॥-
कैसी है ये अनवरत हलचल,
जो हो गए सब प्रबंध विफल..
कभी मणिपुर-बंगाल तो कभी देश-बंगला,
कहाँ है आदर्श समाज में अब समरसता या मंगला !?
क्या है ये समाज का महामरण
या फिर तंत्र का महाभरण !?
जो कभी हवाई अड्डे की छत,
तो कभी रेल हादसे का शिकार आमजन..
गर बच गए उत्तरजीविता पश्चात् ,
तो मिलेंगे शिक्षण या कार्यस्थल पर
मृत्यु माफिक या दुष्कर्म संकटण !-
अप्रतिम क्रीडा विशारद,
सुभग क्षण, यश हृदय द्रावक ।
अनुतोष हुए, देख स्वप्निल प्रदर्शन,
सदाशयी-समाविष्ट, विश्वविजयी दल दमक ॥-
कुछ बातें, कुछ 14 वर्ष पूर्व की यादें ,
जीवन की यात्रा के कई अनजाने रास्ते,
पश्चात इसके दशक बाद की ये मैत्री मुलाक़ात,
जो भर दिए आज के इस सुहाने दिन में मिठास !!-
विभूतिभूषित है अवध, रच सुरमई ऋचाएं,
नैन देखें अघायें अवध में राम को ।
बिठा मनन के समंजस, हिय मंत्रमुग्ध हो जाएं,
नयन हुए पावन, देखें जब सिया के राम को ।
राम की विभूति से है पुनीत, भाव नदियां स्वयं में समाएं,
जनमानस का हुए प्रशस्त मार्ग, स्मरण किए जब वाल्मीकि-तुलसी के राम को ।
पढ़ वेद-उपनिषद है रोमांचित धरा, वायु भी धुन राम के गाएं,
चेतन हुए मेरे धन्य, अनुभूत किए जब लक्ष्मण-भरत के राम को ।
उर्मिला की प्रतिक्षा सी, पूर्ण हो सुरभित दशों दिशाएं,
काल का हुआ कल्याण, संदर्शन किए जब निषाद-शबरी के राम को ।
यह पुण्यमही नगरी अयोध्या, सरयू के जलधि से है सिंचाएं,
सुनो कर्णप्रिय जयकारे सुरीली, यह ध्वनि समर्पित बजरंगी के राम को ।-
बज रहे तार हिय के, छठ पूजा के महा अनुष्ठान में ।
गीत कविता छंद मुक्तक, सब निःशब्द होंगे बखान में ॥-
हे मां महिषासुर मर्दिनी,
आनन्दातिरेक जीवंत करो !!
हे विंध्य शिरोमणि मां विंध्यवासिनी,
विद्यावारिधि समाविष्ट करो !!
हे रम्य कपर्दिनि देवी नारायणी,
कुसुमित हिय विशद करो !!
हे मां महागौरी, शारदा भवानी
सर्व क्लेश अनुतोष करो !!-
वृहत्तर स्नेह-संस्कृति छत्र तले,
अतिशय प्रणय का प्रमाण ।
स्नेह अंकुरित अभिव्यक्ति सरलतम,
सौम्य रूप कर रहे सब बखान ॥-
है विदारित हृदय अंतस तक, यह मनुष्यता का विध्वंस हैं ।
कर गया अपध्वंस आत्मा भारत की, प्रधान कहां सुप्त हैं ॥-