वो तेरा कुछ ना कहना।
तेरा गुमसुम रहना।
तेरा एक दम से कहीं वो खोना।
बन्द कमरे में अकेले फिर वो रोना।
लोगों की नजरों में तेरा सा पागल होना।
खुद से खुद के अक्स का वो कहीं खोना।
अंदर से कुछ चाहना, मुँह पर और कुछ ही होना।
शब्दों के मायाजाल को क्यों पड़ा था आखिर इतना सोना।
कुछ था शायद ऐसा जो चाह रही थी
वो होना।
पर हर बार हो रहा था ऐसा, जैसे करा हो किसी ने जादू टोना।
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