Pratik   ('Praneeta')
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Joined 21 October 2018


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30 NOV 2023 AT 22:30

एक पेड़ है,
पीपल का पेड़।
नदी के किनारे,
धाराएं पास से गुजरती है,
बिलकुल उसके जड़ों को कुरेदते हुए,
जिन्हें उसे सींचना था वही उन्हें खोखला कर रही हैं, धीरे-धीरे निरंतर...

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1 OCT 2023 AT 21:01

serenity after a long struggle.

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30 OCT 2022 AT 7:28

छठ कोई पर्व नहीं है ये हमारा अस्तित्व है।

छठ में जीवन का मूल छुपा है, जब पंचमहाभूत, पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और वायु, साथ होते है तब हमारा अनुष्ठान सफल होता है।
छठ हमे सह अस्तित्व सिखाता है, आम दिनों में उपेक्षित भूमिज सूथनी से लेकर सबसे ऊंचे बांस तक, खट्टे नींबू से लेकर मीठे गन्ने तक, नारियल, सिंघाड़ा, शरीफा, मेवा से लेकर अदरक, हल्दी, मूली जैसे दैनिक खाद्य पदार्थ सभी साथ में आवश्यक है।
छठ हमारे पूर्वजों की सबसे बड़ी आध्यात्मिक भेंट है जो हमें हरवर्ष आत्म निरीक्षण का अवसर देता है और मौलिक, प्राकृतिक और आत्म संयमित जीवन जीने को प्रेरित करता है।

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16 SEP 2022 AT 11:33

ये बारिश की बूंदे नहीं हैं,
प्रेमपत्र हैं,
जो आसमां ने लिखे हैं,
धरती के लिए।

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22 JAN 2022 AT 20:21

खलिहानों में उग आना तो स्वाभाविक है,
जिजीविषा तो पहाड़ी पेड़ों में होती है।

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3 JUN 2021 AT 12:20

जेठ की दोपहरी हो, दूर कोई गाँव हो,
हम हो, तुम हो और अम्बिया की छाँव हो।

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13 FEB 2021 AT 19:07

सीलन तो धीरे-धीरे
दीवारों को कमजोर कर देता है,
हम तो फिर भी इंसान हैं।

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13 FEB 2021 AT 18:59

आसमां का मन भर आता है
और बारिश होती है,
फिर भरता है,
फिर बारिश होती है;
और हम कहते हैं मौसम साफ हो गया।

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4 FEB 2021 AT 0:29

And both of us have to sail.

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1 FEB 2021 AT 0:33

कोई न कोई माला बिखरी होगी भीतर,
मोतियाँ यूँ ही तो पलकों पर नही आती।

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