अजनबी संग प्रीत, उस मंझील की तरह है जिसका सफर कभी खत्म नही होता और हमेशा अफसोस रहेता है, वो मंझील मुकम्मल ना होने का क्योंकी उस अधुरे सफर जैसा कोई यादगार सफर नही होता
आज फिर दस्तक देकर लौट रहे हो दरवाजा खुला है दिल का, फिर भी मुड रहे हो ऐसी क्या कश्मकश है, जो अब दुरीयाँ बना रहे हो अपने ही किए वादे-इरादे आज आप ही तोड रहे हो
तेरे होने से एक खौफ सा था जिंदगी में तेरे ना होने से अब आजादी मेहसूस कर रहा हुँ तेरी जुलमी कैद से बा-इज्जत बाहर पाकर खुदको तेरी कैद मे फंसे रकीब की सलामती की दुँवा करता हुँ