Pratik Lokhande   (Pratik Lokhande)
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Joined 18 December 2017


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20 JUL 2020 AT 1:06

ज़ुबान पे लगे ज़ख्म जल्दी भर जाते हैं,
पर
ज़ुबान से लगे ज़ख्म कभी नही भरते।

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27 JUN 2020 AT 4:35

उसे मेरी शायरी की लिखावट पसंद है।
मुझे उसके बदन की बनावट पसंद है।

कितना सैर करती है, मेरे ख्यालो में दिनभर,
थकती होगी, पर मुझे ये थकावट पसंद है।

सज संवरती ऐसे, जैसे ईद-ओ-दिवाली हो,
सिर्फ़ बिंदी भी लगाए तो ये सजावट पसंद है।

बातें उसकी इतनी मीठी जैसे शहद घुलता हो,
कुछ भी हो मगर मुझे ये घुलावट पसंद है।

जिस सम्त में देखो, मुझे उसके ख़्वाब आते हैं,
मैं सो तो नहीं पाता, पर मुझे छटपटाहट पसंद है।

उसके गली से गुजरो तो ही शहर आता है,
मुझको मगर ऐसी हसीन ये रुकावट पसंद है।

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27 JUN 2020 AT 4:30

उसे मेरी शायरी की लिखावट पसंद है।
मुझे उसके बदन की बनावट पसंद है।

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26 JUN 2020 AT 19:40

ख़्याल-ए-इंतिक़ाम से किसे क्या हासिल होगा,
छोड़ देता हूँ ये ख़्याल, तुम्हारा ख़्याल करके।

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26 JUN 2020 AT 19:38

दिल हैरत में है मेरा, खुदसे ये सवाल करके।
उन्हें नींद कैसे आती है, मेरा यूँ हाल करके।

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26 JUN 2020 AT 10:22

ना किसीको अदना, ना किसीको अहम मानते हैं,
अपने रास्ते के पत्थर को भी हम-क़दम मानते हैं।

ठोकर लगती है, लोग सुधर जाते हैं पर हम,
आज भी एक सितमगर को अपना सनम मानते हैं।

मुस्कराने का सलीक़ा तो भूला चुके हैं कब के,
अब जो कोई रुलाए, तो उसे ही हम-दम मानते हैं।

ज़िन्दा हूँ लगे जब कोई दानिस्ता परेशाँ करें,
तग़ाफ़ुल हमसे जो करें, उसे ही बेरहम मानते हैं।

शोर-ए-इज़ा-ए-दिल को मेरे तमाशा समझा,
अब जो कोई खुशी मनाए तो मातम मानते हैं।

ज़ाया होने नहीं देते हर किसी पे आँसू,
बड़े क़ीमती है जिसे हम ज़म-ज़म मानते हैं।

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21 JUN 2020 AT 9:00

मैं क्या जानू तुम क्या मानो,
मेरी तो धरती-आसमान है,
पिता कहते है उन्हें,
मेरे लिए तो भगवान है।

सुबह शाम मेहनत वो करता
भूलता ख़ुद भी इंसान है,
फ़िक्र उसे सिर्फ बच्चों की
बच्चे ही उसका जहान है।

पुराने जूते, कमीज़ पूरानी
भूलता ख़ुद की पहचान है,
एक खिलौना माँग के देखो
वो लाता पूरी दुकान है।

आँच ना आना देता हम पे
बन के जैसे पासबान है,
वो मेरा गुरूर भी है
वो मेरा अभिमान है।

खूश-हाल करे भविष्य हमारा
चाहे बिघडा उसका वर्तमान है,
ज़िंदगी भर ना लौटा पाए
होते उनके इतने एहसान है।

होगा खुदा की परछाईं ये
ऐसा मेरा अनुमान है,
पिता कहते है उन्हें,
मेरे लिए तो भगवान है।

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19 JUN 2020 AT 21:06

दिल हैरत में है मेरा, खुदसे ये सवाल करके।
उन्हें नींद कैसे आती है, मेरा यूँ हाल करके।

मकाँ बदलने से ज़ज्बात नहीं बदला करते,
मैंने देखा है, खुदको घर से निकाल करके।

इस तरह भी नहीं टूटता, जैसे तुम तोड़ते हो,
मैंने देखा है आसमाँ में दिल उछाल करके।

मुझको पता है, तुम्हें फ़िर ज़रूरत पड़ेगी,
मैंने रखा है वक़्त-ए-फ़ुर्सत संभाल करके।

सूरत-ए-हालात मेरे ऐसे तुम नहीं समझोगे,
मुझे देखना है, तुम्हें मुश्क़िल में डाल करके।

ख़्याल-ए-इंतिक़ाम से किसे क्या हासिल होगा,
छोड़ देता हूँ ये ख़्याल, तुम्हारा ख़्याल करके।

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15 JUN 2020 AT 8:44

ख़ुदकुशी है सहल भी लेकिन हासिल-ए-मंज़िल नहीं,
ज़िंदगी है मुश्क़िल भी लेकिन ज़हर-ए-क़ातिल नहीं।

ज़िंदगी है राज़ संगीन, इसको तुम ना समझो कभी,
ज़िंदगी है गहरा समंदर, पर थमा साहिल नहीं।

है वो दिल में क्या क्या छुपाता, चेहरे पर ज़ाहिर नहीं,
बज़्म में होता भी मौजूद, पर साहब-ए-महफ़िल नहीं।

कौन कैसे हाल में होता, क्या किसे है ख़बर भी कोई,
उसकी भी परवाह करो तुम, जो तुम्हारे क़ाबिल नहीं।

हर किसीको है ज़रूरत, हर किसी के साथ की,
बातें ज़रा उसकी भी सुन लो, हो वो जाए ग़ाफ़िल नहीं।

है मुसाहिब भी तेरे, तू देख ले आस पास भी,
है सभी अपने ही तेरे, कोई तेरे मुक़ाबिल नहीं।

हो तुझे कभी आरज़ू, मौत के दामन की भी,
माँ का आँचल थाम ले, जिसमें ग़म कोई शामिल नहीं।

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14 JUN 2020 AT 12:40

बातें ज़रा सी तल्ख़ी लगती होंगी,

लोग कहते हैं, मैं सच बोलता हूँ।

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