बेवफाओं का शहर है उसका कदम ज़रा संभाल कर रखना
दिल रखते हो तुम बहुत अच्छे मगर दिल पत्थर का रखना-
आज नहीं तो कल जरूर बोलेगी।
प्रतिक सिंघल " प्रेमी "
दीपक सा प्रकाशित हो जीवन आपका
मिठाई से भी मीठा हो स्वभाव आपका
सारे अंधकार मिट जाए आपके इस दिवाली और
खुशियों की सौगातों पर लिखा हो बस नाम आपका-
सारी खुशियाँ महज पैसों से नहीं खरीदी जा सकती हैं
कुछ खुशियों के लिए हमें अपनों की जरुरत भी पड़ती हैं-
आ गयी है त्रियामा दीप प्रज्वलन की आज
छाया है उल्लास जश्न-ए-दिवाली का आज
आलम हैं यहाँ तो सिर्फ खुशियों का चारो ओर
क्योंकि क्योंकि आ गया है पर्व दीपों का आज
छायी है अलग ही रौनक इन सभी बाजारों में
कही पटाखों में कही मिठाइयों की दुकानों में
जगमगा रहे है, बाजार रंगबिरंगी रोशनियों से
खिल उठे हैं चेहरे सबके आज इन खुशियों से
इन सब से बहुत दूर कुछ तो है ऐसा
जो मेरे नैनो में हर पल खटक रहा है
अपने मुख पर छोटी सी मुस्कान लिए
वो फुल बाजारों में कहीं भटक रहा है
अपना सामान बेचने के लिए वो
खा रहा हैं ठोकरें इन गलियों में
क्यों कोई ध्यान नहीं दे रहा है ?
दुखों से मुरझाये हुए इन फूलों में
इन बच्चों का कोई हक नहीं क्या ?
मिठाई खाने और खुशियाँ मनाने का
दीप जलाने और दिवाली मनाने का
इनका भी हक है त्योहार मनाने का
आओ इस दीपावली हम कुछ ऐसा कर देते है
इनके जीवन में भी खुशियाँ के रंग भर देते है
दुर करके इनके चेहरो से उदासी और गमों को
इन सब को भी मुस्कराहट का तोहफ़ा दे देते है
इस बार केवल अपनी ही नहीं इनकी दीपावली भी खास बनाते है
आओ इस बार हम सभी एक साथ मिलकर दीपावली मनाते है!!-
आज की यामा बड़ी ही सुहानी हैं
इसकी अद्भुत सी कोई कहानी हैं
कुछ तो बात है इस निशा में ऐसी
जो ये रात सुहागनों की निशानी है
चंद्रमा की प्रतीक्षा में बैठी है ये सभी हूर
भुखी प्यासी इंतज़ार कर रही है भरपूर
चाँद को अरख लगा खोलेगी फिर अपना व्रत ये
करेगी वर के लम्बी उम्र की कामना आज भरपूर
चंद्रमा भी कर रहा है ठिठोली बहुत आज
छिपा बैठा है वो बादलों की ओट में आज
ये भी इंतजार करायेगा आज इनको बहुत
क्योंकि चांद और चांदनी की रात है आज
श्रृंगार कर बैठी है सुहागने तेरे ही इंतज़ार में
और न सता इनको अब आजा तू आसमान में
जो भी है अधुरी कर दे इनकी हर मुराद वो पूरी
फिर फैला अपनी चांदनी कर दे ये रात सुनहरी
निकल आया है चाँद अब लम्बें इंतज़ार से
फिर वधु पी कर जल अपने वर के हाथ से
खोल रही है सौभाग्यवती ये चौथ का व्रत
जो व्रत है कार्तिक की करवाचौथ के नाम से-
निकल आया है चाँद छत पर
मेरे चाँद से मिलने के लिए
पर मेरा चाँद खफा है आज
क्यों मुझसे मिलने के लिए-
गुजरे हुए वक्त की कहानी सुनाती है
ये दीवार की कीलें अपनी दास्तां बताती है-
रिश्ता बनाना
और
रिश्ता बनाये रखना
दोनों में ही
बड़ा फर्क होता है
क्योंकि
कभी किसी
अजनबी से भी
गहरा लगाव
हो जाता है
तो कभी
कुछ अपने ही
अजनबी से
लगने लगते है !!-
उम्मीद तो नहीं है की वो आज भी मुझे दिल में बसाये रखता है
पर ये भी सच है कि उम्मीद पर ही तो पुरी दुनिया कायम है-
कांटे भी मरहम का काम कर देते है
जब फूल अपने हमें घाव दे देते है !!-