Pratyush Gautam   (प्रत्यूष गौतम)
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Joined 16 December 2018


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25 AUG AT 11:41

जब-जब बंसी बजे कन्हैया,
हृदय निमज्जनरत, आनन्दातिरेकी भयो।
राधा-रस सरस सुहृद प्रीतिकर,
निशिदिन निर्मल होय चक्षु, पुण्डरीक-नयन दर्श पायो॥

जब-जब डमरू बजे भुजगपति,
मूर्धन्य नर्तनरत, नभ-मण्डल झंकृत भयो।
सती-स्नेह संवलित, भवभय-हरणकर,
निशिदिन निर्मल होय चित्त, कैलासपति दर्श पायो॥

एक-तत्त्व समाविष्ट मम उपास्य-देव रुद्र-गोविन्द,
त्रिनयन दयालु, चक्रधर कृपालु, हृदय-विहारी भयो।
पद्मिनी-शर्वाणी-सहित स्वामी-कृषव करुणाकर,
निशिदिन निर्मल होय जीवन, नाथ-हरिहर दर्श पायो॥

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17 AUG AT 0:08

जब-जब बंसी बजे कन्हैया,
हृदय निमज्जनरत, आनन्दातिरेकी भयो ।
राधा-रस सरस सुहृद प्रीतिकर,
निशिदिन निर्मल होय चक्षु, पुण्डरीक-नयन दर्श पायो ॥

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11 AUG AT 22:38

मैं ऋग्वेद की ऋचाओं का स्वर, यजुर्वेद की यज्ञ-आहुति,
सामवेद की गूंजित तान, अथर्ववेद का जीवन-विधान,
ध्यान में डूबा कर्मयोगी, सनातन का विस्तार हूँ,
हाँ, मैं जम्बूद्वीप का भारतवर्ष, आर्यावर्त – हिन्दुस्तान हूँ!!

(पूरी कविता अनुशीर्षक में.. )

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13 JUL AT 10:38

मन मंथन के क्षणों में, सतत प्रवाहित संवेद स्वर,
हृद-पयोधित, विभूतिभूषित आदिदेव - विश्वनाथ नगर ।
प्रणीपात स्वीकारो माता विशालाक्षी-काशीपुराधीश्वरी-माँ गंग लहर,
भाव तल्लीन मम् हिय, महादेव! सदैव रहूँ आपके अनुचर ॥

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22 APR AT 10:02

धरिणी की हर स्पंदन में कल्याणकारी नाद है,
पेड़, नदियाँ, खग, झरने — मधुमय इनका संवाद है।

पर आज धरा कुछ रोती है,
चुपके-चुपके कुछ कहती है।
संभालो मुझे, अब थक चली हूँ,
साँसों में धुँआ मैं रख चली हूँ।
मुझमें बसी है जीवन की क्यारी,
क्यूं रौंद रहे बन तुम अत्याचारी?

कहाँ गया वो नीला गगन?
पिघल रहे अब हिम के भी धरण।
सुनो! ये संकेत हैं सारे,
मानव गर अब भी संभलें ना तुम ।
फिर बच सकोगे नहीं,
डंसेगा जब नियति का विषधर फन।

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1 APR AT 23:31

मन को जो शीतल कर जाए,
वह छाँव तेरा घेरा है।
जो हर क्षण मुझमें बस जाए,
प्रभु वह सुरम्य तेरा दिया सबेरा है॥

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14 AUG 2024 AT 12:06

कैसी है ये अनवरत हलचल,
जो हो‌ गए सब प्रबंध विफल..

कभी मणिपुर-बंगाल तो कभी देश-बंगला,
कहाँ है आदर्श समाज में अब समरसता या मंगला !?

क्या‌ है ये समाज का‌ महामरण
या फिर तंत्र का महाभरण !?

जो कभी‌ हवाई अड्डे की‌ छत,
तो कभी रेल हादसे का‌ शिकार आमजन..

गर बच गए उत्तरजीविता पश्चात् ,
तो मिलेंगे शिक्षण या कार्यस्थल पर
मृत्यु माफिक या दुष्कर्म संकटण !

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1 JUL 2024 AT 10:23

अप्रतिम क्रीडा विशारद,
सुभग क्षण, यश हृदय द्रावक ।

अनुतोष हुए, देख स्वप्निल प्रदर्शन,
सदाशयी-समाविष्ट, विश्वविजयी दल दमक ॥

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8 FEB 2024 AT 23:47

कुछ बातें, कुछ 14 वर्ष पूर्व की यादें ,
जीवन की यात्रा के कई अनजाने रास्ते,
पश्चात इसके दशक बाद की ये मैत्री मुलाक़ात,
जो भर दिए आज के‌ इस सुहाने दिन‌ में मिठास !!

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22 JAN 2024 AT 4:03

विभूतिभूषित है अवध, रच सुरमई ऋचाएं,
नैन देखें अघायें अवध में राम को ।

बिठा मनन के समंजस, हिय मंत्रमुग्ध हो जाएं,
नयन हुए पावन, देखें जब सिया के राम को ।

राम की विभूति से है पुनीत, भाव नदियां स्वयं में समाएं,
जनमानस का हुए प्रशस्त मार्ग, स्मरण किए जब वाल्मीकि-तुलसी के राम को ।

पढ़ वेद-उपनिषद है रोमांचित धरा, वायु भी धुन राम के गाएं,
चेतन हुए मेरे धन्य, अनुभूत किए जब लक्ष्मण-भरत के राम को ।

उर्मिला की प्रतिक्षा सी, पूर्ण हो सुरभित दशों दिशाएं,
काल का हुआ कल्याण, संदर्शन किए जब निषाद-शबरी के राम को ।

यह पुण्यमही नगरी अयोध्या, सरयू के जलधि से है सिंचाएं,
सुनो कर्णप्रिय जयकारे सुरीली, यह ध्वनि समर्पित बजरंगी के राम को ।

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