ये बीमार बादल बस बिस्तर पर पड़े रहे
बुलावे आते जाते, ये नींद पर अड़े रहे ।
मेरा घर कहता "बस अब जाग जाओ,
मेरा बिस्तर छोड़ कहीं भाग जाओ ।
मेरे झरोखों से तुम दूर हट जाओ
गरजना मत, बस अब फट जाओ ।"
देखो! आज ये बात मेरी मान गए हैं
बरसना सही है ये जान गए हैं ।
ये मेरी खिड़की के काँच आखिर टूट ही गए
बांधे पूल के पत्थर फिर फूट ही गए ।
गीला है घर मेरा अब और आना मत
ये दरवाज़े भी मुझसे अब रूठ ही गए ।
ये कहते हैं कि इन्हें अब बंद ही रहने दूँ
ना खुद कुछ कहूँ ना किसीको कहने दूँ ।
है कलम भी कहती कि सैलाब बहने दूँ
लिखना विखना छोड़ अब बस रहने दूँ ।
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