आशिक़ के मैं बदन में नहीं बस, दिलों में हूँ,
मैं इश्क़ हूँ जो दौड़ता उनकी रगों में हूँ।
घर पर रहूँ मैं या कि भरी महफ़िलों में हूँ,
मत फ़िक्र कर तू यार मेरे दायरों में हूँ।
ग़ुस्से ने तोड़ डाले तकल्लुफ़ के बाँध सब,
वरना मुझे गुमाँ था मैं अपनी हदों में हूँ।
तूने किया है कौन सा एहसास मेरे नाम,
मैं आँसूओं में हूंँ कि तेरे कहकहों में हूँ।
मिलता बड़े ही प्यार से पर लगता क्यों मुझे,
शामिल मैं यार सिर्फ़ तेरी नफ़रतों में हूँ।
किस सफ़ में तूने रक्खा है मुझ को ज़रा बता,
हूँ दोस्त तेरी या मैं तेरे दुश्मनों में हूँ।
हर मोड़ पर मिलूँगी मैं हँसते हुए तुझे,
होगा न इल्म तुझको कि मैं उलझनों में हूँ।
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