Pratyush Dwivedi   (सार ।। (Saar))
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Writer poet
Joined 6 April 2018


Writer poet
Joined 6 April 2018
23 APR 2024 AT 22:32

उसको जीतने की भी एक कवायद है,
तुमसे किसने कहा के इश्क में सब जायज़ है,

ये हवा,ये रंग, ये शोखियां उसके इशारे पर है,
जो खिलाफ थे उसके, शहर से गायब है,

जिसकी खुशबुओं से रौनकें हो हासिल,
दीदार मिल जाए तो समझो किफायत है,

एक हम ही नहीं जो मुरीद हो उसके,
सब देखते है उसको, जैसे अजायब है,

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30 JAN 2024 AT 23:06

ना बुलाना हमे अगर आजमाइश हो तो,
याद करना अगर कुछ ख्वाहिश हो तो,

हम तेरे साए तक से गुज़ारा कर सकते है,
तुम देख लेना कही कुछ गुंजाइश हो तो,

हम पर हसरतें इतनी है के चौंक जाओगे,
तुम अपनी सुनाना जो फरमाइश हो तो,

हमारा हम पर ही जोर काफी है सार,
तुम खुद पर काबू रखना जो नुमाइश हो तो,

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4 JAN 2024 AT 22:56

ना किसी चाह ना भरोसे का तलबगार बनिए,
मक्कारो का जमाना है, चेहरे से होशियार बनिए,

क्या कीजिए उसका जिसको भाता फरेब हो,
आप बेइमानी सीखिए, लफ्जो से ईमानदार बनिए,

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21 DEC 2023 AT 23:02

हम आए थे सादगी भरी तबीयत लिए हुए,
लोग हमसे मिले अपनी जरूरत लिए हुए,

हमे चाह थी फकीर के इश्क जैसी,
जान मिलते है हमसे, हुकूमत लिए हुए,

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12 DEC 2023 AT 11:15

कांच का पारा बढ़ाकर,
आइना बनाने वाले लोग,
वही आइना जब सच दिखा दे,
तो क्यों पारा चढ़ाते लोग,

किसी की हार पर,
जम कर बोली लगाते लोग,
खुद की हार पर झेंपते
और बौखलाते लोग,

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29 SEP 2023 AT 22:01

नागवार हो और फिर "हां" कहना पड़े,
इससे बेहतर है के "ना" को "ना" कहना पड़े,

दिल दबी ज़बान से चीखता रह जाय,
क्या कहना चाहते थे और क्या कहना पड़े,

ये क्या कमाया अना ताक पर रख के तुमने,
बेसाख़्ता महल हो तुमपे ,पर कैद रहना पड़े,

जुबां के गिरवी होने का दर्द जानते हो,
बेमर्जी से जैसे कोई लिबास पहनना पड़े,

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27 SEP 2023 AT 1:05

किस हाल में है कोई पूछने वाला नहीं है,
मेरा भी हमसफर मुझसे कोई आला नही है,

किस तरह की जिंदगी जी रहे है हम,
इतने धोखे पर भी होश संभाला नही है,

कोई रो भर भी दे तो साथ चले आते है,
हां, जरूरत के बाद रिश्ता उसने निकाला नही है,

क्यों ख्वाब खुद को दिखाते फिरते हो सार,
तबाही, मौत पर कोई पूछने वाला नहीं है,

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4 JUL 2023 AT 0:31

मन मजबूर,लबों पे हसी, चेहरे की चमकारी देखिए,
आप सब छोड़िए, बस हमारी अदाकारी देखिए,

फुरसत से सुनी हर एक कहानी उसकी,
आप शिद्दत से मुलाकात हमारी देखिए,

कहने को बहुत कुछ फिर भी न खुले,
आप बंद लबों की फनकारी देखिए,

इशारों को पढ़ने का हुनर हमे आता है,
आप तो बस आंखो को होशियारी देखिए

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30 JUN 2023 AT 23:56

कहां किससे ये हाल संभाला जाता है,
हमारे मिजाज़ पे तो सिक्का उछाला जाता है,

तुम्हारी सूरत भी खुदगर्ज लगती है,
हमसे रिश्ता भी जरूरत पे निकाला जाता है,

मेरी बुराइयां आज अच्छी लगी तुमको?
वो निकाली किसने, ये सवाल आ जाता है,

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2 JUN 2023 AT 23:20

हर मुलाकात पर अगर बिछड़ना होता,
तो शायद मैं तुमसे मिला ही ना होता,

कोई नजर किसी सहरा फिर रही होती,
ये दिल लग कर भी लग रहा नही होता,

बहुत होता तो इतना सा होता,
मैं फिरता शहर, तू ठहरा गांव सा होता,

ये दुनिया चिलमन से नज़र आती,
क्या होता के गर ये चिलमन नही होता,

बुरे वक्त पर घर रास नहीं आया जिसको,
बसर होकर भी दुनिया में सरफिरा होता,

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